कलीम सिद्दीकी
कोरोनावायरस की वजह से घोषित लॉकडाउन के बाद बहुत से प्रवासी मजदूर लौट गए, लेकिन बड़ी संख्या में ये मजदूर जगह-जगह फंस गए हैं। दावों के बावजूद प्रशासन उन्हें खाना मुहैया नहीं करा पा रहा है, तब कई सामाजिक संगठन आगे आए हैं। गुजरात के अहमदाबाद में जगह-जगह स्वयंसेवी संगठन प्रवासी मजदूरों को खाना खिलाने आगे आए हैं।
31 मार्च को रिहाई मंच के तारिक शफीक ने आजमगढ़ से अहमदाबाद के कलीम अंसारी को फोन पर जानकारी दी कि हमारे गांव निजामाबाद के मिथिलेश सरोज, जो प्रिंटिंग का काम करते हैं और अहमदाबाद के सरखेज में रहते हैं के पास खाने को कुछ नहीं है अंसारी ने मिथिलेश से फोन पर बात की तो बताया वह कई दिनों से बिस्कुट, नमकीन खाकर अपना पेट भर रहे हैं। जमाते इस्लामी हिंद नाम के संगठन से जुड़े कलीम अंसारी मिथिलेश और उनके साथियों के लिए राशन की व्यवस्था की।
इसी तरह अहमदाबाद के बोपल में रह रहे इंद्र पाल यादव को अनहद संस्था की तरफ से देव देसाई ने पके खाने की व्यवस्था की। इंद्र पाल अहमदाबाद की सड़कों पर अपनी कमर में भेल पूरी की टोकरी बांधकर भेल और सेव बेचकर जीवन व्यापन करते हैं। अचानक सब कुछ बंद हो जाने से गांव भी नहीं जा सके। अब हम लोगों को रोटी की समस्या हो रही है।
देव देसाई के अनुसार उनका परिवार भले ही गरीब हो, लेकिन वे अपने शहर में रह रहे प्रवासी मजदूरों के लिए कच्चे राशन की व्यवस्था कर रोटी का जुगाड़ कर ले रहे हैं।
अचानक लॉक डाउन के कारण सब कुछ बंद हो जाने और सरकार की तरफ से कोई वैकल्पिक व्यवस्था न होने के कारण जीआईडीसी और कारखानों में रहने वाले मजदूर दो वक्त का भोजन नहीं जुटा पा रहे हैं।
देव आगे बताते हैं कि शहरी दिक्कतों को देखा जा सकता है परंतु ग्रामीण गुजरात में भी समस्याएं हैं। उदाहरण के तौर पर मलधारी समाज (पशु पालक) घुमंतू जाति है जो अपने पशुओं को लेकर चराने के लिए घूमते फिरते हैं उनका एक ठिकाना नहीं होता। लॉकडाउन और कोरोना के भय के कारण ग्रामीण अपने गांव में घुसने भी नहीं देते जिस कारण उन्हें भी भूख पूरी करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
अहमदाबाद के बापूनगर स्थित विकास इंडस्ट्रियल एस्टेट में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 20-21 मुस्लिम मजदूर रहते हैं। लगभग एक सप्ताह वे किसी तरह अपना पेट पालते रहे, तब किसी ने उनके हालात की जानकारी बापू नगर पुलिस को दी। पुलिस ने क्षेत्र के सामाजिक संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद से बात की। तब संस्था ने उन्हें खाना मुहैया कराया।
लॉक डाउन के तीसरे दिन अहमदाबाद के राखियाल उद्योग विस्तार में स्थित लोटस रेसीडेंसी के राजू भाई ट्रेवल्स वाला को पता चला पड़ोस के अर्चना एस्टेट और बैनर एस्टेट में कई प्रवासी मजदूर भूखे हैं। तो उन्होंने लोटस रेसीडेंसी के अन्य नागरिकों से बात कर दोनों एस्टेट का सर्वे किया तो पता चला 135 प्रवासी मजदूर हैं लॉक डाउन के कारण भूखे सोना पड़ रहा है। रेसीडेंसी के नागरिकों ने हर घर से एक टिफिन प्रवासी मजदूर को पहुंचना शुरू किया तो दो दिन में संख्या 400 पार कर गई। अब रेसीडेंसी ने लंगर ही शुरू कर दिया।
दरअसल, प्रशासन प्रवासी मजदूरों की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। बांध काम मजदूर संगठन के विपुल पांड्या कहते हैं कि मजदूरों को मदद पहुंचा। सरकार को लॉकडाउन से पहले राज्यों के श्रम विभाग से चर्चा करनी चाहिए थी और इस बारे में प्लानिंग बनाई जानी चाहिए थी। जो नहीं हुई, जिस कारण गुजरात सहित पूरे देश में अराजकता फैली। गुजरात में पचास लाख प्रवासी मजदूर हैं। जिनकी बड़ी संख्या अहमदाबाद, सूरत, अलंग सहित राज्य के हर कोने में है। गुजरात की कांस्ट्रक्शन साइट पर अधिकतर पंचमहल और झाबुआ जिले के आदिवासी मजदूर काम करते हैं। लॉकडाउन का आधा समय बीत जाने के बाद राज्य सरकार ने बांधकाम मजदूरों को एक हजार रुपए देने की घोषणा की, जबकि बिल्डिंग एंड अदर कांस्ट्रक्शन वर्कर्स वेल्फेयर बोर्ड में 2900 करोड़ रुपए का वेल्फेयर फंड है। फिर भी राज्य सरकार द्वारा ऐसे समय में केवल 1000 रुपये प्रति मजदूर घोषणा बहुत कम है। बोर्ड में 6,45,000 मजदूर पंजीकृत हैं। सरकार कांस्ट्रक्शन मजदूर की संख्या 12,00,000 मान कर चल रही है। वास्तव में संख्या इससे भी अधिक है।