अर्थव्यवस्था

विकसित भारत के लिए कुल प्रजनन दर का प्रबंधन, एक चुनौती

भविष्य का अनुमान है कि भारत की कुल प्रजनन दर में और गिरावट आ सकती है

Harsh Mani Singh

कुल प्रजनन दर या टीएफआर वास्तव में जननांकिकीय विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। टीएफआर का आशय एक महिला द्वारा अपने जीवन काल में औसतन जन्म दिए गए बच्चों की संख्या प्रदर्शित करता है।

भारत में स्वतंत्रता के बाद 1950 से 1960 के मध्य विश्व की सर्वाधिक टीएफआर दर्ज की गई जिसमें औसतन एक महिला के 6 से अधिक बच्चे थे। अगर इस दौरान आर्थिक वृद्धि दर की बात करें तो यह न्यूनतम लगभग 3-3.5 के आसपास थी।

यह कमोवेश हम दो हमारे अनेक जैसी स्थिति थी, जहां कम उम्र में विवाह, गर्भ निरोधक उपायों की सीमित जागरुकता और अधिक जनसंख्या ही सुरक्षा की गारंटी ने कुल प्रजनन दर को ऊंचे स्तर पर बनाए रखा।

यद्यपि भारत ने 1952 में ही जनसंख्या प्रबन्धन पर काम करना प्रारम्भ कर दिया और परिवार नियोजन को एक राष्ट्रीय कार्यक्रम अपनाने वाला विश्व का पहला देश बना। 1960-70 के दशक के मध्य नीति निर्माताओं ने आर्थिक वृद्धि दर को तेज करने को तरजीह दी।

जनसंख्या स्थिरीकरण को केन्द्र में रखकर जनसंख्या नियंत्रण आंदोलन प्रारम्भ हुये। 1975 में भारत सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए अधिक आक्रामक नीति अपनाकर बंध्याकरण को लागू किया। लेकिन यह नीति कारगर साबित न हो सकी।

1980 से आर्थिक वृद्धि को रफ्तार मिली। आर्थिक वृद्धि दर 1950 की तुलना में लगभग दोगुनी होकर 7.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई। लोगों 'को हम दो हमारे दो' की बात समझ में आने लगी।

लिहाजा 1990 के दशक तक आते-आते राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम,और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की शुरुआत जिसने स्वैच्छिक नसबंदी,और आधुनिक गर्भ निरोधक उपाय के विकल्प उपलब्ध होने से टीएफआर में गिरावट आई और यह 3 के स्तर तक आ गया।

उदारीकरण के प्रभाव का असर जहां एक ओर आर्थिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत और दो अंकीय तक पहुंच गई। शिक्षा और रोजगार, तकनीक और स्वास्थ्य की संस्थागत सुविधाएं मुहैया होने से लोगों ने दो बच्चों में कम से कम 3 साल के अंतर को स्वीकार कर लिया।

दरअसल उदारीकरण के बाद सेवा क्षेत्र उच्च आर्थिक वृद्धि दर के इंजन का काम करने लगा। भारत की सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का बड़ा हिस्सा अब सेवा क्षेत्र से आने लगा। परिणाम यह रहा कि 2000और 2010 के दशक में टीएफआरटीएफआर में गिरावट जारी रही। राष्ट्रीय स्तर की टीएफआर जो 1970 में प्रति महिला 5 बच्चों से 2010 में लगभग 2.2 बच्चों तक आ गया।

स्थायी उच्च आर्थिक वृद्धि दर ने शहरीकरण में इजाफा किया। शहरों में जनसंख्या संकेद्रण, प्रवासन,बेहतर जीवन की आस ने परिवार के आकार को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दक्षिण कोरिया जो भारत में एक बड़ा निवेशक देश और एशिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था है। यहां के 20-30 वर्ष के युवा चकाचौंध शैली को वरीयता देते हैं, लेकिनलेकिन यह पीढ़ी माता-पिता बनने के लिए तैयार नहीं। वहां बच्चे पैदा करने से अधिक बेहतर स्टाइलिश कपड़े पहनना और मंहगे रेस्तरां में खाना -खाना अधिक संतुष्टि देता है।

भारत में टीयर 1 श्रेणी में आने वाले शहर दिल्ली (एनसीआर), मुंबई, बैंगलुरू, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद,पुणे, अहमदाबाद जो आई टी सेवा प्रदाता हैं या औद्योगिक हब हैं में अधिक आय अर्जित करने के अवसर के साथ गुणवत्तापूर्ण जीवन अधिक मंहगा है।

जहां नये दम्पति काम के घंटों और वर्क फ्रॉम होम जैसी चुनौतियां के बीच एक से अधिक बच्चे के पालन पोषण से अधिक निर्वहन करने की स्थिति में नहीं हैं। इस तरह टीयर 1 श्रेणी के शहर अब टीएफआर के प्रतिस्थापन स्तर 2.1 तक के लक्ष्य हासिल कर रहे हैं जो हम दो हमारा एक जैसी स्थिति है।

भविष्य के अनुमान भारत की कुल प्रजनन दर में और गिरावट के हैं जहां 2030 में भारत की औसत टीएफआर भी प्रतिस्थापन स्तर तक पहुंच जायेगी । तब टीयर 2 श्रेणी के शहर जैसे लखनऊ, जयपुर,इंदौर, नागपुर, भोपाल,पटना,सूरत, बड़ोदरा, मदुरै आदि शहरों भी टीएफआर कम करने की ओर अग्रसर हैं।

अर्थशास्त्री हार्वे लेंबिसटीन और नेल्सन ने विकासशील देशों के संदर्भ में जो अनुमान लगाया कि आय बढ़ने के साथ प्रजनन दर कम होती जाती है। लेकिन भारत का कृषि क्षेत्र जीडीपी में घटती हिस्सेदारी के बावजूद विषम परिस्थितियों चाहे ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस और कोविड लाकडाऊन रहा हो क़ृषि क्षेत्र के आंकड़े अर्थव्यवस्था का मनोबल बनाये रखते हैं।

एक श्रम प्रधान और खेती आधारित अर्थव्यवस्था के लिए विकसित भारत की संकल्पना के लिए कुल प्रजनन दर का प्रबंधन एक चुनौती है?

लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबंध आईएसडीसी कॉलेज में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। लेख में व्यक्त उनके निजी विचार हैं