अर्थव्यवस्था

लाॅकडाउन से कैसे जूझ रहा है सुंदरवन?

सुंदरवन में लगभग 100 द्वीप हैं जिनमें से 54 द्वीप पर लोग रहते हैं। यहां की आबादी करीब 45 लाख है

Umesh Kumar Ray

कोरोनावायरस को लेकर जारी लाॅकडाउन के चलते लोगों को खाने के लाले हैं, लेकिन नदियों से घिरे सुंदरवन के बासंती द्वीप के निवासी अधेड़ किसान तापस अधिकारी इस कठिन वक्त में भी भोजन को लेकर आश्वस्त हैं क्योंकि उनके पास चावल का पर्याप्त स्टाॅक है।

"हमलोग द्वीप पर रहते हैं। यहां से दूसरे द्वीप या मेनलैंड में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन नाव भी कम ही चलती है। एक तरह से मेनलैंड से कटे हुए हैं, इसलिए हमलोग एहतियातन एक साल तक बैठ कर खाने लायक खाद्यान्न स्टाॅक कर रखते हैं। इस मुश्किल वक्त में यही स्टाॅक काम रहा है," तापस अधिकारी ने डाउन टू अर्थ को बताया। अधिकारी के मुताबिक, उनके पास अभी भी इतना खाद्यान्न बचा हुआ है कि ढाई-तीन महीने तक आराम से खा सकते हैं। 

सुंदरवन में लगभग 100 द्वीप हैं जिनमें से 54 द्वीप पर लोग रहते हैं। यहां की आबादी करीब 45 लाख है। ये आबादी मुख्य रूप से खेती करती है। कुछ परिवारों से एक-दो सदस्य बाहर कमाने जाते हैं, लेकिन वे भी खेती के वक्त लौट आते हैं। सुंदरवन के किसान मुख्य रूप से चावल की खेती करते हैं। साल में दो बार चावल की खेती होती है। किसान चावल बाजार में नहीं बेचते हैं बल्कि अपने खाने के लिए रखते हैं। चावल के अलावा नकदी बागवानी फसल पान की खेती होती है।

खाद्यान्न का स्टाॅक रखने के पीछे इन द्वीपों का मुख्यभूमि से कटा होना तो एक वजह है ही, दूसरी वजह ये भी है कि बारिश-तूफान के समय यहां का जनजीवन ठप हो जाता है। ऐसे में घर में रखा अनाज उनके काम आता है।

धान के साथ किसान सब्जियां भी उगाते हैं, जिसका इस्तेमाल वे खुद करते हैं और स्थानीय बाजारों में बेच देते हैं। तापस अधिकारी ने सात कट्ठे में बरबट्टी और मिर्च की खेती की है। वह घर से 12 किलोमीटर दूर बासंती बाजार में सब्जी बेचते हैं, लेकिन लाॅकडाउन कारण वह बाजार नहीं जा पा रहे हैं, इसलिए सब्जी स्थानीय लोगों को बेच रहे हैं। उन्होंने बताया, "स्थानीय लोगों को बेचने से कीमत कम मिल रही है, लेकिन सब्जी बिक जा रही है। अगर बाजार में बरबट्टी बेचता तो 30 रुपए किलो बिकता, लेकिन स्थानीय लोगों को 20 रुपए किलो बेचना पड़ रहा है।" सब्जी भी स्थानीय किसानों से मिल जाती है, तो यहां के लोगों को इसके लिए भी संघर्ष नहीं करना पड़ रहा है।

सुंदरवन के इन 56 द्वीपों पर रहने वाले हर परिवार ने अपने घर के सामने तालाब खुदवाया रखा है। दरअसल, यहां दैनंदिन के काम के लिए पानी की किल्लत रहती है, इसी वजह से लोगों ने तालाब बनवा रखा है। तालाब में लोग कपड़े धोते हैं, नहाते हैं और इसी का पानी मवेशियों के पीने के भी काम आता है। पीने का पानी लोग सरकारी ट्यूबवेल से भरते हैं। इन तालाबों में लोग मछलियां भी पालते हैं, जो अभी सब्जी के काम रही हैं।

गोसाबा ब्लाॅक के अमलामाथी गांव के निवासी गौर हरि दास ने दो तालाब खुदवा लगा है। एक 10 कट्ठे में और दूसरा 5 कट्ठे में। उन्होंने डाउन टू अर्थ से कहा, "इन दोनों तालाब में मैंने दो तीन तरह की मछलियां पाल रखी हैं। लाॅकडाउन में ये मछलियां हमारे भोजन के काम रही हैं। अभी मैं 10-15 दिन में एकाध बार ही बाजार जाता हूं, वह भी तब जब अलग वैराइटी की मछली खाने का मन होता है।"

गौर हरि दास ने बताया, "यहां के लोग किसानी करते हैं और सबके पास चावल और सब्जी पर्याप्त मात्रा में है, इसलिए खाने की दिक्कत किसी को नहीं हो रही है। हां, दैनिक मजदूरों को परेशानी जरूर हो रही है क्योंकि वे काम करने के लिए दूसरी जगह नहीं जा पा रहे हैं, लेकिन उन्हें खाद्य सुरक्षा एक्ट के तहत अनाज मिल रहा है।"