अर्थव्यवस्था

कोरोनावायरस ने बढ़ाई बेरोजगारी, जानें अपने राज्य का हाल

DTE Staff

भारत में साल 2019 के अंत में पिछले 45 साल की सबसे बुरी बेरोजगारी दर थी। अर्थव्यवस्था में मंदी आ रही थी। जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि सबसे अधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र कृषि इस स्थिति में नहीं है कि इतने लोगों को खपा पाए। इसके बाद कोरोनावायरस की महामारी आ गई। इससे भारत में एक और बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है। यानी पलायन की ऐसी स्थिति जो कभी नहीं देखी गई। यह पलायन शहरी क्षेत्रों में आर्थिक रूप से सक्रिय लोगों का था। ये लोग पहले से दयनीय ग्रामीण क्षेत्रों में लौटने लगे। अनुमान के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों के 10 करोड़ लोग ऐसे हैं जो लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हो गए। दूसरी तरफ ऐसे पर्याप्त उपाय नहीं हैं जो उनकी उत्पादकता को ग्रामीण क्षेत्रों में बरकरार रख पाएं। इसने भारत को अभूतपूर्व बेरोजगारी के संकट में धकेल दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि 41 साल में पहली बार अर्थव्यवस्था सिकुड़ेगी। इसका सीधा का मतलब है कि पहली बार कोई विकास दर्ज नहीं होगा। इसलिए भीषण बेरोजगारी जारी रहेगी, नतीजतन गरीबी का स्तर बढ़ेगा।

इसी बीच अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने जीवनयापन को हुए नुकसान का आकलन किया है। यह अनुमान बताता है कि विश्व का आधा श्रम बल जो असंगठित क्षेत्र का कामगार भी है, तत्काल प्रभाव से अपनी रोजीरोटी से हाथ धो बैठेगा। इसका मतलब है कि 1.6 बिलियन असंगठित कामगार बेरोजगार हो जाएंगे। यह आंकड़ा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत की आधी से ज्यादा आबादी के बराबर है। मार्च में करीब 2 बिलियन असंगठित क्षेत्र के कामगार अपनी 60 प्रतिशत आय खो चुके थे। इन कामगारों की आय इतनी ज्यादा नहीं है कि वे अधिक समय तक बिना रोजगार के जीवन की मूलभूत जरूरतें पूरी कर पाएं। अप्रैल में उनका रोजगार पूरी तरह खत्म हो गया और उनकी आय शून्य हो गई।

13 मई 2020 को यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीएडी) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यह स्थिति 4-6 करोड़ लोगों को भीषण गरीबी के दलदल में धकेल देगी। रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक गरीबी रेखा से नीचे विश्व की वह आबादी आती है जो प्रतिदिन 143.41 (1.90 अमेरिकी डॉलर) रुपए से कम पर जिंदगी गुजारती है। 2020 तक वैश्विक गरीब 8.2 प्रतिशत बढ़कर 66.5 करोड़ हो जाएंगे। 2019 में ऐसे लोग 8.2 प्रतिशत यानी 63.2 करोड़ थे। दुनियाभर के 36 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से तैयार की गई यह रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक गरीबों में यह अप्रत्याशित वृद्धि 1998 से नहीं देखी गई है। उल्लेखनीय है कि 1998 में दुनिया 1997 में आए एशिया के वित्तीय संकट के झटके से जूझ रही थी।