फाइल फोटो: सीएसई 
अर्थव्यवस्था

डेयरी उद्योग, नई श्वेत क्रांति तथा सहकारिताः चुनौतियां और उभरते अवसर

भारतीय सहकारिता का पर्याय माना जाने वाला डेयरी उद्योग को और प्रगाढ़ करने के लिए परिचर्चा और कवायद जरूरी है

BINDHY WASINI PANDEY, RAM MANOHAR

संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका शुभारंभ किया है और सहकारी आंदोलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को परिलक्षित करते हुए स्मारक डाक टिकट भी जारी किया।

भारत में सहकारिता मंत्रालय की शुरुआत वर्ष 2021 में प्रथम सहकारिता मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में की गई । बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों से संचालित ‘श्वेत क्रांति 2.0‘ की शुरुआत, देश के प्रथम सहकारिता मंत्री अमित साह के नेतृत्व में 19 सितंबर 2024 को किया गया। जिसका प्रमुख लक्ष्य सहकारी कवरेज में विस्तार, डेयरी सहकारिता के पहुंच में वृद्धि, डेयरी की बुनियादी ढांचा को सुदृढ़ करना रोजगार सृजन, महिला सशक्तिकरण और निर्यात को बढ़ावा देना है। इसके पृष्ठभूमि में भारतीय सहकारिता का पर्याय माना जाने वाला डेयरी उद्योग को और प्रगाढ़ करने के लिए परिचर्चा और कवायद जरूरी है।

बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी 2024 और एफएओ डेयरी बाजार समीक्षा 2024 के आंकड़े के अनुसार विश्व में दूध उत्पादन में, भारत प्रथम स्थान पर है। भारत में 24 करोड़ टन दूध उत्पादन वर्ष 2024 में अनुमानित है जो की वैश्विक दूध उत्पादन का 25 फीसदी है। भारत में दूध उत्पादन 6 फीसदी के चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बीते 10 वर्षों में बढ़ा है, जो कि वैश्विक औसतन चक्रवृद्धि वार्षिक दर का ढाई गुणा है । इसी बीच प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता दो तिहाई से बढ़कर 471 ग्राम प्रतिदिन हो गया है, जो कि वैश्विक औसतन प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 329 ग्राम प्रतिदिन से काफी अधिक है।

 डेयरी क्षेत्र मेंं चुनौतियां और अवसर

पहला, औसतन जोत और पशुधन दोनों की दृष्टिकोण से भारत छोटे धारकों की अर्थव्यवस्था में आता है। कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार भारत में औसत जोत का आकार 1.01 हेक्टेयर है और 86 फीसदी से अधिक किसान के छोटे और सीमांत हैं। यही गोवंश झुंड के आकार पर भी लागू होता है जो कि तीन गोवंश प्रति खेतिहर परिवार हैं। भारत को चाहिए कि सहकारिता और डेयरीप्रेन्यूर की सहायता से बुनियादी डेयरी संरचना को सुदृद्ध करें और इंडस्ट्री 4.0 की तकनीक का इस्तेमाल करके डेयरी क्षेत्र की कुल कारक उत्पादकता को बढ़ाएं ।

दूसरा, भारत में डेयरी उद्योग ‘डबल इंजन बल‘ अर्थात सहकारिता और संगठित प्राइवेट प्लेयर दोनों पर आधारित है और दोनो का दूध संकलन में 10-10 फीसदी की हिस्सेदारी है। परंतु इनमें दो गंभीर चिंताएं हैं, प्रथम, आज भी 30 फीसदी दूध संकलन असंगठित स्रोत से होता है, द्वितीय, सहकारिता को कुछ राज्य अत्यधिक सहयोग देती  हैं, जिससे प्राइवेट प्लेयर के लिए अप्रतिस्पर्धी माहौल बनता है और बाजार विकृति क्रियाशील होती है। सतत विकास के लिए दोनों में समता बनाकर चलना होगा ।

