अर्थव्यवस्था

कैसी होगी कोविड-19 के बाद दुनिया-1: भविष्य की आशंकाएं

हमारे चार संभावित भविष्य हैं- बर्बरता की अवस्था में पहुंचना, मजबूत पूंजीवादी राज्य, कट्टरपंथी समाजवादी राज्य या फिर आपसी सहयोग की नींव पर बने एक बड़े समाज में परिवर्तन

DTE Staff

सिमोन मेयर

अब से छह महीने, एक साल या दस साल बाद हम कहां होंगे? मैं रातों को जागकर सोचा करता हूं कि मेरे प्रियजनों भविष्य क्या होगा? मेरे संवेदनशील दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए भविष्य में क्या रखा है? हालांकि मैं बहुतों से भाग्यशाली हूं। मुझे अच्छा बीमारी भत्ता मिलता है और मैं ऑफिस आए बगैर भी काम कर सकता हूं, फिर भी मैं सोचता हूं कि मेरी नौकरी का क्या होगा? यह मैं इंग्लैंड से लिख रहा हूं, जहां मेरे कई स्व-नियोजित मित्रों के सिर पर मासिक आय रुक जाने की तलवार लटक रही है। कई दोस्तों की नौकरी पहले ही जा चुकी है। जिस अनुबंध के तहत मेरे 80 प्रतिशत वेतन का भुगतान होता था, वह दिसंबर में समाप्त हो गया। कोरोनावायरस अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से तबाह कर रहा है। जब मुझे काम की जरूरत होगी तो क्या कोई मुझे काम पर रखेगा?

भविष्य की कई आशंकाएं हैं और सभी इस बात पर निर्भर करती हैं कि सरकारें और समाज कोरोनावायरस और उसके आर्थिक परिणाम से किस प्रकार निपटते हैं। उम्मीद है कि हम इस संकट का उपयोग पुनर्निर्माण के लिए करेंगे, कुछ बेहतर और अधिक मानवीय उत्पादन करेंगे। हालांकि, इसके बदतर होने की भी पूरी आशंका है। मुझे लगता है कि अन्य संकटों के दौरान राजनीतिक अर्थव्यवस्था को देखकर हम हमारी स्थिति और हमारे भविष्य का अंदाजा लगा सकते हैं। मेरा शोध आधुनिक अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों यानी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, मजदूरी और उत्पादकता पर केंद्रित है। मैं जलवायु परिवर्तन और श्रमिकों के खराब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य जैसी चुनौतियों को लेकर इकोनॉमिक डायनामिक्स के योगदान की तरफ ध्यान दे रहा हूं।

मेरा मानना है कि अगर हमें सामाजिक रूप से उचित और पारिस्थितिक रूप से स्वस्थ भविष्य का निर्माण करना है तो हमें एक बहुत ही अलग तरह के अर्थशास्त्र की आवश्यकता है। यह बात कोविड-19 से पहले कभी भी इतनी स्पष्ट नहीं रही। कोविड-19 महामारी के खिलाफ प्रतिक्रियाएं केवल उस शक्ति का विस्तार हैं, जो अन्य सामाजिक और पारिस्थितिक संकटों को बढ़ाती हैं। यानी एक प्रकार के मूल्य को अन्य पर प्राथमिकता देना। इस शक्ति ने कोविड-19 के प्रति वैश्विक प्रतिक्रियाओं नियंत्रित करने में एक बड़ी भूमिका निभाई है। इस हाल में जिस तरह वायरस के खिलाफ प्रतिक्रियाएं बढ़ रही हैं, हमारे आर्थिक भविष्य का विकास कैसे हो सकता है? आर्थिक दृष्टिकोण से, हमारे चार संभावित भविष्य हैं- बर्बरता की अवस्था में पहुंचना, मजबूत पूंजीवादी राज्य, कट्टरपंथी समाजवादी राज्य और एक बड़े समाज में परिवर्तन, जिसकी नींव पारस्परिक सहायता पर टिकी हो। इन सभी भविष्यों के संस्करण भले ही वांछनीय न हों, लेकिन बखूबी मुमकिन है।

