अर्थव्यवस्था

बिना हथकरघा बोर्ड के राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मना रही है सरकार

Joyjeet Das

जब भारत आज यानी 7 अगस्त, 2020 को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मना रहा है तो यह इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड के बिना यह दिन मनाया जा रहा है। क्योंकि केंद्र सरकार ने हाल ही में अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड को समाप्त कर दिया है। इस संबंध में केंद्र और कपड़ा मंत्रालय ने दो अलग-अलग अधिसूचनाएं जारी की थी। पहली 27 जुलाई और दूसरी 3 अगस्त को। इस संबंध में जब केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय से फोन पर जानकारी मांगी गई तो किसी प्रकार के सवाल का उत्तर नहीं दिया गया।

ध्यान रहे कि हथकरघा बोर्ड का गठन 1992 में किया गया था। और इस सेक्टर के समग्र विकास व संपूर्ण नीतियां को तैयार करने में सरकार को एक सही सलाह देने के लिए इस बोर्ड का गठन किया गया था। ध्यान देने वाली बात है कि मंत्रालय के पास पावरलूम क्षेत्र के साथ-साथ कपास व जूट के लिए समान सलाहकार बोर्ड भी मौजूद हैं। हथकरघा और हस्तशिल्प देश में ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बड़ी संख्या को लोगों को रोजगार मिलता है। यह याद रखने वाली बात है कि इस सेक्टर को ग्रामीण अंचल के भारत में खेती के बाद ऐसा दूसरे सेक्टर माना जाता है, जहां लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार मिलता है।

कोरोनावायरस महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन ने इस सेक्टर को प्रभावित किया है। इस संबंध में वाराणसी में बुनकरों के साथ काम करने वाले वासन्थी रमन बताते हैं कि बोर्ड के खत्म होने से छोटे स्तर के कारीगरों का भविष्य अंकारमय हो गया  है। बुनकरों और इससे जुड़े श्रमिकों की तीसरी राष्ट्रीय हथकरघा जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 28 लाख  परिवार हैंडलूम के काम से जुड़े हुए हैं और इनमें अधिकांशत: ग्रामीण अंचलों से आते हैं। इनमें से लगभग 17 लाख परिवार उत्तर-पूर्व से थे। 

वास्तव में जनगणना में यह बात निकलकर आई कि इन श्रमिकों में तीन-चौथाई से अधिक महिलाएं हैं। इसके अलावा इन परिवारों में से दो-तिहाई लोग हथकरघा क्षेत्र में पूर्णकालिक श्रमिक थे। अधिकांश बुनकरों ने स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है। लगभग 80 से 90 प्रतिशत बुनकरों के पास सरकारी लाभ प्राप्त करने के लिए आईडी या बैंक खाते तक नहीं हैं।  गैर-लाभकारी संगठन “सेव द लूम” के संस्थापक रमेश मेनन ने कहा कि इस तरह के सलाहकार बोर्डों की शासन संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विभिन्न हितधारकों के लिए इसने एक मंच प्रदान किया और इसने दौरान कई समस्याओं पर काबू पाया। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह संस्थान जो राजनीति के एक अलग युग से निकल आया था, इसे लगातार पुनर्गठित किया गया है।यही नहीं यह भी ध्यान देने वाली बात है कि ये निकाय मुश्किल से ही सरकारी खजाने पर बोझ डालते है। 

रमन बताते हैं कि पिछले 25 वर्षों में हथकरघा क्षेत्र ने लगभग आधे कार्यबल खो दिया है। इस बोर्ड के बंद होने की खबर पर 4 अगस्त, 2020 को की गई अपनी एक पोस्ट पर दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संगठन दास्तकार की संस्थापक लैला तैयबजी ने कहा, बिना किसी चेतावनी के कोविड-19 समय में कई अजीबो गरीब चीजें होती हैं। बोर्ड के खत्म किए जाने पर रमन ने कहा, सरकार के इस कदम से छोटे स्तर के कारीगर खत्म हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि समस्या केवल दो बोर्डों के खात्मे के बारे में नहीं है, बल्कि संस्थागत संरचनाओं को ध्वस्त करने वाले बड़े नीतिगत ढांचे की है।