अर्थव्यवस्था

आर्थिक सर्वेक्षण 2020: कितनी सस्ती हुई खाने की थाली?

आर्थिक सर्वेक्षण में एक अध्याय है थालीनॉमिक्स यानी भोजन का अर्थशास्त्र, जिसमें दावा किया गया है कि आपकी थाली सस्ती हो गई

Anil Ashwani Sharma

आर्थिक सर्वेक्षण 2020 में एक अलग अध्याय है, “थालीनॉमिक्स। इसमें दावा किया गया है कि थाली पर होने वाले खर्च में कमी आने से एक परिवार को लगभग 10 से 11 हजार रुपए सालाना बचत हुई है। सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि 2014-15 में उठाए गए सरकार के अलग-अलग कदमों से 2015-16 में खाने की थाली सस्ती हुई। हालांकि 2019-20 में यह थाली महंगी हो गई, लेकिन कुल मिला कर देखें तो थाली पर एक परिवार द्वारा किए जाने वाले खर्च में कमी आई है।

आइए, सबसे पहले समझते हैं कि थालीनॉमिक्स में थाली का अर्थ। सर्वेक्षण में दो तरह की थाली का जिक्र है। इसमें एक कठोर परिश्रम करने वाले व्यस्क पुरुष की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा गया है। एक शाकाहारी थाली में 300 ग्राम अन्न (चावल व गेहूं), 150 ग्राम सब्जी और 60 ग्राम दाल, तेल व मसाले को शामिल किया गया। जबकि मांसाहारी थाली में दाल की जगह गोश्त (60 ग्राम) को शामिल किया गया है।

सर्वेक्षण रिपोर्ट में लिखा गया है कि यह ध्यान देने वाली बात है कि अर्थव्यवस्था का जन साधरण के जीवन पर बहुत ठोस प्रभाव पड़ता है, किंतु इस तथ्य पर लोगों का ध्यान बहुत ही कम जाता है। अर्थशास्त्र को जनसाधरण के जीवन से जोड़ने के लिए भोजन की थाली एक ऐसी चीज है जिससे उसका सामना प्रतिदिन होता है। भारत में एक सामान्य व्यक्ति द्वारा एक थाली के लिए किए जाने वाले भुगतान को मापने का एक प्रयास किया गया है। क्या थाली को वहन करने की क्षमता कम हुई है या बढ़ी है। क्या थाली सस्ती हुई है या महंगी? क्या शाकाहारी थाली और मांसाहारी थाली दोनों के लिए मुद्रास्फीति समान रही है? क्या भारत के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में थाली के मूल्य में मुद्रास्फीति भी अलग-अलग रही है? थाली के मूल्य में परिवर्तन किस घटक-अन्न, दालें, सब्जियां, अथवा भोजन पकाने में उपयोग किए जाने वाले ईंधन  के मूल्य परिवर्तित होने के कारण हुआ है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर इस थॉलीनॉमिक्स के माध्यम से ढूंढ़ने का प्रयास किया गया है।

सर्वेक्षण में बताया गया है कि संपूर्ण भारत के साथ-साथ इसके चारों क्षेत्रों उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में पाया कि शाकाहारी थाली के मूल्य में वर्ष 2015-16 से काफी कमी हुई है। हालांकि यह भी कहा गया है कि 2019 में इसके मूल्य में अच्छी खासी दर्ज बढ़ोतरी हुई है। लेकिन 2015-16 के बाद जिस तरह कीमतों में कमी आई है, उस हिसाब से एक परिवार, जिसमें दो शाकाहारी थालियों का भोजन प्रतिदिन करने वाले पांच सदस्य है और उसके लिए औसत लगभग 10,887 रुपए प्रतिवर्ष की लाभ प्राप्ति हुई है जबकि मांसाहारी थाली में औसतन प्रतिवर्ष 11,787 रुपए की लाभ प्राप्ति हुई है।

वर्ष 2006-07 एक औसत औद्योगिक श्रमिक की वार्षिक आय से यह ज्ञात होता है कि वर्ष 2019-20 की अवधि में शाकाहारी थाली की वहन करने की क्षमता में 29 प्रतिशत का सुधार हुआ है जबकि मांसाहारी थाली में 18 प्रतिशत का सुधार हुआ है। सर्वे में कहा गया है कि 2006-7 से 2019-20 के दौरान खाद्य पदार्थों की कीमतों को थाली के माध्यम से मापने की कोशिश की गई है। 2015-16 में थाली की कीमतों में बढ़ोतरी हुई। इसका कारण बताया गया है कि इस दौरान सब्जी और दालों में वृद्धि दर्ज की गई।

सर्वे में कहा गया है कि 2015-16 व 2019-20 में थाली  में जो बढ़ोतरी देखने को मिली है, वह भी अस्थाई है। ऐसा अमूमन होता है लेकिन आने वाले समय में थाली सस्ती होगी। क्योंकि ऐसा पूर्व के वर्षों में भी होता आया है। सर्वे में यह माना गया है कि गत वर्ष में दाल, सब्जी और मांस में बेतहाशा वढ़ोतरी दर्ज की गई है और यह लगातार बढ़ ही रही है।