अर्थव्यवस्था

कोविड-19: नगद हस्तांतरण को अपनाने से पहले इन बातों का रखना होगा ध्यान

दुनियाभर के तमाम देश कोविड-19 संकट को लेकर डिजिटल भुगतान अपना रहे हैं। ऐसे में उन्हें हर हाल में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन लोगों की पहुंच तकनीक तक नहीं है, वे कहीं पीछे न छूट जाएं

DTE Staff

माइकल रुतकोव्स्की, अल्फोंसो गार्सिया मोरा, ग्रेटा एल बुल, बूथिना गुएरमाजी और कैरेन ग्रोन

गवर्नमेंट-टु-पर्सन (जी2पी) पेमेंट यानी सरकार से सीधे लोगों को किए जाने वाले भुगतान इससे पहले कभी इतने महत्वपूर्ण नहीं रहे। दुनियाभर की सरकारें कोविड-19 महामारी के आर्थिक और सामाजिक प्रभावों से निपटने के तौर-तरीके खोज रही हैं। महामारी को लेकर 84 देशों ने अपने यहां के सोशल प्रोटेक्शन सिस्टम में बदलाव की जानकारी मुहैया कराई है। इनमें से 58 देश कैश ट्रांसफर योजनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। इस संकट के दौरान कई सरकारें पारंपरिक सामाजिक सुरक्षा तंत्र से आगे बढ़कर घरों और छोटे व्यवसायों को सीधे आर्थिक सहायता मुहैया कराने पर विचार कर रही हैं। कई विकासशील देशों में इन भुगतानों का पैमाना बेमिसाल है। अर्जेंटीना, पाकिस्तान और पेरू ने अपनी आबादी के एक तिहाई हिस्से को नए प्रोग्राम में शामिल किया है। फिलिपींस में 70 फीसदी से ज्यादा घरों को सीधे तौर पर आपातकालीन आर्थिक सहायता मिलेगी। बेहद गरीबी में जी रहे दुनियाभर के 65.6 करोड़ लोगों के लिए तुरंत मिलने वाली यह आर्थिक सहायता जीवन रक्षक साबित हो सकती है।

गरीबों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को इतने बड़े स्तर पर भुगतान की चुनौती, इन देशों के बीच मौजूद जी2पी पेमेंट सिस्टम में फर्क को उजागर कर रही है। एडवांस जी2पी सिस्टम वाले देश बहुत तेजी से पैसे ट्रांसफर करने में सक्षम हैं। चिली में नैशनल आईडी से जुड़े बेसिक अकाउंट “केंटा रुट” में निम्न-आय वाले अधिकतर लोग शामिल हैं। इसके जरिए “बोनो कोविड-19” के तौर पर चिली के करीब 20 लाख जरूरतमंद लोगों को सीधे उनके बैंक खातों में अप्रैल के लिए आर्थिक सहायता मुहैया कराए जाने का अनुमान था। इसी तरह, पेरू में अधिकारी इमरजेंसी के दौरान पुराने और नए लाभार्थियों को किए जा रहे पेमेंट को बढ़ाने में जुटे हैं जिसमें वे बैंक अकाउंट्स के जरिए जी2पी को व्यवस्थित करने में पहले मिल चुकीं सफलताओं का लाभ उठा रहे हैं। इसके साथ ही वे अतिरिक्त लाभार्थियों तक पहुंचने के लिए फाइनेंसियल सर्विस प्रोवाइडर्स को बढ़ावा दे रहे हैं, ताकि निजी बैंकों और बीआईएम जैसे (बिलेटेरा मोविल) मोबाइल मनी प्रोवाइडर्स को इसमें शामिल किया जा सके।

इन नए मॉडलों की सफलता में पेरू के व्यापक रिटेल एजेंट नेटवर्क का लाभ उठा पाना काफी अहम होगा। डिजिटल पेमेंट ईकोसिस्टम तेजी से बढ़ रहा है, जिससे बैंक से कैश निकालने की जरूरत भी कम हुई है। थाईलैंड के हालिया सुधारों से वहां “इंटरॉपरेबल प्रॉम्प्टपे सिस्टम” के जरिए सीधे बैंक अकाउंट्स को पेमेंट करने की सुविधा शुरू हो गई है। इन देशों में खासतौर पर लाभार्थियों की पहचान के लिए यूनिक डिजिटल आईडी सिस्टम मौजूद है जिससे लाभार्थियों की पात्रता निर्धारित करने के साथ ही उनकी आईडी से जुड़े बैंक अकाउंट में सीधे पैसे भेजे जा सकते हैं। खास बात यह है कि दोनों देश कैश ट्रांसफर प्रोग्रामों को जल्दी लागू करने में सक्षम थे, ताकि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर कोविड-19 के असर को कम किया जा सके।

