देेश के 13वें प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह का वीरवार 26 दिसंबर 2024 को निधन हो गया। डॉ. सिंह को वित्त मंत्री के तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधारों का जनक माना जाता है। 92 वर्षीय डॉ. मनमोहन सिंह को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था।
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत में, वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले के गाह गांव में हुआ था। विभाजन के बाद 1947 में उनका परिवार अमृतसर में आकर बस गया था। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से 1952 में स्नातक और 1954 में मास्टर्स की डिग्री हासिल की थी।
आगे की पढ़ाई के लिए वह यूनाईटेड किंगडम चले गए थे, जहां से उन्हंे 1957 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से बीए और 1962 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डी.फिल की डिग्री मिली। ऑक्सफोर्ड में उनकी डॉक्टरेट थीसिस का शीर्षक था - ‘इंडियाज इक्सपोर्ट परफॉर्मेंस, 1951-1960, इक्सपोर्ट प्रॉस्पेक्ट्स एंड पॉलिसी इंप्लीकेशंस’।
डिग्री के बाद डॉ. सिंह को अपने करियर में विदेशों और भारत दोनों जगह, शीर्ष आर्थिक संस्थानों में काम करने का मौका मिला। वह 1957 से 1965 तक पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में पहले सीनियर लेक्चरर, रीडर और उसके बाद प्रोफेसर रहे। उसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में भी पढ़ाया।
उन्होंने व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (अंकटाड) , भारतीय योजना आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक में भी काम किया। वह केेंद्रीय वित्त व्यापार और वित्त मंत्रालय में सलाहकार की भूमिका में भी रहे।
आर्थिक सुधारों की शुरुआत
मनमोहन सिंह को तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने जून 1991 में वित्त मंत्री नियुक्त किया था। उस समय देश की स्थिति नाजुक थी और उसका राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद के 8.5 फीसद के करीब था। भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था। देश इस तरह अधिक धन को अपनी सीमाओं से बाहर निकलते हुए देख रहा था। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ एक अरब डॉलर था।
भारत ने धन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से अनुरोध किया, जिसने मांग की कि देश अपने कुख्यात ‘लाइसेंस राज’ को खत्म करे और अपनी अर्थव्यवस्था को खोल दे।
सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी में उस समय कई बड़े नेता इस मांग के खिलाफ थे। इसके बावजूद डॉ. सिंह, अपने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समर्थन से भारतीय अर्थव्यवस्था की सामाजिक संरचना को तोड़ने और इसे निजीकरण के लिए खोलने में कामयाब रहे।
24 जुलाई, 2021 को उन्होंने आर्थिक सुधारों के तीस बरस पूरे होने पर एक बयान जारी किया था। उन्होंने कहा था कि आर्थिक सुधारों के सकारात्मक प्रभाव को मुड़कर देखने पर उन्हें बहुत खुशी मिलती है, हालांकि कोविड-19 महामारी की वजह से तमाम लोगों के जान गंवाने से वह बहुत दुखी भी हैं। उन्होंन कहा था कि वर्तमान समय बहुत खुश होने और आनंद मनाने का नहीं बल्कि आत्मनिरीक्षण करने और विचार करने का है। उनका मानना था कि आगे की राह 1991 के संकट से भी ज्यादा कठिन होने वाली है। उन्होंने कहा था कि एक देश के रूप में भारत को अपनी प्राथमिकताओं को फिर से तय करनक ेकी जरूरत है, जिससे हर भारतीय के लिए एक स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित किया जा सके।
प्रधानमंत्री के रूप में
कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशल गठबंधन (यूपीए) ने मनमोहन सिंह को अपना प्रधानमंत्री घोषित किया था। उन्होंने 22 मई 2004 को इस पद की शपथ ली थी।
उनके पहले कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था में 8-9 फीसद वृद्धि हुई। 2007 में भारत बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में दूसरा सबसे तेजी से वृद्धि करने वाला देश था।
हालांकि प्रधानमंत्री के तौर पर उनका पहला कार्यकाल कई महत्वपूर्ण विधेयकों के पारित होने के लिए जाना जाता है। इसमें संसद ने 2005 में सूचना के अधिकार के अलावा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून- मनरेगा भी पास किया। मनमोहन सिंह सरकार ने 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत भी की।
उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान पारित महत्वपूर्ण कानूनों में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम शामिल थे।