ए. अन्ना मलई
जब पूरे विश्व ने गिरमिटिया श्रम को एक सामाजिक व्यावस्था के रूप में स्वीकार कर लिया था, तब गांधी जी ने इस प्रथा का पुरजोर विरोध किया था। यही नहीं जब पूरी दुनिया में हिंसात्मक युद्ध छिड़ा हुआ था, तब गांधी जी ने अहिंसात्मक युद्ध शुरू कर दिया था। उन्होंने हिंसात्मक इतिहास को अहिंसा में बदल दिया। राजनीतिक संघर्ष हल करने के लिए जिस तरह से उन्होंने अहिंसात्मक प्रतिरोध यानी सत्याग्रह का उपयोग किया, इससे हुआ ये कि बाद की दुनिया में राजनीतिक संघर्षों के हल क लिए यह सर्वोत्म माध्यम बन गया। गांधी जी हिंसात्मक कार्यों के दुष्प्रभावों से अच्छी तरह वाकिफ थे। वह खुद दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध और जुलू विद्रोह के दौरान युद्ध के साथ जुड़े हुए थे और तब तक वे दो विश्व युद्ध की विभिषिका से परिचित हो चुके थे। यह याद करने वाली बात है कि 1915 से लेकर 1945 तक कि काल अवधिक को इतिहास में एक महत्वपूर्ण समय माना जाता है। पूरी दुनिया ने माना कि हिंसक तरीके से विवादों को केवल निपटाया जाता है, उस विवाद की जड़ को खत्म नहीं किया जाता। वास्तविकता यह है कि युद्ध में मुद्दों को निपटाने के लिए एक साधन के रूप में स्वीकार कर लिया गया था। उस समय के विश्व के तमाम छोटे-बड़े नेता प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध और यूरोप में हो रहे कई युद्धों में शामिल थे। लेकिन उसी समया अवधि में जब पूरी दुनिया हिंसात्मक युत्द्ध में उलझी हुई थी और इसी पर उसने अपना विश्वास कायम किया हुआ था, तब ऐसे विपरित परिस्थिति में गांधी जी अकेले ऐसे शख्स थे, जिन्होंने सोचा था कि युद्ध और हिंसा का अधिक रचनात्मक विकल्प होना चाहिए।
यही कारण है कि गांधी जी ने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में सीधे अहिंसात्मक कार्रवाई शुरू की। यहीं से उन्होंने पूरी दुनिया में सत्य और अहिंसा की वास्तविक शक्ति का सफलतापूर्वक न केवल प्रदर्शन किया बल्कि इसे साबित करने में वे सफल भी रहे। गांधीजी ने सावधानीपूर्वक दुनिया को अहिंसा के नए रूप से न केवल परिचित बल्कि इसे जीने का एक मार्ग भी बताया। और वे दुनिया के सामने यह सिद्ध करने में सफल रहे कि एक सभ्य समाज के लिए संघर्ष के संकल्प की सबसे व्यावहारिक और शक्तिशाली तकनीक अहिंसा में निहित है। गांधी की अहिंसा स्थिर नहीं है, यह बदलती स्थितियों के लिए विकसित और अनुकूल है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका और भारत में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ अपने अहिंसात्मक प्रतिरोध का इस्तेमाल किया। उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ने के लिए अहिंसक तरीकों का इस्तेमाल किया। उन्होंने माना कि “हिंसा किसी दुश्मन को कमजोर कर सकती है, लेकिन यह लोगों को इस एजेंडे को गले लगाने के लिए कतई मजबूर नहीं कर सकती। सत्ता के लिए अपने तरीके से पुराने आदेशों को नष्ट कर सकते हैं, लेकिन आप अपने लोगों को तब तक मुक्त नहीं कर सकते जब तक वे आपको अपनी सहमति नहीं देते।”
एक गरीब आदमी महसूस करता है कि वह अन्य से बेहतर है, वास्तव में वह अंधेरे में है। गांधी जी आम आदमी की दुर्दशा से बहुत अधिक चिंतित थे। उन्होंने महसूस किया कि हमें वर्तमान स्थिति को बदलना होगा ताकि गरीब व्यक्ति भी सम्मान के साथ अपना सिर उठा सके। ऐसा करने के लिए उन्होंने तीन तरीके खोजे, नफरत के स्थान पर प्रेम का बर्ताव किया जाना चाहिए। लालच को प्यार से बदलें और ऐसे में सब कुछ ठीक हो जाएगा। अगर इसका पालन सच्ची भावना से किया जाए तो यह लोगों के साथ काम करने के लिए एक पेशेवर तरीके से काम करने के विश्वास को और आगे बढ़ाएगा।
इसलिए उन्होंने इस बात का आह्वान किया कि क्रोध व नफरत को प्यार और करुणा के मूल्य से बदलना चाहिए। हमारे मन में क्रोध और घृणा छा जाती है और हिंसक कार्य करने के लिए उतारु हो जाते हैं। गांधी जी ने इस विनाशकारी वृत्ति को दूर करने का सूत्र दिया कि तर्क मस्तिष्क से आता है और सहानुभूति दिल में रहती है। हमें सत्य का पालन करना है ताकि मस्तिष्क से यह हृदय तक फैल जाए। मस्तिष्क द्वारा प्राप्त किसी भी सत्य को तुरंत हृदय तक भेजना चाहिए। जब तक इसे नीचे नहीं भेजा जाता है, तब तक यह मस्तिष्क के लिए जहर जैसा होता है और पूरे तंत्र को जहरीला बना देता है। इसलिए, मस्तिष्क का उपयोग करने की आवश्यकता है। जो भी प्राप्त होता है उसे तत्काल कार्रवाई के लिए हृदय में प्रेषित किया जाना चाहिए।
