अर्थव्यवस्था

वैश्विक मंदी का सामना करती दुनिया, चार दशकों में सबसे निचले स्तर पर पहुंचा आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नवीनतम ट्रेड एंड डेवलपमेंट रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि देशों के बीच मौजूद असमानताएं और असमान विकास, वैश्विक आर्थिक सुधारों को चुनौतीपूर्ण बना रहा है

DTE Staff

आशंका है कि 2023 में 2009 जैसा ही वैश्विक मंदी का दौर रहेगा, जो आगे 2024 में भी जारी रह सकता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नवीनतम ट्रेड एंड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, वैश्विक अर्थव्यवस्था में केवल 2.4 फीसदी की वृद्धि होने का ही अनुमान है।

यूनाइटेट नेशन कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीडी) जो सालाना इस रिपोर्ट को प्रकाशित करता है, उसने इस विकास को "थमी हुई गति" करार दिया है। गौरतलब है कि वैश्विक मंदी को तब परिभाषित किया जाता है जब विकास दर ढाई फीसदी या उससे नीचे पहुंच जाती है। वहीं इस रिपोर्ट को जारी करते हुए चार अक्टूबर 2023 को अपने बयान में संयुक्त राष्ट्र निकाय ने कहा है कि, "मौजूदा विकास दर, वैश्विक मंदी की परिभाषा को पूरा करती है।"

रिपोर्ट के अनुसार, "संकट के वर्षों को छोड़कर, विकास दर पिछले चार दशकों में सबसे कम हैं। इसके अलावा, 2023 का यह आंकड़ा 2.5 फीसदी की पारंपरिक सीमा से नीचे है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी का संकेत देता है।"

वहीं रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की है कि निकट भविष्य में वैश्विक आर्थिक सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। यूएनसीटीडी के नवीनतम अनुमान से पता चलता है कि 2024 में विकास दर के केवल 2.5 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि साथ ही इसमें यह चेतावनी भी दी गई है कि, "ये अनुमान नकारात्मक जोखिमों के अधीन हैं, जो 2023 में हाल के महीनों में बढ़े हैं।"

यूएनसीटीडी द्वारा जारी इस रिपोर्ट में महामारी के दौरान आई गिरावट के बाद देखी गई इस मंदी के लिए विभिन्न क्षेत्रों के बीच बढ़ती खाई और असमान विकास को जिम्मेवार माना है।

रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी और मध्य एशिया को छोड़कर सभी क्षेत्रों में इस साल, 2022 की तुलना में धीमी वृद्धि होने की आशंका है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण गिरावट यूरोप में होगी, जहां इसके 2.3 अंक रहने की आशंका है। जी20 देशों में, ब्राजील, चीन, जापान, मैक्सिको और रूस जैसे कुछ अन्य देशों के साथ भारत में विकास दर ऊंची रह सकती है, लेकिन ये दर इन देशों के बीच एक समान रहने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, "... वैश्विक अर्थव्यवस्था 2007-2009 वित्तीय संकट की याद दिलाते हुए सुधारों में आई सुस्ती का अनुभव कर रही है।"

भारत में, विकास मुख्य रूप से सरकारी खर्च और बाहरी व्यापार की अनुकूल स्थितियों से प्रभावित रहता है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी चिंता जून 2023 में 8.5 फीसदी की "ऐतिहासिक" बेरोजगारी दर है। इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि आर्थिक विकास से सभी को समान रूप से फायदा नहीं हो सकता, क्योंकि असमानता काफी बढ़ गई है, जैसा कि वास्तविक मजदूरी और श्रम हिस्सेदारी से जुड़े आंकड़ों में देखा गया है, जो आगे चलकर विकास में बाधा बन सकता है।

असमान विकास और असमानता भविष्य में आर्थिक प्रगति और धन वितरण को बाधित कर सकती है। भले ही कितना भी विकास हुआ हो। असमान और नाजुक वैश्विक आर्थिक सुधार में 2023 एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। ऐसे में पर्याप्त बहुपक्षीय नीतियों या समन्वय तंत्र के आभाव में, आज की अर्थव्यवस्थाओं में मौजूद कमजोरियां और सामने आने वाले झटके भविष्य में प्रणालीगत संकट में बदल सकते हैं।