अर्थव्यवस्था

हर रोज महज 3 रुपये 33 पैसे की तय यात्रा भत्ता में गांवों का दौरा कैसे करें यूपी के लेखपाल

उत्तर प्रदेश में 23,500 लेखपालों ने सरकार की उपेक्षा और मांगों के न पूरा किए जाने से नाराज होकर अपने बस्ते का बोझ हल्का कर दिया है, जल्द ही दैनिक कार्य भी ठप हो सकते हैें।

Vivek Mishra

उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में लंगड़ी गूलर गांव में रहने वाले 35 वर्षीय किसान अयोध्या प्रसाद अपने 10 बीघे खेत को कब्जा मुक्त कराना चाहते हैं लेकिन लेखपाल मापी के लिए इनके खेत तक पहुंच नहीं रहे। ऐसे ही कई और किसान हैं जिनके आवेदन तहसील के बंडल में जब्त है। अब यक्ष प्रश्न है कि पूरे दिन गांवों की दौड़धूप के लिए 3 रुपये 33 पैसे की नियत यात्रा भत्ते में लेखपाल कितने किसानों के मामले को सुलझाने के लिए मौके पर जा पाएंगे।

उत्तर प्रदेश में इन दिनों करीब 23,500 लेखपालों ने सरकार की उपेक्षा और मांगों के न पूरा किए जाने से नाराज होकर अपने बस्ते का बोझ हल्का कर दिया है। सूबे में न ही कोई लेखपाल अतिरिक्त प्रभार वाले गांवों में जा रहा है और न ही दौड़धूप के लिए अपने निजी दो-पहिया वाहनों का इस्तेमाल कर रहा है। अभी सिर्फ विभागीय काम जारी है जल्द ही यह सारे काम भी ठप हो सकते हैं जिससे गांवों में किसानों को तकलीफे उठानी पड़ सकती हैं।  

एक लेखपाल को जांच, सर्वे और खेत मापी, खसरा-खेतौनी आदि जैसे कामों को पूरा काम करने के लिए रोजाना औसतन 50 से 60 किलोमीटर की यात्रा करनी होती है लेकिन उन्हें इस काम के लिए महज 3 रुपये 33 पैसे प्रतिदिन के हिसाब से नियत यात्रा का भत्ता दिया जा रहा है। इस यात्रा भत्ता के विरोध में लेखपालों ने 19 नवंबर, 2019 से दो पहिया वाहनों का इस्तेमाल बंद कर दिया है, जिसका परिणाम यह है कि हजारों गांव और किसान लेखपाल के आने की सिर्फ आस लगाए बैठे हैं उनके आवेदन तहसील के बंडल में कैद हैं।

उत्तर प्रदेश लेखपाल संघ के प्रदेश अध्यक्ष राम मूरत यादव ने डाउन टू अर्थ से बताया कि सरकार और किसान के बीच का मजबूत पुल लेखपाल ही है लेकिन सरकार की नजर में सबसे ज्यादा उपेक्षित भी है। संघ की ओर से 04 जुलाई और 16 जुलाई, 2018 को सरकार के समक्ष लेखपालों के हक में जायज मांगे रखी गई थीं। एक वर्ष बीत गया है और अभी तक एक अदद मांग को पूरा नहीं किया जा सका है।

संघ के श्रावस्ती में जिला पदाधिकारी आशुतोष पांडेय ने बताया कि लेखपाल बेहद तनाव से गुजर रहे हैं। सरकार के तमाम दैनिक कार्यों को संपन्न करने के लिए काफी दौड़-धूप करनी होती है लेकिन उसका नतीजा उन्हें कुछ नहीं मिलता। एक सर्कल में करीब 3 से पांच गांव होते हैं, लेखपाल सेवा नियमावली के तहत एक लेखपाल को एक ही सर्कल दिया जाता है लेकिन लेखपालों की कमी के चलते कई लेखपालों को अतिरिक्त दो से तीन सर्कल तक दिए गए हैं।

एक लेखपाल को राशन के भंडार और वितरण की जांच, जिलाधिकारी व मुख्यमंत्री के संदर्भों का काम, ऑनलाइन पोर्टल पर की गई शिकायतों की जांच व निवारण, मिड डे मील की जांच, कृषि व पशु गणना, छह महीने व सालाना स्तर पर खेतौनी और खसरा, कृषि ऋण मोचन का निपटारा आदि कई काम करने होते हैं। ऐसे में वेतन विसंगति का भी मामला लेखपाल उठा रहे हैं। लेखपालों की मांग है कि 30 नवंबर, 1994 से पूर्व नियुक्त लेखपालों को 16 वर्ष के बाद एसीपी 4200 दी जा रही है जबकि 30 नवंबर, 1994 के बाद नियुक्त लेखपालों को 16 वर्ष बीत जाने के बाद अब भी 2800 ग्रेड पे दिया जा रहा है। ऐसे में यह विसंगति खत्म होनी चाहिए। वहीं, लेखपाल संघ ने कहा है कि  प्रारंभिक ग्रेड पे जो कि 2000 से बढ़ाकर 2800 करने की स्वीकृति हो चुकी है लेकिन अभी तक इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है।    

इस मामले में संघ के प्रदेश महामंत्री ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि राजस्व परिषद और शासन की तरफ से नाम परिवर्तन, नौकरी काडर प्रोन्नति, यात्रा भत्ता जैसी सभी प्रमुख मांगों को हरी झंडी मिली है लेकिन वित्त विभाग ने इसे अनुमति नहीं दी है। वित्त विभाग का कहना है कि लेखपालों की इन मांगों का कोई औचित्य नहीं है। ब्रजेश के मुताबिक प्रदेश में सभी पदों के नाम में परिवर्तन हुआ है लेकिन लेखपाल से राजस्व उप निरीक्षक नाम में परिवर्तन की मांग का औचित्य क्यों नहीं है?  

उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत अधिकारी को महीने भर का यात्रा भत्ता 750 रुपये मिलता है और खंड शिक्षा अधिकारी को यह यात्रा भत्ता बढ़ाकर 12,000 रुपये कर दिया गया है जबकि सिपाही को 200 रुपये और लेखपाल को महीने का करीब 100 रुपये नियत यात्रा भत्ता दिया जा रहा है।  

लेखपाल संघ के राम मूरत यादव ने बताया कि लेखपालों ने विरोध में खुद को जिला स्तर पर बनाए गए शासकीय व्हाट्स एप ग्रुप से भी अलग कर लिया है। राज्य में 31,800 से ज्यादा लेखपाल के पद स्वीकृत हैं और सिर्फ 23,500 लेखपाल कार्यरत हैं। ऐसे में 8000 पद खाली हैं जिसका काम कार्यरत लेखपाल ही कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यदि उनकी मांगें नहीं सुनी जाती हैं तो जल्द ही लेखपाल दैनिक कार्यों को छोड़कर पूरी तरह से आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर सकते हैं।