अर्थव्यवस्था

भारत में औसत से 50% तक कम कमाते हैं घर से काम करने वाले कामगार: आईएलओ

आईएलओ के अनुसार लॉकडाउन से पहले करीब करीब 26 करोड़ लोग घर से काम करते थे, लॉकडाउन के बाद इनकी आबादी में बड़ी तेजी से इजाफा हुआ है

Lalit Maurya

हाल ही में आईएलओ द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट 'वर्किंग फ्रॉम होम: फ्रॉम इनविसिबिलिटी टू डीसेंट वर्क' से पता चला है कि भारत में घर से काम करने वाले कामगार औसत से 50 फीसदी तक कम कमाते हैं। इसी तरह अर्जेंटीना और मेक्सिको में भी घर से काम करने वालों की आय, बाहर काम करने वालों की तुलना में 50 फीसदी तक कम होती है।

वहीं, दक्षिण अफ्रीका में 25 फीसदी, अमेरिका में 22 और यू के में घर से काम करने वालों की आय औसत से 13 फीसदी तक कम होती है। ऐसा सिर्फ निचले स्तर के कामगारों के साथ ही नहीं हुआ है बल्कि उच्च और कुशल कामगारों पर भी इसका असर पड़ा है।

सिर्फ आय ही नहीं घर से काम करने वालों के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा सम्बन्धी जोखिम भी ज्यादा है। साथ ही इन लोगों को अन्य कामगारों की तुलना में प्रशिक्षण मिलने की सम्भावना भी कम है, ऐसे में इनके कैरियर और भविष्य की संभावनाओं पर भी असर पड़ रहा है।

महिलाओं की एक बड़ी आबादी भी हैं इनमें शामिल

कोरोनावायरस और उससे हुए लॉकडाउन ने बहुतों की जिंदगी को बदल दिया है। आज करोड़ों लोगों के कामधंधों पर इसका असर पड़ा है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार लॉकडाउन से पहले करीब करीब 26 करोड़ लोग घर से काम करते थे। जोकि वैश्विक कामगारों का 7.9 फीसदी हिस्सा था। इनमें से एक बड़ी आबादी 56 फीसदी महिलाओं की थी, जोकि 14.7 करोड़ के आस-पास थी। लेकिन आईएलओ का मानना है कि लॉकडाउन के बाद इनकी आबादी में तेजी से बढ़ी है और यह आंकड़ा दोगुने से ज्यादा हो चुका है।

चूंकि ज्यादातर घर से काम करने वाले कामगार प्राइवेट सेक्टर से जुड़े होते हैं ऐसे में वो कभी सामने ही नहीं आ पाते। गरीब और विकासशीलदेशों में इनकी एक बड़ी आबादी है। वहां के घर से काम करने वाले लगभग 90 फीसदी कामगार अनौपचारिक रूप से काम करते हैं। जिसका मतलब है कि न तो उनका कोई बीमा होता है न उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधा या सुरक्षा मिलती है। उन्हें बस अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम करना होता है।

घर से काम करने वाले इन लोगों को न तो अन्य श्रमिकों की तरह सामाजिक सुरक्षा मिलती है न ही वो किसी ट्रेड यूनियन आदि का हिस्सा होते हैं। ऐसे में उन्हें सबका साथ भी नहीं मिलता है। इनमें टेलीवर्कर्स, कढ़ाई, हस्तशिल्प, छोटी-मोटी चीजों का निर्माण करने वाले, इलेक्ट्रॉनिक असेंबली, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर काम करने वाले, बीमा से जुड़े लोग आदि शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के पहले महीने में हर पांच में से एक कामगार घर से काम करता था। अनुमान है कि यह स्थिति आने वाले वर्षों में भी बनी रहेगी। ऐसे में घर से काम करने वालों की समस्याओं और मुद्दों पर ध्यान देना जरुरी है। आज भी घर से काम करने वाले लोगों पर ध्यान नहीं दिया जाता। न तो इनसे जुड़े कोई विशेष नियम कानून हैं यदि हैं भी तो उनका ठीक से पालन नहीं होता है। कई जगह इन्हें स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, यही वजह है कि इन्हें श्रम कानून के दायरे से बाहर रखा जाता है।

ऐसे में यह जरुरी है कि इन कामगारों को भी अन्य की तरह ही देखा जाए और उनके समान ही सुरक्षा और सुविधाएं दी जाएं। इनके लिए भी कानून बने और उन्हें वर्तमान नियमों में शामिल किया जाए। उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाए। वो भी हमारे समाज और अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा हैं उन्हें इस बात का आभास होना चाहिए। जिससे वो अंधियारे कोने से निकलकर रोशन हों सके।