बड़े पैमाने पर डिजिटल फाइनेंसियल सर्विसेज (डीएफएस) अपनाने वाले देशों के लिए वित्तीय सेवाओं तक निरंतर पहुंच सुनिश्चित करना और ई-कॉमर्स, टेलीमेडिसिन व डिस्टेंस लर्निंग जैसी डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास का लाभ उठाना और उनका सपोर्ट करना आसान होगा। जिन देशों में अभी तक पेमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर और डीएफएस में निवेश नहीं किया गया है और नियमों का आधुनिकीकरण होना बाकी है, उन देशों में जी2पी को बढ़ा पाना और वित्तीय सेवाओं तक निरंतर पहुंच बनाना अधिक कठिन होगा। कोविड-19 संकट के दौरान इन कामों की अहमियत को समझते हुए कई सरकारें लोगों को सुरक्षित ढंग से कैश देने के लिए रचनात्मक तरीके खोज रही हैं। लेकिन हर संभव बात एक सीमा में ही की जा सकती है, खासकर तब जब शारीरिक संपर्कों को हतोत्साहित किया जा रहा हो।

हालांकि, ऐसे भी देश हैं जो बुनियादी बदलाव के जरिए आसानी से बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर वे नॉन बैंकिंग ई-मनी प्रोवाइडर्स को कैश निकालने की सेवाएं देने की अनुमति दे सकते हैं। इसके साथ ही, जो देश नियामक सुधारों के मामले में काफी आगे हैं, वे पर्याप्त नियामक ढांचे के साथ नए खिलाड़ियों को एंट्री देने की प्रक्रिया और तेज कर सकते हैं। इसके लिए उदाहरण के तौर पर वे मोबाइल ऑपरेटरों को पैसे के लेन-देन के लिए लाइसेंस जारी कर सकते हैं।

इस दिशा में आगे बढ़ रहे देशों को यह सुनिश्चित करने पर जोर देना चाहिए कि डिजिटल पेमेंट करना न जानने वाले बुजुर्गों, विकलांगों और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोग सुविधाओं से वंचित न रह जाएं। तकनीक से जुड़ी समस्याएं जरूरी कल्याण सेवाओं के आड़े नहीं आनी चाहिए। सभी जी2पी कार्यक्रमों को डिजिटल पेमेंट में बदलाव के चलते आने वाली किसी भी तरह की बाधा पर नियमित तौर पर ध्यान देना चाहिए। हम इस बात को समझते हैं कि संकट के बीच शुरू से ही एकदम नया पेमेंट सिस्टम बनाना संभव नहीं है और यह कई देशों की हकीकत भी होगी। ऐसे में थोड़े अरसे के लिए ऐसे उपाय एकमात्र सहारा होंगे, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और वित्तीय क्षेत्र के मौजूदा पेमेंट सिस्टम के असर को कम कर सकते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में यह संकट उन बदलावों को और तेज करने का एक अवसर पेश कर सकता है, जो पहले से ही मोबाइल मनी और डीएफएस जैसे क्षेत्रों में हो रहे हैं।

