अर्थव्यवस्था

कोविड 19: वैश्विक मंचों पर तेजी से उठ रही कर्ज चुकाने में राहत की मांग

विकासशील देश पर कर्ज का बड़ा दबाव बन रहा है। वहीं दुनिया भर में इस महामारी से लड़ने के लिए अतिरिक्त बिना भार वाले ऋण की मांग की गई है

Richard Mahapatra, Vivek Mishra
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेड्रोस एडेनॉम ने 13 जुलाई को मीडिया को दिए गए अपने संबोधन में कहा है "इस वायरस का एक ही मकसद है और वह है लोगों को संक्रमित करना। मेरा कहना शायद अच्छा न लगे लेकिन कई देश गलत दिशा में मुड़ चुके हैं।" उन्होंने यह बात लगातार फैल रहे कोविड-19 के संदर्भ में कही। टेड्रोस ने कहा कि सरकारें इसके नियंत्रण को लेकर उचित प्रयास नहीं कर रही हैं। 12 जुलाई, 2020 को दुनिया भर में 230,000 नए कोरोना संक्रमण के मामले एक ही दिन में सामने आए। यह मार्च में महामारी के ऐलान के बाद से एक ही दिन में सर्वाधिक संक्रमण का आंकड़ा यानी रिकॉर्ड रहा है। 
लेकिन उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा "मैं जानता हूं कि अन्य स्वास्थ्य, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों को भी संतुलित करने की जरूरत है।" इसी के समानांतर दुनिया का आर्थिक अंत शुरु हो गया है, खासतौर से विकसित देश कर्ज के पहाड़ तले दबे हैं और समय से कर्ज की वापसी कर सकने में असक्षम हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो कभी नहीं देखी गई। कोविड-19 की महामारी से पहले भी उनके ऊपर काफी बड़ा कर्ज था जिसकी वापसी होनी थी। इस महामारी ने एक आपात स्थिति खड़ी कर दी है जो सभी उपलब्ध संसाधनों का डायवर्जन जारी है। अब विकासशील देशों के सामने सिर्फ दो विकल्प बचे हैं कि ऋण सेवा को जारी रखा जाए, जिसका आशय होगा कि स्वास्थ्य के आपातकाल में नाजायज तरीके से खर्च होना या ऋण को चुकाया ही न जाए। दोनों विकल्प ठीक नहीं प्रतीत होते हैं। लेकिन बाद में इस बात की बड़ी संभावना है कि ऋण सेवा का अस्थायी तौर पर निलंबन कर दिया जाए। आसान शब्दों में कहें तो ऋण के भुगतान में थोड़े समय के लिए राहत दे दी जाए। 
इस बाद वाली स्थिति यानी विकल्प के लिए काफी कोलाहल है, जिसे प्रायः "वैश्विक ऋण सौदा" (ग्लोबल डेब्ट डील) कहा जा रहा। ऋण सेवा निलंबन यानी कर्ज भुगतान की अवधि में राहत की मांग विश्व बैंक और आईएमएफ जैसे बहुपक्षीय विकास वित्तपोषण निकायों से शुरू होकर संयुक्त राष्ट्र और दोनों विकसित और विकासशील देशों के प्लेटफार्मों तक तेजी से उठ रही है।
विकासशील और गरीब देशों की आबादी कुल वैश्विकआबादी में 70 फीसदी हैं और वैश्विक जीडीपी में इनकी हिस्सेदारी करीब 33 फीसदी है। महामारी के कारण पहली बार वैश्विक गरीबी अपने पांव पसार रही है। विश्व खाद्य कार्यक्रम का कहना है कि यह महामारी भूख से पीड़ित लोगों की संख्या में करीब दोगुनी वृद्धि (26.5 करोड़) कर सकती है। इसके अलावा ओईसीडी का नीतिगत पेपर कहता है कि इस वैश्विक आर्थिक संकट के चलते 2019 के स्तर की तुलना में 2020 में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में बाहरी निजी वित्तपोषण 700 अरब यूएस डॉलर तक सिकुड़ सकता है। यह 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी से करीब 60 फीसदी ज्यादा हो सकता है। ओईसीडी का कहना है, "इस तरह की बिगड़ती स्थिति कई झटके दे सकती है जो कि जलवायु परिवर्तन और अन्य वैश्विक सार्वजनिक खराबियों के लिए भविष्य की और महामारियों को और बढ़ा सकती है"।
