अर्थव्यवस्था

यहां जानिए आखिर क्यों इस बार खेती-किसानी बड़ी उम्मीदों से ताक रही बजट की ओर

कोरोनाकाल में व्यापक आर्थिक झटके को कम करने में कृषि क्षेत्र ने बड़ी भूमिका अदा की है, लेकिन खेती-किसानी को बजट 2021-22 ने निराश किया तो अर्थव्यवस्था की तरह वह मुंह के बल गिर पड़ेगी।

Vivek Mishra

तीन नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसान के बीच की खींचतान अब भी जारी है। सरकार इन कानूनों को किसानों का उद्धारक बता रही है तो किसान इसे विनाशक कह रहे हैं। कृषि, किसान और खेती जिसने कोरोनाकाल संकट में भी जीवनरेखा का काम किया, लॉकडाउन के मारे लोगों को रोजगार दिया। उस क्षेत्र को एक फरवरी, 2021 को पेश होने वाले केंद्रीय बजट 2021-2022 से क्या कुछ उम्मीदें हैं :

लॉकडाउन के दौरान मांग-आपूर्ति प्रभावित होने के कारण सभी तरह की फसलों के दाम टूटे वहीं उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कम होने के कारण भी ग्रामीण क्षेत्रों में मांग कम हो गई। इसलिए ग्रामीण आबादी को ज्यादा पैसों की जरुरत है ताकि कृषि और संबंधित क्षेत्रों को वापस उठने में मदद मिल सके।

पीएम किसान योजना के तहत सालाना स्तर पर 6000 रुपये ग्रामीण परिवार को आय सुरक्षा के नाम पर दिया जा रहा है। इसे और बढ़ाए जाने की जरूरत है। वहीं, इस योजना का दायरा बढ़ाकर बटाई पर खेती करने वाले किसानों, भूमिहीन किसान मजदूरों और महिला किसानों पर भी लाया जाना चाहिए।

लॉकडाउन के दौरान महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (एमएजीएनआरजीए) एक अहम रोजगार का साधन बनकर उभरा क्योंकि कृषि के बाहर बहुत ही कम रोजगार अवसर मौजूद थे। एमजीएनआरईजीए के तहत अचानक काम में बड़ा  उछाल हुआ। इसके अलावा 31 मार्च, 2021 तक बजट आवंटन में 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान हुआ, 40 हजार करोड़ रुपये के फंड का ऐलान एक स्वागत योग्य कदम है। 

एमजीएनआरईजीए के लिए आगामी बजट में ज्यादा प्रावधान की जरुरत है, इस पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। 

इसके अलावा अत्यधिक वर्षा वाले या सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य समय में भी किसानों की आजीविका बेहद नाजुक रहती है। यह सभी किसान गैर कृषि गतिविधियों (40 फीसदी कुल कृषि आय) पर निर्भर रहते हैं। 

जलवायु लचीली खेती और सहयोगी गतिविधियों को फायदेमंद बनाने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान और पूर्व बजट में कई उपाए किए गए। इनमें बहुस्तरीय फसल, क्षमता और ब्लॉक व तालुका स्तर पर भंडारण की गुणवत्ता, मधुमक्खी पालन, सोलर पंप और जीरो बजट नैचुरल फार्मिंग शामिल है। हालांकि, इन सभी चीजों को जमीनी स्तर पर ठोस तरीके से नहीं उतारा जा सका। वहीं, वर्षा आधारित खेती और संबंधित गतिविधियों में इन योजनाओं और कार्यक्रम के लिए बजट में किए गए प्रावधान या तो नदारद थे या अपर्याप्त थे। 

बजट 2021-2022 में इन सभी योजनाओं के लिए स्पष्ट प्रावधान किए जाने चाहिए। 

इसके अलावा सरकार को कृषि संरचना पर खर्च बढ़ाना चाहिए ताकि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को सहयोग मिल सके। पुराने बजट में संरचना से ज्यादा नगद आधारित योजनाओं पर जोर दिया गया था। 

महामारी ने कृषि के कामकाज को बुरी तरह प्रभावित किया है। कई रिपोर्ट यह बताती हैं कि खेती का कामकाज रुकने की वजह संरचनाओं का न होना है। जैसे आपूर्ति में बाधा, कर्ज की अनुपलब्धता, गुणवत्तायुक्त इनपुट की कमी और बाजार की संरचना में कमी। 

कृषि के प्रभावित होने की एक बड़ी वजह सार्वजनिक संरचना का न होना है। इसलिए यह जरूरी वक्त है कि सरकार कृषि क्षेत्र को मजबूत करन के लिए सरंचना में निवेश करे। 

पीएम किसान योजना , प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना, रियायती दरों वाले ब्याज, कीमतों को सहयोग करने वाली योजनाओं के कारण आदि हाल के वर्षों में कषि खर्च में काफी बढोत्तरी हुई है। हालांकि, सरंचनाओं और कृषि गतिविधियों को सहायता पहुंचाने वाली योजनाओं ने गति नहीं पकड़ी है।  

खेती-किसानी को लाभकारी बनाने और उससे जुड़ी गतिविधियों के पुनरुद्धार के लिए जो बजट में आवंटन किए जाते थे उनमें बड़ी कमी आई है। मिसाल के तौर पर  राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और पीएम कृषि सिंचाई योजना, वर्षा आधारित खेती आदि, जिससे उत्पादन में बढोत्तरी सुनिश्चित होती है।  देश में कृषि संकट को हल करने के लिए ऐसे बजट की जरूरत है जो जड़ की समस्याओं का समाधान कर सके।  

खाद्य सब्सिडी भी एक ऐसा पहलू है। मसलन 2019-20 में जहां 1.84 लाख करो़ड़ रुपए बजट का प्रावधान किया गया था वहीं 2020-21 के बजट में इसे घटाकर 1.15 लाख करोड़ कर दिया गया। 

सरकार अनाज की खरीददारी जितना ज्यादा करेगी वह किसानों के लिए लाभप्रद है और कोरोनाकाल की महामारी के दौरान स्टॉक का महत्व भी पता चला है। पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना की सफलता भी इसी स्टॉक पर टिकी।  ऐसे में नए कृषि कानून इस बात को धक्का पहुंचाते हैं क्योंकि सरकार की मंशा वहां प्राइवेट खरीद पर टिकी है। 

ऐसे में खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर देखें तो अनाज खरीद के लिए सार्वजनिक संरचनाओ को मजबूती देना इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। खासतौर से तब जब हम आर्थिक सुधार के रास्ते से काफी दूर खड़े हैं।