तीसरा, भारत में दूध का पैदावार अत्यधिक कम है, इसकी मुख्य वजह है, गोवंश की कम आनुवांशिक क्षमता तथा चारे की कमी और सीमित गुणवत्ता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद 2018 के आंकड़ों के अनुसार भारत में वर्ष 2030 तक सूखा और हरा चारा की क्रमशः 12 और 25 फीसदी की कमी होगी। इसके निवारण के लिए हायड्रोपोनिक चारा, पेड़ का चारा (सिस्बेनिया), काटे रहित नागफनी (ग्रीन गोल्ड), ट्वीन 80 और सेल्यूलोटिक एंजाइमों के साथ चारा का संवर्धन, जैव प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल उदाहरण नेपियर घास इत्यादि का इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए। गोवंश की कम अनुवंशीय क्षमता से निपटने के लिए उपयुक्त सहायक प्रजनन तकनीक का इस्तेमाल जैसे सेक्स सॉर्टेड सीमेन, आईवीएफ, कृत्रिम गर्भाधान का इस्तेमाल पर बल और जागरूकता की जरूरत है।

चौथा, देसी नस्लों के गोवंश में लगातार कमी आ रही है। इन नस्लों की दूध में वसा प्रतिशत अधिक होती है। कम दैहिक कोशिका व भारतीय स्थिति के अनुकूल होती है। इसके लिए आवश्यक है की प्राकृतिक डेयरी या जैविक डेयरी फार्मिंग को अपनाया जाए। राष्ट्रीय गोकुल मिशन और राष्ट्रीय गोजातीय प्रजनन प्रोग्राम इस दिशा में सराहनीय कदम है।

पांचवां, दूध एवं दूध से बने संवर्धित उत्पादों की गुणवत्ता एक चिंता का विषय बना हुआ है। ंएफएसएसएआई के राष्ट्रीय दुग्ध सुरक्षा सर्वे 2018 में पता चलता है कि मिलावटी दूध में एंटीबायोटिक , हाइड्रोजन पराक्साइड, डिटर्जेंट इत्यादि पाया जाता है। बेहतर गुणवत्ता पर विशेष बल देने की जरूरत हैं। इसमें चीन की और 2008 के मेलामाइन संकट से सीख लेने की जरूरत है। ‘दूध के अधिकार‘ को भोजन के अधिकार के तरह जीवन के मौलिक अधिकार के रूप भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में न्यायपालिका या विधायिका को स्वतः संज्ञान लेकर शामिल करना चाहिए।

छठा, गौरतलब है कि वर्ष 2025, पूर्व औद्योगिक स्तर से डेढ़ डिग्री से अधिक वैश्विक औसत तापमान वाला पहला वर्ष है। जलवायु लचीला पशुपालन और राशन संतुलन भविष्योन्मुखी डेयरी विकास के लिए जरूरी है। बेहतर डेयरी झुंड प्रबंधन से गोवंशों द्वारा कार्बन उत्सर्जन, बीमारियों एवं अन्य स्वास्थ्य विकार मे  कमी आएगी और बेहतर नियंत्रण किया जा सकेगा। इसके लिए आवश्यक है की प्रौद्योगिकी जैसे ब्लॉकचेन, मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल किया जाए। इन बहुआयामी तकनीक के आधार पर गोवंश के स्वास्थ्य की स्थिति जैसे गाय की गर्मी का चक्र, स्वास्थ्य विकार उनके गतिविधियों और आराम करने के व्यवहार के आधार पर बताया जा सकता हैं।

सातवां, डेयरी क्षेत्र अपर्याप्त पशु चिकित्सा से जुझ रहा है। देश में डेरी क्षेत्र में चिकित्सा संस्थान की 50 फीसदी की कमी है। प्रत्येक ब्लॉक में कम से कम एक पशु चिकित्सा संस्थान होना चाहिए। राष्ट्रीय कृषि आयोग के वर्ष 1976 के सिफारिशों के अनुसार 5000 गोवंश पर एक संस्थान होना चाहिए।

