अर्थव्यवस्था

कहीं बोझ ना बन जाए युवा, मौका भुनाने के लिए कौशल विकास पर देना होगा ध्यान

Richard Mahapatra

जब किसी देश में कामकाजी उम्र के लोगों की संख्या बच्चों और बुजुर्गों की आबादी को पीछे छोड़ आगे निकल जाती है, तो उसे जनसांख्यिकी लाभांश क्षेत्र कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में जानकारी दी है कि भारत मौजूदा समय में इसी दौर से गुजर रहा है और अगले दशक तक इसी क्षेत्र में बना रहेगा।

आईएलओ द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में युवाओं की आबादी जो 2021 में 27 फीसदी दर्ज की गई, वो 2036 तक घटकर 23 फीसदी रह जाएगी। 2018-2019 के आर्थिक सर्वेक्षण में भी इस बारे में कहा गया है कि यह लाभांश 2041 के आसपास अपने चरम पर होगा, जब कामकाजी उम्र के लोगों का आंकड़ा देश की कुल आबादी का 59 फीसदी हो जाएगा।

देखा जाए तो यह अच्छी और बुरी दोनो खबर है। देश के लिए, इस लाभांश का अर्थ है लाखों लोगों को काम करना। यह लाखों लोग मिलकर अर्थव्यवस्था की धुरी को गति देंगें। लेकिन साथ ही यदि इस मौके को भुनाना है तो कामकाजी आबादी में हर किसी के लिए उपयुक्त मौके उपलब्ध कराने होंगें।

आंकड़ों की मानें तो देश में सालाना 70 से 80 लाख युवा श्रम बल का हिस्सा बन रहे हैं। ऐसे में यदि जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठाना है तो भारत को हर साल इन लाखों युवाओं के लिए रोजगार के बेहतर अवसर पैदा करने होंगें।

ऐसा लगता है कि देश इस लाभांश को खो रहा है। भारत में युवा बेरोजगारी दर बहुत अधिक है। आईएलओ के मुताबिक देश की कुल बेरोजगार आबादी में करीब 83 फीसदी युवा हैं। आज देश में हर तीसरा युवा न तो शिक्षा में है, न ही नौकरीपेशा और न ही अपने कौशल को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण हासिल कर रहा है। देश के 40 फीसदी युवाओं ने मैट्रिक तक की शिक्षा भी हासिल नहीं की है। वहीं केवल चार फीसदी के पास व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुंच है।

साल 2000 के बाद से देखें तो देश में युवाओं की आबादी बढ़ रही है। आईएलओ रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में युवा बेरोजगारी दर करीब 12.4 फीसदी थी, जो वयस्क दर से 12 गुना अधिक है। 2000 के बाद पहले दो दशकों में, युवाओं की बढ़ती आबादी के अनुरूप ही युवा बेरोजगारी में भी वृद्धि हुई है। 2000 में, युवा बेरोजगारी दर 5.7 फीसदी थी, जो 2019 तक बढ़कर 17.5 फीसदी हो गई। यह आंकड़े इसमें हुई 300 फीसदी से अधिक की वृद्धि को दर्शाते हैं।

धारणा रही है कि शिक्षा और प्रशिक्षण नौकरी के अवसरों की गारंटी देते हैं, लेकिन यह बात भारत पर सटीक नहीं बैठती। आश्चर्यजनक रूप से, भारत में शिक्षित व्यक्तियों के बीच बेरोजगारी दर अधिक है। देश की कुल बेरोजगार आबादी में 66 फीसदी शिक्षित युवा हैं।

अजीब बात है कि कोई व्यक्ति जितना अधिक शिक्षित होगा, उसके बेरोजगार रहने की आशंका उतनी ही अधिक होगी। इस की पुष्टि आंकड़े भी करते हैं 2022 में, स्नातकों के बीच बेरोजगारी दर करीब 29 फीसदी थी, जबकि जो पढ़-लिख नहीं सकते, उनके लिए यह आंकड़ा महज 3.4 फीसदी रहा।

विश्व बैंक की दक्षिण एशिया पर जारी हालिया रिपोर्ट "जॉब्स फॉर रेजिलिएंस" भी क्षेत्र में नौकरियों की कमी को उजागर करती है। गौरतलब है कि भारत इस क्षेत्र की एक मुख्य अर्थव्यवस्था है। रोजगार की इस कमी के चलते लोग दूसरे देशों की ओर पलायन कर रहे हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच इस क्षेत्र से जाने वाले प्रवासियों की संख्या सबसे अधिक है। 2010 से 2023 तक, यह प्रवास क्षेत्र की कामकाजी उम्र की आबादी का दो फीसदी था।

ऐसे में विश्व बैंक ने चिंता जताते हुए इस बात पर जोर दिया है कि इस क्षेत्र को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए, कहीं ज्यादा अवसर पैदा करने की आवश्यकता है। इसका मतलब है कि भारत को युवाओं की बढ़ती आबादी की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से रोजगार के अवसर पैदा करने होंगें, लेकिन दुर्भाग्य से, ऐसा नहीं हो रहा है।

अगले दशक में जनसांख्यिकीय लाभांश अपने चरम पर पहुंच सकता है, ऐसे में इस समयरेखा को देखते हुए, यह निश्चित रूप से एक कठिन चुनौती है।

विकसित देश पहले ही युवा आबादी में तेजी से होने वाली वृद्धि के इस चरण को पार कर चुके हैं, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है। अब, वे बूढ़ी होती आबादी का सामना कर रहे हैं और प्रवासियों पर कहीं ज्यादा निर्भर हैं। दूसरी ओर, भारत जैसे विकासशील और कमजोर देशों में दुनिया की 90 फीसदी से अधिक युवा आबादी है।

हालांकि, यदि वे रोजगार के अवसर पैदा करने में विफल रहते हैं, तो न केवल इस अवसर को गंवा देंगे, साथ ही उनके सामने आर्थिक स्थिरता का मुद्दा भी पैदा हो सकता है। इसके अलावा, बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी आबादी सामाजिक अशांति को भी जन्म दे सकती है।