अर्थव्यवस्था

फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का असर, छोड़ना पड़ा पुश्तैनी काम-धंधा

दूसरे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों के बाद हमारे कई पुश्तैनी काम धंधे खत्म हो गए। पढ़ें, रबड़ आयात से कैसे प्रभावित हुए भारतीय किसान

Anil Ashwani Sharma, Raju Sajwan

भारत सरकार का दावा है कि वह अब तक हुए सभी मुक्त व्यापार समझौतों (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट, एफटीए) की समीक्षा कर रही है। यह तो आने वाले वक्त बताएगा कि समीक्षा में क्या निकलेगा, लेकिन डाउन टू अर्थ ने एफटीए के असर की पड़ताल की और रिपोर्ट्स की एक सीरीज तैयार की। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट क्या है। पढ़ें, दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा कि आखिर केंद्र सरकार को आरसीईपी से पीछे क्यों हटना पड़ा। पढ़ें, तीसरी कड़ी

केरल के जिला पत्तानमनमतिट्टा के गांव तुंबामोन निवासी 62 वर्षीय सुरेश कौशी रबड़ उत्पादक किसान हैं। वह भी दुनिया भर में चल रही एफटीए की सनक का शिकार हैं। उन्हें अपने क्षेत्र का बड़ा रबड़ उत्पादक किसान माना जाता है, लेकिन पिछले 5 साल से उनका उत्पादन लगातार कम हो रहा है। वह कहते हैं कि अब उन्हें अपनी लागत से आधी कीमत ही मिल पा रही है। ऐसे में, उन्होंने रबड़ उत्पादन बंद कर दिया है। कौशी नेशनल फेडरेशन ऑफ रबड़ प्रोड्यूसर्स सोसायटी के अध्यक्ष भी हैं।

वह कहते हैं कि थाइलैंड व इंडोनेशिया से भारत ने एफटीए किया है, जिसके बाद से देश में रबड़ का आयात बढ़ता जा रहा है और इससे अकेले केरल राज्य के 11 लाख रबड़ उत्पादक किसान को भारी नुकसान हो रहा है। हालांकि केरल सरकार ने उन किसानों के लिए पैकेज भी घोषित किया, लेकिन वह नाकाफी साबित हुआ। सुरेश कौशी इस बात से बेहद नाराज हैं कि पहले ही किसान एफटीए का शिकार हैं, ऐसे में, यदि केंद्र सरकार आरसीईपी में शामिल हो जाती तो केरल ही नहीं, अन्य सभी राज्यों में रबड़ उत्पादन कर रहे किसानों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो जाती।

आंकड़े बताते हैं कि 2010 तक आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार संबंधों को कायम करने से पहले भारत रबड़ के मामले में आत्मनिर्भर था। 2013 तक भारत 2.6 लाख टन रबड़ का आयात कर रहा था, जो कि अगले दो वर्षों में लगभग दोगुना होकर 4.4 लाख टन हो गया। रबड़ बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2017-18 में भारत ने 4.69 लाख टन रबड़ आयात किया था।

वाणिज्य मंत्रालय द्वारा मई 2019 में नेशनल रबड़ पॉलिसी 2019 जारी की गई है। इस पॉलिसी डॉक्यूमेंट के मुताबिक प्राकृतिक रबड़ की खपत के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है और सालाना 11 लाख टन खपत हो रही है। इसमें से 40 फीसदी रबड़ आयात की जा रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 13 लाख किसान रबड़ उत्पादन से सीधे जुड़े हैं, जबकि 6 लाख मजदूर उनके साथ जुड़े हैं।

जारी...