देश की अर्थव्यवस्था की वर्तमान दुखदायी स्थिति में कमी की गुंजाइश फिलहाल नहीं दिख रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने ताजा आकलन में भारत की आर्थिक वृद्धि दर को घटा कर 4.8 प्रतिशत किया है।
आईएमएफ के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में साल 2019 के लिए वैश्विक आर्थिक वृद्धि का अनुमान घटा कर 2.9 प्रतिशत कर दिया गया है। ये अनुमान पूर्व के अनुमान से 0.1 प्रतिशत कम है।
आईएमएफ ने कहा है कि मुख्य रूप से भारत की आर्थिक वृद्धि में गिरावट के अनुमान की वजह से वैश्विक आर्थिक वृद्धि में 0.1 प्रतिशत की कमी की गई है।
दूसरी तरफ, आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक, भारत की गिरती आर्थिक वृद्धि के पीछे का मुख्य कारण देश के ग्रामीणों की आय में कमी है। इसका सीधा अर्थ है कि देश की आर्थिक वृद्धि में बड़ी भागीदार ग्रामीण आय के चलते वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव पड़ा है।
गौरतलब है कि भारत की कुल आय में ग्रामीण आय की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत है। उपभोग व्यय को लेकर राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन के ताज़ा सर्वेक्षण में ग्रामीण खर्च में 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, ये सर्वे रिपोर्ट दबा दी गई।
आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा, "वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर में संशोधन (गिरावट का अनुमान) में बड़ी भूमिका भारत की है, जहां गैर-बैंकिंग आर्थिक क्षेत्र पर दबाव और ग्रामीण आय वृद्धि कमजोर होने से वृद्धि दर में तेज गति से सुस्ती आई है।"
इससे पहले महिंद्रा फाइनेंस के प्रबंध निदेशक रमेश अय्यर ने आईएमएफ की वेबसाइट पर अपने वैचारिक लेख में लिखा, "उभरती आर्थिक वृद्धि मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग व्यय से आएगी।" लेख के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति उपभोग में अगले 10 वर्षों में 4.3 गुना इजाफा हो सकता है।
वहीं, एक गैर सरकारी संस्था ऑक्सफेम इंटरनेशनल ने वार्षिक संपत्ति वितरण रिपोर्ट में कहा है कि भारत की 50 फीसदी निचली आबादी की संपत्ति में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में महज 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसमें मूलतः भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब शामिल हैं। जबकि भारत की शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी की संपत्ति में 46 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
ग्रामीण क्षेत्रों के 50 प्रतिशत कामगारों को कृषि क्षेत्र रोजगार देता है, लेकिन कृषि से होने वाली आय में गिरावट आई है। इसके अलावा पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में दिहाड़ी लगातार घट रही है। पिछले सितंबर में ही इसमें 3.8 प्रतिशत की गिरावट आई थी। हम देख रहे हैं कि मुद्रास्फीति में तेजी आई है, जिसका मतलब है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब लोग बहुत कम खर्च कर रहे हैं।
साल 2010-2011 से भारत की आर्थिक वृद्धि में उपभोग व्यय बड़ी भूमिका निभाती रही है। भारत की आर्थिक वृद्धि में उपभोग व्यय की हिस्सेदारी 59 प्रतिशत है।
अगर ग्रामीण भारत में उपभोग व्यय की दर में गिरावट बरकरार रहती है तो देश की अर्थव्यवस्था पर इसका स्पष्ट प्रभाव दिखेगा और आर्थिक वृद्धि में कमी आएगी। और जैसा कि आईएमएफ के ताज़ा आकलन में वैश्विक आर्थिक वृद्धि में गिरावट का अनुमान लगाया गया है, ये ( भारत की आर्थिक वृद्धि में कमी) वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए फिर एक बार बुरी खबर होगी।