अर्थव्यवस्था

कॉरपोरेट कर व्यवस्था : दूर के ढोल सुहावने

Richard Mahapatra

31 अक्टूबर को जी-20 देशों (जी-20 विश्व के मुख्य अर्थव्यवस्थाओं का समूह) के प्रमुखों की रोम (इटली) में संपन्न हुई बैठक में न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स समझौते को मंजूरी प्रदान कर दी गई। निश्चित रूप से इसे “ऎतिहासिक” कहा जा सकता है क्योंकि यह पहला मौका है जब लगभग सभी देश वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट कर-दर पर सहमत हुए हैं।

इससे पहले 8 अक्टूबर को लगभग 136 देशों ने इस वैश्विक कर व्यवस्था को मंजूरी प्रदान कर दी थी। इस समझौते के दो उद्देश्य थे, पहला बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना मुनाफा कम टैक्स वाले या टैक्स न लगाने वाले देशों (टैक्स हैवेन्स) में स्थानान्तरित करने से रोकना और दूसरा, बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना टैक्स उसी देश में चुकाएं जहां उनकी आर्थिक गतिविधियों से मुनाफा हो रहा है, भले ही उनकी भौतिक उपस्थिति उस देश में न हो।

इस समझौते के तहत निगमों पर कराधान की व्यवस्था दो स्तम्भों वाली होगी। स्तम्भ-एक के अनुसार सरकारें निगमों के 10 प्रतिशत से अधिक मुनाफे पर टैक्स लगा सकती हैं। वहीं स्तम्भ-दो के अनुसार एक वैश्विक न्यूनतम कर दर 15 प्रतिशत रहेगा। स्तम्भ-दो वाली व्यवस्था उन्हीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर लागू होगी, जिनकी वैश्विक बिक्री 750 मिलियन यूरो डॉलर होगी। इसके साथ ही सरकारों को स्थानीय कॉरपोरेट कर लगाने का भी अधिकार रहेगा।

हालांकि अगर कंपनी 15 प्रतिशत से कम कर दे रही हैं तो उनकी गृह सरकारों को यह अधिकार रहेगा कि वह करों को उन न्यूनतम दरों तक बढ़ा सकती है जिस पर सहमति बनी है। स्तम्भ एक की कर व्यवस्था उन देशों की सरकारों को कंपनियों पर कर लगाने के लिए सशक्त बनाती है, जहां से वो अपना मुनाफा कमाती हैं। इसके अन्तर्गत कंपनियों द्वारा 10 प्रतिशत से अधिक अर्जित मुनाफे को अतिरिक्त आय के रूप में परिभाषित किया गया है और इस पर 25 प्रतिशत की दर से कर लगाने की अनुमति दी गई है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार (इस संगठन ने समझौते को आगे बढ़ाया है) इस नई कर व्यवस्था के अन्तर्गत विश्व की 90 प्रतिशत अर्थव्यवस्याएं आ जाएंगी। ओईसीडी के महासचिव मथायस कार्मन के अनुसार, “यह एक बड़ा और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण सुधार है जो हमारी अन्तरराष्ट्रीय कर व्यवस्था को न्यायपूर्ण बनाएगा और इस डिजिटलाइज्ड और वैश्वीकृत विश्व अर्थव्यवस्था में बेहतर काम करेगा।” यह नया कर समझौता बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर किए जाने वाले कर से बचाव के तरीकों और कर चोरी के खिलाफ डटकर लड़ी गई लड़ाई का परिणाम है। दुनियाभर के देश निवेश आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक रूप से निम्न कर व्यवस्था को अपनाते रहे हैं। इससे उसका जन्म हुआ जिसे हम “टैक्स हैवेन्स” के रूप में जानते हैं। ये वे देश या क्षेत्र हैं जहां से कॉरपोरेट घराने या तो काम करते हैं या जहां पंजीकृत हैं।

