अर्थव्यवस्था

शहरों में पहुंच रहा है ग्रामीण भारत का पैसा

Raju Sajwan

पिछले दो साल से खाद्य मुद्रास्फीति कम हो रही है और गैर खाद्य मुद्रा स्फीति बढ़ रही है, जो यह संकेत देता है कि ग्रामीण क्षेत्र की आय शहरों में पहुंच रही है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। खासकर ऐसे समय में, जब कमजोर मानसून की वजह से कृषि संकट के और गहराने के संकेत मिल रहे हैं।

हाल ही में रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य मुद्रा स्फीति कम हो रही है, जबकि गैर खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि हो रही है। इसका सीधा सा मतलब है कि ग्रामीणों खासकर किसानों की आमदनी तो कम होगी, लेकिन उन्हें गैर खाद्य वस्तुएं खरीदने के लिए अधिक पैसा खर्च करना पड़ेगा और ग्रामीण क्षेत्र का पैसा शहरों में जाएगा।

सांख्यिकीय मंत्रालय की ओर से पिछले माह जारी आंकड़े बताते हैं कि जून माह में उपभोक्ता खाद्य वस्तुओं के मूल्य सूचकांक में 2.17 प्रतिशत, जबकि सामान्य सूचकांक (सभी समूह) में 3.18 प्रतिशत ही वृद्धि हुई। अगर केवल ग्रामीण क्षेत्र की ही बात करें तो ग्रामीण क्षेत्र में खाद्य वस्तुओं के मूल्य सूचकांक में केवल 0.43 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि इसके मुकाबले सामान्य मूल्य सूचकांक में 2.21 प्रतिशत वृद्धि हुई। आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में फलों के मूल्य सूचकांक में 7 प्रतिशत, सब्जियों में 2 प्रतिशत, चीनी में 1.6 प्रतिशत की कमी हुई, जबकि गैर खाद्य वस्तुओं में स्वास्थ्य मूल्य सूचकांक में 9.61 फीसदी, मनोरंजन पर 6.24 प्रतिशत, शिक्षा पर 8.68 प्रतिशत, घरेलू सामान व सेवाओं पर 5.20 फीसदी वृद्धि हुई है। जो साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण अपनी कमाई का काफी हिस्सा शहरी वस्तुओं पर खर्च करते हैं।

ऐसे समय में, जब कमजोर मानसून की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हालत सही नहीं मानी जा रही, खाद्य वस्तुओं के मूल्य सूचकांक में वृद्धि न होना अच्छे संकेत नहीं माने जा रहे हैं। इसी सप्ताह नेशनल कौंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की रिपोर्ट में कहा गया है कि कमजोर मानसून ग्रामीण क्षेत्र की मांग पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है और मांग प्रभावित होते ही उद्योगों पर असर पड़ता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि इस वर्ष मानसून के कमजोर होने के संकेत मिलते ही ऑटो सेक्टर पहले ही अपना उत्पादन कम कर चुका है और इस वजह से इस सेक्टर में नौकरियों के जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है।

चालू वित्त वर्ष में ग्रामीण क्षेत्र में सकल मूल्य संवर्धित (जीवीए) और किसानों की आमदनी कम होने की रिपोर्ट भी सामने आ रही हैं। क्रिसिल एक सप्ताह पहले अपनी रिपोर्ट में कह चुका है कि वित्त वर्ष 2017 के मुकाबले 2019 में कृषि जीवीए में 11.4 प्रतिशत के मुकाबले 7.6 फीसदी पर पहुंच गई और इसमें गिरावट हुई है। वहीं एनसीएईआर की रिपोर्ट बताती है कि रियल जीवीए एग्रीकल्चर में 2017-18 में 5 फीसदी था, जो 2018-19 में घटकर 2.9 फीसदी रह गया। बल्कि 2019-20 की तिमाही रिपोर्ट्स में भी जीवीए में गिरावट की बात कही गई है।

ऐसे में, बस उम्मीद यही की जा रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को मिलने वाले प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के रूप में 6000 रुपए से अर्थव्यवस्था को कितना लाभ होगा। क्रिसिल ने तो अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इसे एक उम्मीद के तौर पर देखा जाना चाहिए। हालांकि बैंकों में सीधे तौर पर हस्तांतरण होने के बाद इस पैसे का इस्तेमाल किसान अपना कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए करेंगे, इसकी संभावना कम ही दिखती है।