कैश ट्रांसफर रिकवरी में मददगार होने के साथ ही आजीविका के पुनर्निर्माण और भविष्य की चुनौतियों की तैयारी के संदर्भ में भी काफी अहम होगा। वे इससे वित्तीय समावेशन सहित दीर्घकालिक लाभ भी हासिल कर सकते हैं, जो आर्थिक झटके के हालात में और महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए जरूरी लचीलेपन की एक प्रमुख कुंजी है। यह खासकर महिलाओं के लिए काफी अहम है, क्योंकि उनके नाम पर बैंक खाते में जमा पैसा उन्हें अधिक आजादी और घरेलू खर्च पर नियंत्रण प्रदान कर सकता है। यह लाभ तब मिलते हैं, जब लाभार्थी अपने बैंक खाते में पेमेंट हासिल करते हैं और उसे अच्छी तरह से इस्तेमाल करना जानते हैं, इसके साथ ही घरेलू व अंतरराष्ट्रीय स्तर से भेजी गई रकम से लेकर लोकल दुकानों पर उसे खर्च करने और स्कूल फीस जमा करने तक की जानकारी भी रखते हैं। महामारी को रोकने और लोगों को सेहतमंद रखने के लिए जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग के संदर्भ में डिजिटल पेमेंट सिस्टम अब पहले से कहीं अधिक फायदेमंद है। इसका उद्देश्य ऐसा माहौल बनाना है, जो सामान्य समय में वित्तीय समावेशन का पूरी तरह से सपोर्ट करे। इस तरह, जैसे-जैसे डिजिटलाइजेशन तेज होता है, डेटा सुरक्षा और गोपनीयता के लिए मजबूत संस्थागत, कानूनी और तकनीकी सुरक्षा उपाय करना और भी जरूरी होता जाता है।

जी2पी पेमेंट का आधुनिकीकरण विश्व बैंक समूह के लिए दीर्घकालिक प्राथमिकता है। संकट से पहले से ही सामाजिक सुरक्षा व वित्तीय क्षेत्र में काम करने वाली टीमें इस पर काम कर रही थीं। बीते कुछ वर्षों से डीएफआईडी (अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग) और एसईसीओ (आर्थिक मामलों के लिए स्विस राज्य सचिवालय) जैसे सहयोगी इसमें उसकी मदद कर रहे थे। इस मान्यता के साथ कि हम विश्व बैंक समूह के विभिन्न हिस्सों को एक साथ लाकर इसके प्रभाव को अधिकतम बढ़ा सकते हैं। 2020 की शुरुआत में हमने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ साझेदारी में पहल करते हुए “जी2पीएक्स” लॉन्च किया। यह सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय क्षेत्र, शासन, डिजिटल विकास, लिंग और डेटा संरक्षण में विशेषज्ञता को बढ़ावा देता है। इसका उद्देश्य पूरी जिम्मेदारी के साथ समावेश और सशक्तिकरण के लिए जी2पी पेमेंट में सुधार करना है। इस पर अब तेजी से काम किया जा रहा है, ताकि सरकारी सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम महामारी के चलते पैदा हो रही परिस्थतियों से निपट सकें। चाहे संकट का समय हो या कोई और वक्त हो, कैश ट्रांसफर के लिए एक ऐसे सरकारी दृष्टिकोण की जरूरत होती है, जो सरकार के मंत्रालयों को एक साथ ला सकें। विश्व बैंक आधुनिक जी2पी पेमेंट में सुधार के लिए देशों की मदद करने को तैयार है।

इस संकट से निपटने के लिए तुरंत प्रभावी व व्यापक कदम उठाए जाने की जरूरत है। इसके लिए दुनियाभर में सरकारों को ऐसे उपकरणों की आवश्यकता होगी, जिनसे रिकवरी में मदद मिल सके। जिस तरह सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम जी2पी कैश ट्रांसफर को अपनाने के साथ ही उसे बढ़ावा दे रहे हैं, उसे देखते हुए हम इसके लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं कि लाभार्थियों और सरकार दोनों के लिए इसके परिणामों को और बेहतर बनाया जा सके। हालांकि, हमें यह उम्मीद नहीं है कि इसका प्रसार इतनी आसानी से हो जाएगा, लेकिन यह विश्वास जरूर है कि समन्वय और सहयोग से किसी भी तरह की चुनौती का सामना किया जा सकता है।

(माइकल रुतकोव्स्की वर्ल्ड बैंक में सामाजिक संरक्षण और नौकरियों के निदेशक हैं। अल्फांसो गार्सिया मोरा वर्ल्ड बैंक समूह की वित्त, प्रतिस्पर्धा और इनोवेशन ग्लोबल प्रैक्टिस में वैश्विक निदेशक, वित्त हैं। ग्रेटा एल बुल, गरीबों की सहायता के लिए परामर्श समूह की मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। बूथिना गुएरमाजी वर्ल्ड बैंक में डिजिटल विकास की निदेशक हैं। कैरेन ग्रोन वर्ल्ड बैंक ग्रुप में जेंडर के लिए सीनियर डायरेक्टर हैं)