विश्व की 200 शीर्ष कंपनियों में से हर 10 में से 9 कंपनियों की उपस्थिति इन “टैक्स हैवेन्स” में हैं। वर्तमान कर कानूनों के अनुसार, वे जिन स्थानों पर आर्थिक गतिविधियां करती हैं, वहां कर अदा नहीं करती हैं। उदाहरण के लिए एक कंपनी जो भारत में व्यापार करती है परन्तु “टैक्स हैवेन्स” में पंजीकृत होने के कारण कमाए गए मुनाफे पर भारत में टैक्स अदा नहीं करती है। दूसरी बात ये है कि कॉरपोरेट घराने अपने संपूर्ण सामूहिक प्रदर्शन पर टैक्स अदा करती हैं न समूह के अलग-अलग संस्थाओं के व्यक्तिगत प्रदर्शन पर। सभ्य भाषा में हम इसे “टैक्स हैवेन्स” कहते हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुमान के अनुसार “कर बचाव” के कारण सरकारों को 200 बिलियन डॉलर से लेकर 600 बिलियन डॉलर तक का वैश्विक राजस्व का नुकसान हो रहा है। स्टेट ऑफ टैक्स जस्टिस 2020 रिपोर्ट ने पाया कि “टैक्स हैवेन्स में होने वाले कुल 427 बिलियन डॉलर के सालाना राजस्व नुकसान में, 245 बिलियन डॉलर का नुकसान बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा की जाने वाली प्रत्यक्ष कर चोरी से होता है और 182 बिलियन डॉलर का नुकसान निजी कर चोरी से होता है।”

निगमों ने बड़े पैमाने पर 1.38 ट्रिलियन डाॅलर के लाभ को उत्पन्न होने वाले देश से टैक्स हैवेन्स में स्थानांतरित कर, कर से बचा लिया। रिपोर्ट के अनुसार “निजी कर चोरों ने 10 ट्रिलियन डाॅलर से अधिक के अपतटीय भंडारण (ऑफ्शोर) के द्वारा जितना उन्हें टैक्स देना चाहिए था उससे कम टैक्स का भुगतान किया।” ये नुकसान विकसित और विकाशशील दोनों श्रेणी के देशों को हुआ है। थिंक टैंक टैक्स जस्टिस नेटवर्क के अनुसार, ये राजस्व नुकसान 500 बिलियन डाॅलर का है जिसमें 200 बिलियन डाॅलर का नुकसान कम आय वाले देशों को हुआ है।

परन्तु कम आय वाले देशों के लिए ये उस आय का नुकसान है जिसका प्रयोग महत्वपूर्ण विकास कार्यों को वित्त पोषित करने के लिए किया जा सकता था। उदाहरण के लिए इन देशों को होने वाला राजस्व नुकसान उनके संयुक्त सार्वजनिक स्वास्थ्य बजट का 52 प्रतिशत है। साल 2019 में अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा 1.9 डॉलर प्रतिदिन से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों की संख्या 650 मिलियन थी। कोई भी ये तर्क दे सकता है कि इस 500 बिलियन डाॅलर के नुकसान से अगर 2 डाॅलर प्रति व्यक्ति के हिसाब से मनी ऑर्डर कर दिया जाता तो सप्ताह के कुछ दिनों के लिए ही सही वैश्विक गरीबी को समाप्त किया जा सकता है। पिछले पांच वर्षों से विभिन्न देश इस पर बातचीत करते रहे हैं। ओईसीडी द्वारा चर्चा या प्रस्तावित बिंदुओं में (आवंटन प्रस्ताव, जो व्यक्तिगत संस्थाओं के बजाय बहुराष्ट्रीय समूह के मुनाफे का हिसाब करता है और फिर इसे असल आर्थिक गतिविधि की हिस्सेदारी के अनुपात में संचालन देशों के बीच टैक्स बेस के रूप में बांटता है) शामिल हैं।

