अर्थव्यवस्था

इन मजदूरों को नहीं मिल रहा केजरीवाल सरकार का राशन

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें ई-कूपन दिया जाएगा

DTE Staff

अमन गुप्ता

गुड़गांव से सटे दिल्ली के बिजवासन विधानसभा क्षेत्र के अंर्तगत आने वाले समालका और कापासहेड़ा इलाके में उत्तर प्रदेश, बिहार से आए 100 से ज्यादा प्रवासी मजदूर परिवार सहित फंसे हुए हैं। 25 मार्च को जब लॉकडाउन हुआ था और केंद्र ने गरीबों, मजदूरों के लिए राहत घोषणाएं की थी तो उस वक्त सबसे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपने स्तर पर कई घोषणाएं की थी, लेकिन ये घोषणाएं बिजवासन में फंसे इन मजदूर परिवारों के काम नहीं आ रही हैं। 

फोन पर डाउन टू अर्थ से बातचीत में उत्तर प्रदेश के कालीचरण ने बताया कि सरकार की तरफ से अभी तक एक दिन भी खाना नहीं मिला है। जो मिला है, गैर सरकारी संगठनों की सहायता से मिला है। बाकी की जरुरतें अपने पैसे से पूरी हो रही हैं। ये भी कितने दिन चलेगा, अगर एक हफ्ते और यहां रुकना पड़ा तब एक भी पैसा नहीं बचेगा। 

केजरीवाल ने तीन महीने तक फ्री राशन के लिए ई-कूपन (अस्थाई राशन कार्ड) की व्यवस्था की घोषणा की है। ई-कूपन के जरिए दिल्ली में रहने वाला कोई भी आदमी तीन महीने तक फ्री सूखा राशन प्राप्त कर सकता है। लेकिन जब कालीचरण से डाउन टू अर्थ ने पूछा कि अस्थाई राशन कार्ड क्यों नहीं बनवाया? इस पर कालीचरण कहते हैं कि जब घोषणा हुई थी तभी अप्लाई कर दिया था, डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी स्टेटस पेडिंग दिखा रहा है।

कालीचरण के अलावा इसी इलाके में रह रहे राकेश कुमार इंद्रजीत, सूरज कुमार ने भी ई-कूपन के लिए अप्लाई किया था, जो अभी तक अप्रूव नहीं हुआ है। 

बिहार के नालंदा जिले के रहने वाले सुरेंद्र पासवान का ई-कूपन बन गया है, लेकिन अभी तक उनको राशन नहीं मिला है। कारण पूछने पर वह बताते हैं कि, 'राशन लेने के लिए आधार कार्ड की जरूरत होती है। यहां फंसे हुए अधिकांश लोग दिल्ली के बाहर से हैं, कार्ड पर पता भी गांव का डला हुआ है। ऐसे में, राशन की दुकान चलाने वालों का कहना है कि पहले प्राथमिकता दिल्ली में रहने वालों की दी जाएगी। उसके बाद आप लोगों का नंबर आएगा। अभी तक तो नंबर आया नहीं है। 

उत्तर प्रदेश के रहने वाले इंद्रजीत बताते हैं कि मकान मालिक किराया मांग रहे हैं। किराया चुका दें तो खाने के लाले पड़ जाएंगे और नहीं चुकाते हैं तो कमरा छोड़ने को कहा जा रहा है। सरकार खाना दे या न दे हमको घर भेजने का इंतजाम कर दे। जैसे इतने दिन एक टाइम खाकर गुजारा किया है, एक दिन और झेल लेंगे। 

स्वयंसेवी कार्यकर्ता राजा शर्मा उन्हें समय-समय पर सहायता पहुंचा रहे हैं। वह बताते हैं कि ज्यादातर लोग कम पढ़े लिखें हैं। पहली दिक्कत तो फॉर्म भरने में ही होती है, क्योंकि ये कम्प्यूटर पर भरना है। दूसरी परेशानी यह है कि लॉक डाउन के कारण साइबर कैफे भी बंद हैं तो इनके फॉर्म भरेगा कौन? हम जैसे कुछ लोग हैं जो इनकी सहायता कर रहे हैं, तो अप्रूवल और दिल्ली का पता न होने के काऱण दिक्कतें हो रही हैं।

दिल्ली का वोटर न होने के कारण उन्हें स्थानीय नेता भी उनकी अनदेखी कर रहे हैं।