अर्थव्यवस्था

फ्री ट्रेड एग्रीमेंट: सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद दाल क्यों आयात करता है भारत

Anil Ashwani Sharma, Raju Sajwan

भारत सरकार का दावा है कि वह अब तक हुए सभी मुक्त व्यापार समझौतों (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट, एफटीए) की समीक्षा कर रही है। यह तो आने वाले वक्त बताएगा कि समीक्षा में क्या निकलेगा, लेकिन डाउन टू अर्थ ने एफटीए के असर की पड़ताल की और रिपोर्ट्स की एक सीरीज तैयार की। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट क्या है। पढ़ें, दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा कि आखिर केंद्र सरकार को आरसीईपी से पीछे क्यों हटना पड़ा। तीसरी कड़ी में अपना पढ़ा कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स की वजह से पुश्तैनी काम धंधे बंद होने शुरू हो गए और सस्ती रबड़ की वजह से रबड़ किसानों को खेती प्रभावित हो गई। चौथी कड़ी में अपना पढ़ा, फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स ने चौपट किया कपड़ा उद्योग । पांचवीं कड़ी पढ़ें-  

दाल का कटोरा कहे जानेवाले बिहार के मोकामा के किसान  आनंद मुरारी अपने खेतों में दाल उगाते आए हैं, लेकिन दो साल से दाल में हो रहे नुकसान की वजह से अब दाल की खेती कम कर दी हैं। मुरारी कहते हैं, “वर्ष 2015-2016 में हमने 7,800 रुपए क्विंटल मसूर दाल बेची थी, लेकिन अगले ही साल मसूर की दाल की कीमत घट कर 3,200 रुपए क्विंटल आ गई थी। एक क्विंटल मसूर उगाने की लागत 7,000 रुपए बैठती है, लेकिन हमें वो दाम भी नहीं मिल सका था, क्योंकि सरकार ने मोजाम्बिक और दूसरे देशों से सस्ती दर पर मसूर दाल खरीद ली थी। हम लोगों ने इसके खिलाफ अनिश्चितकालीन सड़क जाम किया था। तब जाकर सरकार ने कुछ राहत दी।” उन्होंने कहा कि व्यापारी भी आयातित दाल ज्यादा बेचने लगे हैं, जो सस्ती है इसलिए किसानों की दाल को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है।

मोकामा के दाल के एक बड़े व्यापारी रंजीत कुमार साल में एक लाख क्विंटल दाल का कारोबार करते हैं। उन्होंने कहा कि कीमत कम होने के कारण देशी किसानों की दाल के बनिस्बत आयातित दाल की डिमांड ज्यादा है। रंजीत ने कहा, “आयातित दाल और देश के किसानों द्वाराउगाई गई दाल की कीमत में 200 रुपए का फर्क है यानी आयातित दाल देशी दाल के मुकाबले 200 रुपए सस्ती है।”

भारत, दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक देश है और भारत और कई देशों के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौतों में अन्य उत्पादों के साथ-साथ दाल भी शामिल है। जब ये समझौते किए गए, तब कहा गया कि इससे दाल उत्पादक किसानों को फायदा होगा और भारत दूसरे देशों में दाल का निर्यात करेगा। लेकिन हो इसका उलट रहा है। जून 2019 की कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशी व्यापार समझौते के तहत भारत व आसियान देशों और साफ्टा देशों के बीच मूंग, उड़द, मसूर, तूर (अरहर), चने के आयात व निर्यात पर कोई ड्यूटी नहीं लगती। जबकि मटर, तूर, मूंग और उड़द पर आयात की मात्रा को लेकर प्रतिबंध नहीं है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 में भारत ने 56.07 लाख टन दालों का आयात किया था। जबकि इसी साल केवल 2 लाख टन दालों का निर्यात किया गया। भारत ने सबसे अधिक कनाडा से दालों का आयात (17 लाख टन) किया, जबकि ऑस्ट्रेलिया से लगभग 12 लाख टन आयात किया। इनके अलावा रूस, म्यांमार, यूक्रेन, रोमानिया आदि देशों से दालों का आयात करता है।

दरअसल, दाल आयात को लेकर सरकार की नीतियों से किसान परेशान हैं। भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह कहते हैं कि दालों की मांग बढ़ने से कीमत का फायदा किसान को न मिले, इसलिए सरकारें दालों के आयात का दरवाजा खुला रखती हैं, जिस वजह से किसान के हाथ खाली ही रह जाते हैं और सरकार अपने पसंदीदा देशों से दाल मंगवा लेती है। दालों का उत्पादन बढ़ने पर एक समय के लिए सरकार आयात पर रोक लगा देती है, लेकिन जैसे ही दाल की कीमत बढ़ने लगती हैं। इस बहाने सरकार यह प्रतिबंध हटा देती है। बल्कि व्यापारी भी विदेशों से आने वाली सस्ती दाल का इंतजार करते रहते हैं, जिससे किसानों को फायदा होता ही नहीं है।

(साथ में उमेश कुमार) 

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