वास्तव में ओईसीडी के पास पहले से ही “बेस इरोशन और प्रॉफिट शिफ्टिंग एक्शन प्लान” नामक एक योजना है। 2013-15 के दौरान इस योजना के तहत पंजीकरण के स्थानों और वास्तविक आर्थिक गतिविधियों के बीच लाभ के बंटवारे को कम करने का लक्ष्य बनाया। वर्तमान में कई कंपनियां देश-दर-देश व्यावसायिक गतिविधियों पर रिपोर्ट करती हैं। यह डेटा अनुपातहीन राजस्व विभाजन पर नजर रखने में मदद करता है। भारत और जी-24 के अन्य देशों ने कंपनी के रोजगार और बिक्री के स्थान के आधार पर देशों के कर लगाने के अधिकार पर जोर दिया है। कोविड-19 महामारी ने इसकी तत्कालिकता को और बढ़ा दिया।

महामारी से उत्पन्न आर्थिक मंदी से निपटने के लिए अमीर और गरीब दोनों तरह के देशों को अधिक संसाधनों की आवश्यकता है। कई देशों ने जिनमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मेजबानी करने वाले देश भी शामिल हैं, अपने देश में होने वाले लाभ को टैक्स हैवेन्स में स्थानान्तरित होने का दर्द महसूस किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस समझौते का समर्थन करते हुए इसे जल्द से जल्द लागू करने के लिए आवश्यक रूप से प्रोत्साहित किया है। इसके अतिरिक्त वैश्वीकृत और डिजीटल दुनिया में कंपनियां पेटेंट, साॅफ्टवेयर और बौद्धिक संपदा जैसे गैर-पारंपरिक स्रोतों से भी बहुत अधिक मुनाफा कमाती हैं।

वास्तव में अमेरिकी ट्रेजरी सचिव येलेन ने इस कर समझौते को “अमेरिकी परिवारों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार की जीत” के रूप में मनाया। कर समझौते के उपरांत उन्होंने कहा “हमने अमेरिका और दुनिया के लिए सालों से चल रही वार्ता को दशकों तक जारी रहने वाली समृद्धि में बदल दिया है। आज का समझौता आर्थिक कूटनीति के लिए कई पीढ़ियों में एक बार आने वाली उपलब्धि का प्रतिनिधित्व करता है।”

नए समझौते से कर योग्य राजस्व के ऊपर मिलने वाले कर में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी। ओईसीडी का अनुमान है कि नई न्यूनतम दरों के लागू होने से देशों को 150 बिलियन डाॅलर की अतिरिक्त सालाना आय होगी। जिन देशों में कंपनियां आर्थिक गतिविधियां करती हैं, इस समझौते के कारण उन देशों को 125 अरब डाॅलर के लाभ पर कर लगाने का मौका मिलेगा।

प्रथम दृष्टया कर राजस्व में अपेक्षित फेरबदल से विकसित और विकासशील देशों के बीच बराबरी का खेल होगा। स्टेट ऑफ टैक्स जस्टिस 2020 की रिपोर्ट के अनुसार ओईसीडी और जी-20 में प्रतिनिधित्व करने वाले विकसित देश कुल कर-नुकसान के 98 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं। विकासशील और गरीब देशों में इस प्रकार का नुकसान सिर्फ 2 प्रतिशत ही होता है। नये समझौते को मंजूरी देने वाला जी-20 वास्तव में 2020 में होने वाले कुल कर घाटे के 26.7 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार था, जिसके कारण देशों को सालाना 114 बिलियन डाॅलर का नुकसान हुआ। 2020 में कर से बचने के कारण जी-20 देशों को 290 मिलियन डाॅलर से अधिक का नुकसान हुआ। “कॉरपोरेट टैक्स हैवन इंडेक्स” 2021 कहता है कि वैश्विक कर नियम निर्धारित करने वाले ओईसीडी देश वैश्विक कॉरपोरेट दुरुपयोग के दो-तिहाई से अधिक हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं।

