इलेस्ट्रेशन: योगेंद्र आनंद 
अर्थव्यवस्था

'टाइम पावर्टी' में जकड़ी हैं भारतीय महिलाएं, क्या हैं मायने?

महिलाओं का अधिकांश समय घर के अवैतनिक काम और परिवार की देखभाल में गुजरता है, जिससे वेतनभोगी कामों के लिए समय नहीं बचता

Raju Sajwan

“आप अपना दिन कैसे बिताते हैं?” अगर इस सीधे से सवाल का देशव्यापी जवाब दिया जाए तो हमारी सामाजिक और आार्थिक स्थिति के बारे में बहुत कुछ पता चल सकता है, विशेष रूप से लैंगिक असमानता बेपर्दा हो सकती है। भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने जनवरी-दिसंबर 2024 के दौरान भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 4,54,192 लोगों से इस सवाल को पूछा। इस प्रश्न का उत्तर फरवरी 2025 जारी हुआ जिससे पता चला कि टाइम पावर्टी (समय की कमी या गरीबी) ने किस तरह भारतीय महिलाओं को जकड़ रखा है।

टाइम पावर्टी का मतलब है, अधिक या बिना वेतन वाले काम के कारण समय की कमी, जिससे खुद पर ध्यान देने के लिए बहुत कम समय बचता है, साथ ही आय का नुकसान भी हो सकता है। लैंगिक नजरिए से देखें तो समय की कमी को महिलाओं की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है।

महिलाएं बिना भुगतान वाले घर के काम और परिवार के सदस्यों की देखभाल में बहुत अधिक समय खर्च करती हैं। इससे उनके पास गैर-कृषि गतिविधियों जैसे भुगतान या पारिश्रमिक वाले कामों के लिए समय नहीं बच पाता। समय की कमी और आय की कमी को एक-दूसरे से जोड़कर देखा जाता है।

समय की कमी महिलाओं को औपचारिक अर्थव्यवस्था से बाहर कर देती है और लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती है। 2015 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि इससे विकासशील देशों की महिलाओं और अर्थव्यवस्थाओं को 9 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है।

एनएसओ के सर्वेक्षण में पूछा गया कि महिला और पुरुष प्रतिदिन 1,440 मिनट कैसे बिताते हैं। जवाब में पता चला कि “रोजगार और संबंधित गतिविधियों” पर पुरुष दिन का लगभग 61 प्रतिशत और महिलाएं केवल 20.7 प्रतिशत समय खर्च करती हैं। इस कारण महिलाएं अपना 20 प्रतिशत समय वेतनभोगी वाले कामों में नहीं बिता पातीं। “घर के सदस्यों के लिए अवैतनिक घरेलू सेवाओं” पर महिलाएं अपना 81.5 प्रतिशत समय बिताती हैं, जबकि पुरुष केवल 27 प्रतिशत। “घर के सदस्यों के लिए अवैतनिक देखभाल” पर महिलाएं 34 प्रतिशत समय बिताती हैं, जबकि पुरुष लगभग 18 प्रतिशत। “अपने अंतिम उपयोग के लिए वस्तुओं के उत्पादन” पर महिलाएं पुरुषों के 13 प्रतिशत की तुलना में लगभग 21 प्रतिशत समय बिताती हैं।

आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं अवैतनिक घरेलू काम और देखभाल पर अधिक समय बिताना जारी रखती हैं। एनएसओ द्वारा 2019 में किए गए इसी तरह के एक सर्वेक्षण में भी ऐसे ही रुझान मिले थे। रोजगार और संबंधित गतिविधियों पर 2019 के स्तर की तुलना में महिलाएं 2024 में लगभग 2 प्रतिशत अधिक समय बिताती हैं। घर के सदस्यों के लिए अवैतनिक घरेलू सेवाओं पर महिलाएं 2019 की तुलना में 2024 में कुछ अधिक मिनट बिताती हैं। लेकिन घर के सदस्यों की देखभाल पर महिलाएं 2019 में 27.6 प्रतिशत तुलना में 2024 में बहुत अधिक 34 प्रतिशत समय बिताती हैं।

उपरोक्त टाइम यूज सर्वेक्षण न केवल उत्पादन में लगे श्रमबल को समझने के लिए बल्कि लैंगिक असमानता को समझने में भी मददगार है। एक सदी पहले तत्कालीन सोवियत संघ (यूएसएसआर) ने 76 परिवारों में औद्योगिक श्रमिकों के लिए पहला व्यवस्थित समय उपयोग सर्वेक्षण किया था। इसका उद्देश्य यह देखना था कि काम, नींद और आराम में समय का कितना इस्तेमाल हो रहा है। इसके माध्यम से और प्रत्येक परिवार की डायरी प्रविष्टियों का उपयोग करके सरकार यह देखना चाहती थी कि लोग घरेलू कामों पर अधिक समय तो नहीं बिता रहे। दरअसल सरकार घरेलू काम में अधिक समय बिताने को “महत्वहीन” मानती थी और लोगों को “सामूहिक सेवाओं” के काम पर लगाना चाहती थी।

1995 में दुनिया ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित फोर्थ वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस ऑन विमेन के रूप में मील का पत्थर देखा। इसमें “बीजिंग डेक्लरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन” को अपनाया गया। इसकी कार्रवाई का एक आह्वान है, “गरीबी और आर्थिक गतिविधि के सभी पहलुओं पर लिंग और उम्रवार आंकड़े जुटाएं। साथ ही लैंगिग नजरिए से आर्थिक प्रदर्शन के आकलन की सुविधा के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक सांख्यिकीय संकेतक विकसित करें।” इस सम्मेलन के बाद लैंगिक नजरिए से समय उपयोग सर्वेक्षणों ने जोर पकड़ लिया। दुनिया बीजिंग सम्मेलन की 30वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 10-21 मार्च को न्यूयॉर्क में जुट रही है। इस जुटान में सम्मेलन के मुख्य एजेंडे में शामिल महिलाओं की टाइम पावर्टी की प्रगति को फिर से देखने की जरूरत है।