अर्थव्यवस्था

दिल्ली: द्वारका में फंसे 250 मजदूरों को नहीं मिले 5000 रुपए, राशन भी खत्म

DTE Staff

अमन गुप्ता

लाखों मजदूर घर लौट रहे हैं, लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में मजदूर देश भर के अलग-अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं और घर वापसी की बाट जोह रहे हैं। ऐसे ही करीब 250 मजदूर दिल्ली के द्वारका सेक्टर-9 इलाके में फंसे हुए हैं। जहां पर ये सभी दिल्ली सरकार द्वारा बनवाए जा रहे इंदिरा गांधी मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल के निर्माण का काम कर रहे थे। अस्पताल के निर्माण का ठेका एल एंड टी कंपनी के पास है।

फंसे हुए मजदूरों में से एक बिहार के मुज्जफ्फरपुर के जिले के रहने वाले सिंटू फोन पर बताते हैं, “25 तारीख के बाद से ही यहां काम बंद है। लॉकडाउन की घोषणा के वक्त कंपनी की तरफ से कुछ राशन दिया गया था और कहा गया था कि आप लोग घर न जाएं। जो राशन मिला था, थोड़े दिनों में खत्म हो गया। कंपनी की तरफ से मार्च तक की मजदूरी दी गई, जो यहां फंसे जाने के कारण खत्म हो गई। अब न खाना है और न पैसा।”

भूख से परेशान और घर लौटने के लिए परेशान हो रहे इन मजदूरों ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों को पत्र लिखकर अपनी समस्या से अवगत कराया है, लेकिन वहां से भी इन मजदूरों को कोई राहत नहीं मिली है। मजदूरों ने पत्र में लिखा है, “3 अप्रैल को एल एंड टी प्रशासन और दिल्ली सरकार की तरफ से डीएम और पुलिस के कुछ अधिकारी आए, जिसमें उन्होंने बकाया पैसा दिलाने का आश्वासन दिया था, लेकिन 40 दिन के बाद अभी तक कुछ नहीं हुआ। सहायता तो छोड़िये कोई अधिकारी दोबारा हमारा हाल जानने तक नहीं आया।” मजदूरों द्वारा लिखा गया यह पत्र डाउन-टू-अर्थ के पास भी उपलब्ध है।

इन्हीं मजदूरों में से एक झारखंड के पलामु जिले के रहने वाले सनाउल्ला खान बताते हैं, “पुलिस के कुछ जवानों ने आकर कहा कि द्वारका सेक्टर-2 में बस स्टैंड के पास घर जाने के लिए पास बन रहा है, वहां जाकर पास बनवा लो। वहां गए तो पता चला कि वो निजी वाहन से घर जाने के लिए है।”

बिहार के नवादा जिले के हजारी साहू फोन पर बात करते हुए कहते हैं कि पुलिस प्रशासन मदद करने की बजाए मार-पीट कर रहा है। सरकार हमको किसी तरह घर भिजवा दे बस, और हम लोग और कुछ नहीं चाहते।

दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा के बाद निर्माण मजदूरों के लिए पांच हजार की सहायता राशि की घोषणा की थी जो इन लोगों को अब तक नहीं मिली है। खगड़िया जिले के बृजेश गुप्ता बताते हैं कि हमने 'दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंसट्रकशन वर्कस बोर्ड' का कभी नाम भी नहीं सुना है।किसी ने बताया था कि सरकार पांच हजार रुपए दे रही है, लेकिन ये नहीं पता कि कौन सी सरकार देगी और कैसे देगी।

सिंटू भी कहते हैं कि ‘नहीं, हमको इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि ऐसा कुछ भी होता है। पहले नहीं दिया कोई बात नहीं, अब सरकार उस पैसे से हमको घर भेजने का इंतजाम कर दे यही बहुत है। निजी साधन वाले बहुत पैसे मांग रहा है।

उधर, दिल्ली सरकार में लेबर अफसर विनय कौशिक फोन पर हुई बातचीत के दौरान बताते हैं कि, “ये लोग लेबर मंत्रालय के अधीन आने वाले, 'दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंसट्रकशन वर्कस बोर्ड' के तहत पंजीकृत नहीं हैं। इस कारण से इनको सहायता नहीं मिल पाई है।  15 मई से दोबारा पंजीकरण शुरू हो रहा है उसमें पंजीकृत करवा लें सहायता राशि सहित और अन्य सुविधाएं मिलने लगेंगी।”