छोटे बदलावों से बात नहीं बनेगी

जलवायु परिवर्तन की तरह ही कोरोनावायरस आंशिक रूप से हमारी आर्थिक संरचना की समस्या है। हालांकि दोनों “पर्यावरणीय” या “प्राकृतिक” समस्याएं प्रतीत होती हैं, लेकिन ये सामाजिक रूप से संचालित हैं। हां, गर्मी को अवशोषित करने वाली कुछ गैसों के कारण जलवायु परिवर्तन होता है, लेकिन यह बहुत ही सतही व्याख्या है। जलवायु परिवर्तन को वास्तव में समझने के लिए हमें उन सामाजिक कारणों को समझना होगा जिनकी वजह से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता रहता है। ऐसा ही कोविड-19 के साथ भी है। हां, इसकी सीधी वजह वायरस है, लेकिन इसके प्रभावों के प्रबंधन के लिए हमें मानवीय व्यवहार और इसके व्यापक आर्थिक संदर्भ को समझना होगा।

यदि आप गैरजरूरी आर्थिक गतिविधि को कम करते हैं तो कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन, दोनों से निपटना बहुत आसान है। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में यह इसलिए जरूरी है क्योंकि यदि आप कम सामान का उत्पादन करते हैं, तो आप कम ऊर्जा का उपयोग करते हैं और कम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। कोविड-19 का महामारी-विज्ञान तेजी से विकसित हो रहा है, लेकिन मूल तर्क पिछले संदर्भ जैसा ही सरल है। लोग मिलते-जुलते हैं और संक्रमण फैलाते हैं। यह घरों में, कार्यस्थलों पर और लोगों द्वारा की जाने वाली यात्राओं में फैलता है। इस मिलने-जुलने को कम करने से व्यक्ति-से-व्यक्ति संक्रमण के कम होने और कुल मिलाकर कम मामलों के सामने आने की संभावना बनती है। अन्य नियंत्रण रणनीतियों के साथ ही साथ लोगों के बीच संपर्क कम कर देने से भी मदद मिलती है। संक्रामक बीमारी के प्रकोप के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और आइसोलेशन एक सामान्य नियंत्रण रणनीति है, जिसके तहत एक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों की पहचान की जाती है और फिर आगे बीमारी फैलने से रोकने के लिए उन्हें अलग कर दिया जाता है। यह तब सबसे प्रभावी होता है जब आप संपर्कों का प्रतिशत उच्च होने का पता लगाते हैं। किसी व्यक्ति का जितना कम संपर्क रहा होगा, उतना ही कम आपको उस उच्च प्रतिशत को पाने के लिए ट्रेस करना होगा।

हम वुहान के उदाहरण से देख सकते हैं कि इस तरह की सामाजिक दूरी और लॉकडाउन प्रभावी उपाय हैं। राजनीतिक अर्थव्यवस्था हमें यह समझने में मदद कर सकती है कि इन उपायों को पहले यूरोपीय देशों और यूएस में क्यों नहीं लागू किया गया।

एक कमजोर अर्थव्यवस्था

लॉकडाउन से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर एक दबाव बन रहा है। हमारा सामना एक गंभीर मंदी से है। इस दबाव की वजह से कुछ वैश्विक नेताओं को लॉकडाउन के उपायों में ढील देने का आह्वान करना पड़ा। यहां जबकि 19 देशों में लॉकडाउन की स्थिति थी, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो ने राहत कार्यों को वापस लेने की बात की। ट्रम्प ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 3 सप्ताह में सामान्य रूप में लौटा लाने का आह्वान किया (हालांकि उन्होंने अब स्वीकार किया है कि सामाजिक दूरी को लंबे समय तक बनाए रखने की आवश्यकता होगी)। बोल्सनारो ने कहा, “हमारे जीवन को आगे बढ़ना है, नौकरियों को बचाया जाना चाहिए... हमें सामान्य जीवन में वापस लौट आना चाहिए।”

इसी बीच यूके में तीन सप्ताह का लॉकडाउन लगाने से 4 दिन पहले, प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन काफी कम आशावान दिखे। उनका कहना था कि यूके 12 हफ्तों के अंदर स्थिति संभालने में कामयाब हो सकता है। फिर भी भले ही जॉनसन सही हों, बात यह है कि हमारी आर्थिक प्रणाली ऐसी है जिसे महामारी के एक संकेत से भी भरभरा कर गिर जाने का खतरा होगा।