यूएनसीटीएडी और आईएमएफ ने अनुमान लगाया है कि विकासशील देशों को अपनी आबादी को आर्थिक सहायता और सुविधा के मामले में महामारी और इसके दुष्प्रभावों से निपटने के लिए तुरंत 2.5 खरब  (ट्रिलियन) अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है। यूएनसीटीएडी ने विकासशील देशों के लिए इस राहत पैकेज की मांग की। पहले ही, 100 देशों ने आईएमएफ से तत्काल वित्तीय मदद मांगी है। अफ्रीकी वित्त मंत्रियों ने हाल ही में 100 अरब अमेरिकी डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज की अपील की। इसमें से 40 प्रतिशत से अधिक अफ्रीकी देशों के लिए ऋण राहत के रूप में था। उन्होंने अगले साल के लिए भी ब्याज भुगतान पर रोक लगाने की मांग की है। 
यूएनसीटीएडी के महासचिव मुखिसा कित्युई ने कहा कि विकासशील देशों पर कर्ज का भुगतान बढ़ रहा है, क्योंकि उन्हें कोविड-19 के साथ काफी आर्थिक झटके लगें हैं ऐसे में इस बढ़ते वित्तीय दबाव को दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तुरंत और कदम उठाने चाहिए। 
यूएनसीटीएडी के एक अनुमान के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष और 2021 में, विकासशील देशों को  2.6 खरब यूएस डॉलर से 3.4 खरब यूएस डॉलर के बीच सार्वजनिक बाह्य ऋण चुकाना है। वहीं, कोविड -19 महामारी से प्रेरित वित्तीय संकट ऐसे समय में सामने आया जब दुनिया पहले से ही भारी कर्ज में डूबी हुई थी। 2018 में, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सार्वजनिक ऋण ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी की थी। वहीं, 2016 के उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, कम आय वाले देशों ने अपने ऋण का 55 प्रतिशत तक गैर-रियायती स्रोतों से लिया था जिसका अर्थ है विश्व बैंक जैसे विशेष ऋण के विपरीत बाजार दरों पर लिया गया ऋण है। 
हाल ही के महीनों में कई ऋण निलंबन यानी ऋण चुकाने की अवधि में राहत की गई है। 13 अप्रैल को आईएमएफ ने अक्टूबर, 2020 तक 25 सबसे गरीब विकासशील देशों द्वारा ऋण चुकौती को निलंबित कर दिया। 15 अप्रैल को, जी-20 देशों ने मई से इस वर्ष के अंत तक सबसे गरीब देशों में से 73 के लिए समान निलंबन की घोषणा की। 
लेकिन इस तरह की राहतें भले ही तात्कालिक रूप से मदद कर सकती हों, लेकिन फिर भी यह विकासशील देशों को महामारी से लड़ने के लिए बिलों को लेने में मदद नहीं करेगी, और इस तरह उन्हें शिक्षा और अन्य टीका कार्यक्रमों जैसे अन्य सामाजिक क्षेत्र के खर्चों से वित्तीय संसाधनों को हटाने के लिए मजबूर करेगी। यूएनसीटीएडी के वैश्वीकरण प्रभाग के निदेशक रिचर्ड कोज़ुल-राइट के निदेशक ने कहा, "हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता की बात सही दिशा में है," लेकिन विकासशील देशों के लिए अब तक बहुत कम समर्थन प्राप्त हुआ है क्योंकि वे महामारी के और इसके आर्थिक नतीजों के  तात्कालिक प्रभावों से निपटते हैं।
यूएनसीटीएडी ने भविष्य में संप्रभु ऋण पुनर्गठन को निर्देशित करने के लिए एक अधिक स्थायी अंतरराष्ट्रीय ढांचे के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय विकासशील देश ऋण प्राधिकरण (आईडीसीडीए) की स्थापना का सुझाव दिया है। यह "वैश्विक ऋण सौदे" का एक हिस्सा है जो अब कईयों द्वारा समर्थित है।
यूएन ने सुझाव दिया है कि "सभी विकासशील देशों के लिए सभी ऋण सेवा (द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और वाणिज्यिक) पर पूर्ण दृष्टिकोण होना चाहिए"। अत्यधिक ऋणी विकासशील देशों के लिए, यूएन ने अतिरिक्त ऋण राहत का सुझाव दिया है ताकि वे चुकौती पर डिफ़ॉल्ट न हों और एसडीजी के तहत कवर की गई अन्य विकास आवश्यकताओं को निधि देने के लिए भी संसाधन हों। वहीं, उच्च ऋण भार के बिना विकासशील देशों के लिए, महामारी से लड़ने के लिए आपातकालीन उपायों को वित्त देने के लिए नए ताजे ऋण की मांग भी की गई है।