करुणा और प्रेम के साथ और विरोधी के प्रति बिना घृणा या क्रोध के हम रचनात्मक ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं। “मानव प्रजातियों की एकता केवल एक जैविक और शारीरिक तथ्य नहीं है, यह तब होता है जब एक बड़ी शक्ति समझदारी से पूरी तरह से मुखर होकर काम करती है।” उन्होंने कहा कि अहिंसा से बढ़कर कोई भी ऐसा हथियार नहीं है, जिसे दृढ़ विश्वास के साथ, साहस के साथ, विश्वास के साथ संभाला जाए। पढ़ना, लिखना आदि लेकिन यह आवश्यक है कि हमें अपने साथियों से प्रेम करने की कला और जीवन जीने की कला भी सीखनी चाहिए।
हमें संघर्ष और अस्तित्व के लिए संघर्ष की अवधारणा से पारस्परिक सहायता और सहयोग के लिए आगे बढ़ना है। गांधी के व्यावहारिक विचारों ने लोगों की जरूरतों के साथ प्रकृति के सामंजस्य को एक नई दृष्टि दी है। सत्य और अहिंसा, सरल जीवन और उच्च विचार और समग्र विकास के उनके विचारों से पता चलता है कि प्रकृति और हमारे साथी जीवों को नष्ट किए बिना सतत विकास कैसे संभव है। वह मनुष्य और प्रकृति के बारे में अपने विचारों में स्पष्ट थे और उन्होंने सभी जीवित और निर्जीव प्राणियों के बीच सहजीवी संबंध को समझा। उनका विचार है कि प्रकृति में हर एक को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा है, लेकिन किसी के लालच को संतुष्ट करने के लिए नहीं। आधुनिक पर्यावरणवाद के लिए यह पंक्ति एक महावाक्य बन गई है। गांधी पृथ्वी को एक जीवित जीव मानते थे।
हाल की महामारी ने हमारी आंखों को वास्तविकताओं से परिचित कराया है। शहर और शहरी क्षेत्र, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक असुरक्षित हैं। हमारा विकास मॉडल मौलिक रूप से कैसे गलत है। इस संदर्भ में, हम गांधी द्वारा प्रस्तावित विकास के विचारों पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर हैं। उनका आर्थिक दर्शन स्थिर नहीं, बल्कि जीवंत और व्यापक रहा है। यह तकनीक केंद्रित नहीं है, बल्कि जन केंद्रित है। मुट्ठी भर शहरों का विकास हमारी आर्थिक समस्याओं को हल नहीं कर सकता है। वास्तव में यह हमारी समस्याओं को और बढ़ाएगा। इसलिए गांधी ने गांवों के आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। बड़े पैमाने पर उत्पादन की बजाय, उन्होंने छोटे पैमाने पर उत्पादन का सुझाव दिया। केंद्रीकृत उद्योगों के बजाय, उन्होंने विकेंद्रीकृत छोटे उद्योगों का सुझाव दिया। बड़े पैमाने पर उत्पादन केवल उत्पाद से संबंधित होता है, जबकि जनता द्वारा उत्पादन का संबंध उत्पाद के साथ-साथ उत्पादकों से भी है और इसमें शामिल प्रक्रिया से भी है। उनका एक आदर्श गांव का सपना था। बड़े पैमाने पर उत्पादन से लोग अपने गांव, अपनी जमीन, अपने शिल्प को छोड़कर कारखानों में काम करने पर मजबूर हो जाते हैं। गरिमामय जिंदगी और एक स्वाभिमानी ग्राम समुदाय के सदस्यों के बजाय, लोग मशीन के चक्रव्यू में फंस कर रह जाते हैं और मालिकों की दया पर जिंदगी गुजरबसर करने लगते हैं।
हमने यह भी देखा है कि इस दौरान प्रवासी श्रमिक के साथ कैसा व्यवहार किया गया। कैसा अमानवीय व्यवहार। हमें अपने महानगरों और पुलों के निर्माण के लिए उनकी आवश्यकता थी लेकिन हम उनकी आवश्यकता नहीं हैं। उन्होंने हमारे जीवन को आसान बना दिया लेकिन हमने उन्हें क्या दिया। यह विनाशकारी विकासात्मक मॉडल प्रवासी लोगों को बेरोजगार करता है।
आज, जब हमारे सार्वजनिक जीवन के साथ-साथ हमारे निजी जीवन में नैतिक मूल्यों का गहरा क्षरण हुआ है और जब नैतिक सिद्धांत राजनीति से लगभग गायब हो गए हैं, तो गांधीवादी मूल्य एक प्रभावी विकल्प के रूप में दिखाई देते हैं। अपने समय में गांधी जी ने न केवल राजनीतिक बल्कि देश को नैतिक नेतृत्व भी प्रदान किया, जो कि अब दुनिया से गायब हो चुका है। जैसा कि मार्टिन लूथर किंग ने सही कहा, “गांधी अपरिहार्य थे। अगर मानवता की प्रगति करनी है, तो गांधी अपरिहार्य हैं। उन्होंने शांति और सद्भाव की दुनिया विकसित करने की ओर प्रेरित किया। हम अपने जोखिम पर गांधी की उपेक्षा कर सकते हैं।”
(लेखक दिल्ली स्थित राष्ट्रीय गांधी म्यूजियम के निदेशक हैं)
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