समझौते का जैसा विवरण सामने आ रहा है, उससे लगता है कि विकासशील देशों की अपेक्षा इसका ज्यादा फायदा अमीर देशों को ही अधिक होगा। इसके अलावा कंपनियां टैक्स हैवेन्स का रास्ता अपनाए बिना भी कर बचाना जारी रख सकती हैं। वैसे भी, यह समझौता कॉरपोरेट मुनाफे के बहुत छोटे से हिस्से पर लागू होता है और कुछ कंपनियों तक ही सीमित होता है। प्रभावी रूप से यह समझौता दुनिया की 100 शीर्ष कंपनियों को ही लक्षित करता है। देशों के पास अब पहले प्रस्तावित पांच वर्षों की जगह समझौते को रोल आउट करने के लिए 10 वर्ष का समय होगा।

बहुत सारे लोग 15 प्रतिशत के प्रस्तावित दर को कम महत्वाकांक्षी मान रहे हैं। समझौते पर हस्ताक्षर होने से पहले प्रस्तावित मसौदे में “कम से कम 15 प्रतिशत” जिसे बाद में बदलकर केवल 15 प्रतिशत कर दिया गया था। “कम से कम” का मतलब उच्च कर के लिए एक बड़ा दायरा था। 2021 की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र ने 20 से 30 प्रतिशत कॉरपोरेट कर की सिफारिश की थी। वहीं अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट टेक्सेशन के सुधार के लिए स्वतंत्र आयोग ने 25 प्रतिशत वैश्विक न्यूनतम कर लागू करने का प्रस्ताव किया था।

अनुमानों के अनुसार 15 प्रतिशत की जगह कर की दर 25 प्रतिशत होने से विश्व के सबसे गरीब 38 देशों को सालाना 17 मिलियन डॉलर अधिक प्राप्त होते। कई विकासशील देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के बावजूद यह चिंता व्यक्त की है कि प्रौद्यौगिकी कंपनियां पर सभी मौजूदा एकतरफा करों को हटाकर ही उनकी नए कर नियमों तक पहुंच होगी। कई देश डिजीटल सेवाओं पर कर लगाकर अच्छा खासा राजस्व अर्जित करते हैं। इसके अलावा यह कर बड़ी संख्या में कंपनियों को कर राजस्व के लिए शामिल करता है और कई मामलों में तो वो नई व्यवस्था के तहत अपेक्षित कर से अधिक कमाते हैं।

अपना कारोबार करने वालों देशों में कंपनियों पर कर लगाने के प्रावधान से विकासशील देशों को अधिक लाभ नहीं होने वाला क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में कंपनियां शामिल नहीं होंगी।

गैर-लाभकारी संस्था ऑक्सफेम के अनुसार यह केवल 69 बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रभावित करेगा और केवल 10 प्रतिशत से अधिक “सुपर प्राॅफिट्स” पर लागू होगा।

ऑक्सफेम का अनुमान है कि स्तम्भ एक के प्रस्ताव से 52 विकासशील देशों को अतिरिक्त वार्षिक कर राजस्व में अपने सामूहिक सकल घरेलू उत्पाद का 0.025 प्रतिशत प्राप्त होगा। ऑक्सफेम की टैक्स पॉलिसी प्रमुख सुजाना रूइज कहती हैं, “टैक्स हैवन्स युग को समाप्त करने वाला एक ऐतिहासिक समझौता बनने की बजाय यह समृद्ध देशों के लिए रफ्फू (स्ट्रिच-अप) बनता जा रहा है। उनके अनुसार, “15 प्रतिशत की निश्चित वैश्विक दर के प्रस्ताव से अमीर देशों को भारी लाभ होगा और असमानता में वृद्धि होगी। जी-7 और ईयू दो-तिहाई नकदी घर ले जाएंगे जबकि दुनिया के सबसे गरीब देश जहां दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी निवास करती है, 3 प्रतिशत से भी कम की वसूली कर पाएंगे।” टैक्स जस्टिस नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी निदेशक एलेक्स कोबम के अनुसार, कर के जिस दर पर सहमति बनी है, वह शायद ही कर चोरी और लाभ स्थानान्तरण को रोकने के अपने उद्देश्य में मदद कर पाएगा। स्तम्भ दो वैश्विक न्यूनतम दर निर्धारित करता है लेकिन 15 प्रतिशत दर इतनी कम है कि लाभ के स्थानान्तरण को रोकने के लिए प्रोत्साहन भर ही होगा और राजस्व के अधिकांश हिस्से पर अमेरिका और कुछ अन्य देशों का कब्जा हो जाएगा।