पतन का अर्थशास्त्र काफी सीधा है। व्यवसाय लाभ कमाने के लिए होता है। अगर वे उत्पादन नहीं कर सकते तो वे चीजें नहीं बेच सकते। इसका मतलब है कि वे लाभ नहीं कमा सकते हैं, जिसका सीधा अर्थ है कि वे आपको रोजगार देने में भी कम सक्षम हैं। व्यवसाय (थोड़े अंतराल पर) उन श्रमिकों को रख सकते हैं और रखते भी हैं, जिनकी उन्हें तुरंत आवश्यकता नहीं है। वे अर्थव्यवस्था के फिर से सामान्य होने के स्थिति में मांग को पूरा करने में सक्षम होना चाहते हैं, लेकिन अगर चीजें वास्तव में बुरी होने लगेंगी तो वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। इसलिए, कई सारे लोग अपनी नौकरी खो देते हैं या अपनी नौकरी खोने के डर में जीने लगते हैं। फिर वे कम खरीदारी करते हैं। फिर पूरा चक्र वापस शुरू होता है और हम आर्थिक गिरावट के घुमाव में फंस जाते हैं। एक सामान्य संकटकाल में इसे हल करने का एक सरल नुस्खा है। सरकार खर्च करती है और तब तक खर्च करती है जब तक लोग उपभोग करना और फिर से काम करना शुरू नहीं करते। यह वो नुस्खा है जिसके लिए जॉन मेनार्ड कीन्स प्रसिद्ध हैं।

लेकिन सामान्य हस्तक्षेप यहां काम नहीं करेंगे क्योंकि हम नहीं चाहते कि अर्थव्यवस्था ठीक हो जाए (कम से कम तुरंत तो नहीं)। लॉकडाउन का एकमात्र मकसद लोगों को काम पर जाने से रोकना है, जहां वे बीमारी फैलाते हैं। एक हालिया अध्ययन के अनुसार वुहान में लॉकडाउन की कार्रवाई (कार्यस्थल बंद होने सहित) को इतनी जल्दी हटा देने की वजह से 2020 के बाद के महीनों में चीन इन मामलों को दोबारा तेजी से बढ़ते देखेगा।

जैसा कि अर्थशास्त्री जेम्स मीडवे ने लिखा है, कोविड-19 की सही प्रतिक्रिया बड़े पैमाने पर उत्पादन के साथ एक युद्धकालीन अर्थव्यवस्था नहीं है, बल्कि हमें एक युद्ध-विरोधी अर्थव्यवस्था और उत्पादन को बड़े पैमाने पर वापस शुरू करने की आवश्यकता है। अगर हम भविष्य में महामारी के लिए (और कठोर से कठोर जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए) अधिक तैयार होना चाहते हैं, तो हमें एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो उत्पादन को इस तरह से वापस लाने में सक्षम हो, जिससे आजीविका का नुकसान न होता हो।

तो, जो हमें चाहिए वह है एक अलग आर्थिक मानसिकता। हम अर्थव्यवस्था को चीजें, खासकर उपभोक्ता वस्तुएं, खरीदने और बेचने का माध्यम समझते हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था न तो ये होती है और न ही इसे ऐसा होना चाहिए। मूलरूप से अर्थव्यवस्था वह तरीका है जिसके तहत हम अपने संसाधनों को उन चीजों में बदल देते हैं, जिनकी जरूरत हमें जीने के लिए होती है। इस तरह से देखने पर हमें एक अलग तरीके की जिंदगी जीने के अधिक अवसर दिख सकते हैं, जिसमें अपनी तकलीफें बढ़ाए बिना हम कम उत्पादन कर सकते हैं। मैं और अन्य पारिस्थितिक अर्थशास्त्री लंबे समय से इस सवाल से जुड़े रहे हैं कि आप सामाजिक रूप से उचित तरीके से कम उत्पादन कैसे करते हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भी कम उत्पादन की चुनौती अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर अन्य बातें पूर्ववत रहें तो जितना अधिक हम उत्पादन करेंगे उतना ही अधिक ग्रीनहाउस गैस भी उत्सर्जित करेंगे। फिर आप लोगों को काम पर रखते हुए आपके द्वारा बनाए गए सामान की मात्रा को कैसे कम करते हैं?

प्रस्तावों में कार्य सप्ताह की लंबाई को कम करना शामिल है, या जैसा कि मैंने मेरे हाल के कुछ कार्यों से समझा। आप लोगों को धीमी गति और कम दबाव के साथ काम करने दे सकते हैं। इनमें से कोई भी सीधे तौर पर कोविड-19 पर लागू नहीं होता है, जहां उद्देश्य आउटपुट की बजाय संपर्क को कम करना है, लेकिन प्रस्तावों के मूल में एक ही बात है। आपको लोगों की जीने के लिए मजदूरी पर निर्भरता कम करनी होगी।

(लेखक इंग्लैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ सुरे के सेंटर फॉर द अंडरस्टैंडिंग ऑफ सस्टेनेबल प्रोस्पेरिटी के ईकोलॉजिकल इकोनोमिक्स में रिसर्च फेलो हैं। यह लेख द कन्वरसेशन से विशेष अनुबंध के तहत प्रकाशित)