आठवां, डेयरी क्षेत्र में दूध संकलन आज भी असंगठित, बिखरा और पता लगाने की कमी से जूझ रहा हैं। बेहतर आपूर्ति श्रृंखला की निगरानी से इसका निवारण किया जा सकता है। इसके लिए टेक्नोलॉजी की अवधारणा की जरूरत है जैसे इंटरनेट ऑफ थिंग्स ब्लॉकचेन मशीन लर्निंग जिससे स्मार्ट गाय, स्मार्ट फार्म और स्मार्ट मैनेजमेंट का सुदृढ़ संरचना का निर्माण हो सकेगा।

नौवां, भारत का दुग्ध और दुग्ध से बने मूल्य वर्धित उत्पादों के वैश्विक निर्यात में मात्र एक प्रतिशत का हिस्सा है। युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने से दुग्ध और इससे बने मूल्यवर्धित उत्पादों का वैश्विक एवं घरेलू स्तर पर मांग लगातार बढ़ रहा है।  भारत को दुग्ध से बने मूल्य वर्धित उत्पाद, फोर्टिफिकेशन, समग्र निर्यात नीति ओर सुगम ऋण नीति के तरफ अग्रसर होने की जरूरत है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के प्रावधानों के अनुसार उम्र के मुताबिक डाइट में दुग्ध उत्पादों को संवर्धित या फोर्टीफाइड ढंग से आवश्यक रूप से शामिल किया जाना चाहिए।

दसवां, डेयरी उद्योग को एक आकर सभी के लिए उपयुक्त है अवधारणा से इतर हटकर स्वदेशी स्थानीय प्रथाएं जैसे लातेहर मॉडल, दुदरान मिल्क  विलेज, वसुधरा आदिवासी डेयरी सहकारिता इत्यादि से सीख लेकर उसे नीतिगत रूप से निगमित करने की जरूरत है। २१ वीं पशुधन जनगणना में इतिहास में प्रथम बार चरवाहा समाज और उसकी योगदान का प्रलेखन किया जा रहा है, जो सराहनीय कदम है। यह साक्ष्य और डाटा आधारित डेयरी नीति निर्माण कोतटस्थ और प्रगाढ़ करेगा ।

ग्यारहवा, श्वेत क्रांति 2.0 की सफलता प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्सों) के कार्य प्रणाली पर निर्भर करता है । जो आए दिन अनियमितता और भ्रष्टाचार के मामले में घिरी रहती है। केंद्र सरकार पैक्सों को पारदर्शी बनाकर इसकी जबावदेही तय कर रही है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने एवं भ्रष्टाचारियों पर नियंत्रण के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने पैक्सों में कामन सर्विस सेंटर की सुविधा वर्ष 2023 में शुरु की है जिसका सुचारू कार्यान्वयन नई श्वेत क्रांति एवं पैक्सों की सुदृढ़ीकरण के लिए अति आवश्यक है ।

अंतोष्ठः सर्वाधिक महत्वपूर्ण है सहकारिता की भावना। नई श्वेत क्रांति इसी भावना की प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है जो सहकारिता और डेयरी आंदोलन को और प्रगाढ़ करने की कवायद कर रहा है द्य भारत को 5 ‘ट‘  ट्रेस, ट्रैक, ट्रेड, ट्रांजिट, टेक्नोलॉजी की अवधारणा  डेयरी क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव और सफल श्वेत क्रांति 2.0 के लिए जरूरी है । भारत को चाहिए की दूध उत्पादन का विकास, जो गोवंशों की जनसंख्या को बढ़ाकर हम हासिल कर रहे हैं, उसके जगह उर्ध्वाधर विकास करे जो सीमित गोवंशों में दूध की पैदावार व गुणवत्ता को ध्यान में रखकर हासिल किया जा सके और विकासोन्मुखी विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करे ।

(ये लेखकों के निजी विचार हैं)