नए कर समझौते के साथ कर व्यवस्था को समावेशी(इन्क्लूसिव) बनाने की मांग बढ़ रही है। कई लोगों का यह मानना है कि ओईसीडी की ब्रोकर्ड डील में विकासशील देशों की चिंताओं को शामिल नहीं किया गया है और कर का पुनर्वितरण भी न्यायपूर्ण नहीं है।

ग्लोबल एलायंस फॉर टैक्स जस्टिस के कार्यकारी निदेशक डेरजे अलमेयाहू का कहना है कि ओईसीडी की समावेशी होने के वादे के साथ-साथ अन्य वादों की लगातार विफलता ने इस बात को अनिवार्य बना दिया था कि वार्ता के लिए संयुक्त राष्ट्र को एक वैध विकल्प के रूप में रखा जाए। इसी समय विभिन्न राष्ट्र प्रमुखों का एफएसीटीआई (संयुक्त राष्ट्र के पैनल फाइनेंशियल अकाउंटबिलिटी, ट्रांसपरेंसी एंड इंटेग्रिटी) के द्वारा तैयार कर सुधार के ब्लूप्रिंट के आधार पर संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में वैश्विक कर सम्मेलन के लिए सहमत होना, इसी आह्वान की दिशा में की गई पहल है।

टैक्स जस्टिस नेटवर्क में कर सूचकांकों के प्रमुख शोधकर्ता मोरन हेरारी का कहना है कि ओईसीडी को अपने सबसे शक्तिशाली देशों का समर्थन प्राप्त करने के लिए कर नियमों को इतना हल्का कर देना पड़ा था कि यह लगभग प्रभावहीन हो गया था। ओईसीडी के वैश्विक कर नियमों ने टैक्स हैवन्स को समाप्त करने की जगह उन्हें सामान्य बना दिया था। केवल एक ऐसा संयुक्त राष्ट्र कर सम्मेलन ही टैक्स हैवन्स को अतीत की बात बना सकता है, जहां वैश्विक कर नियम धनकुबेरों के द्वारा नहीं बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से तय किए जाएं।

वैश्विक कर प्रणाली

जी-20 और जी-77 (विश्व के अधिकांश देशों और लगभग संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं) ने वैश्विक न्यूनतम कारपोरेट कर को मंजूरी प्रदान कर दी है। ओईसीडी के अनुमान के अनुसार, इसमें 90 प्रतिशत वैश्विक अर्थव्यवस्था शामिल है। इस व्यवस्था में दो स्तम्भ हैं।

स्तम्भ-१

इसके तहत विश्व की 100 शीर्ष कंपनियों के प्रभावित होने का अनुमान है। इसके तहत आने वाला कर प्रावधान देशों को उन कंपनियों पर टैक्स लगाने का अधिकार देते हैं, जहां से वे अपना राजस्व प्राप्त करती हैं। इसके तहत कंपनियों के अतिरिक्त लाभ (जिसे कंपनियों द्वारा अर्जित कुल लाभ के 10 प्रतिशत से अधिक के रूप में परिभाषित किया गया है) पर 25 प्रतिशत की दर से कर लगाया जाएगा।

स्तम्भ-2

यह उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर लागू होगा, जिनका कुल वैश्विक व्यापार 750 मिलियन यूरो (लगभग 866 मिलियन यूएस डाॅलर) से अधिक होगा। न्यूनतम कर दर 15 प्रतिशत है। अगर कोई कंपनी 15 प्रतिशत से कम कर देती है तो उस कंपनी के गृह देश की सरकार को न्यूनतम कर की दर तक अतिरिक्त कर लगाने का अधिकार होगा।