तारावती (35) दक्षिणी दिल्ली हिस्से के श्रीनिवासपुरी में अपने परिवार के साथ रहती है। उसके 7 बच्चे हैं और पति जूता पॉलिश का काम करते हैं। बच्चे कचरा बीनते है। लॉकडाउन के बाद से परिवार के किसी भी सदस्य ने एक पैसा तक नहीं कमाया और अब परिवार में खाने की किल्लत हो रही है। वह कहती है कि वायरस ने उसके परिवार को खत्म कर दिया। अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट से तारावती की कहानी सामने आई। विश्व के कई विकासशील और गरीब देशों में नोवेल कोरोनावायरस की वजह से तकलीफ और गरीबी की अनगिनित कहानियां हैं।
ऑक्सफैम की इस नई रिपोर्ट में कोरोनावायरस से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले गंभीर परिणामों का विश्वेषण किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक वायरस के असर से दुनियाभर के 50 करोड़ लोग गरीबी के अंधकार में चले जाएंगे। विश्लेषण के मुताबिक 1990 के बाद पहली बार गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों में इजाफा हो सकता है। कुछ इलाकों में तो यह 30 साल पहले जितना भी हो सकता है। खराब स्थिति में विश्वभर में गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों की संख्या 43.4 करोड़ से बढ़कर 61.1 करोड़ हो जाएगी।
यह बात तेजी से सामने आ रही है कि इसबार अर्थव्यवस्था पर संकट 2008 के संकट से कहीं गहरी है। अगर इन्हें बचाने के लिए कोई बहुत बड़ी कोशिश नहीं हुआ तो अमीर और गरीब के बीच का फासला अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगा। रिपोर्ट यह भी सुझाती है कि वायरस से लड़ने का एक ही तरीका है, गरीब और अमीर देश इससे साथ लड़े। अमीर देश गरीबों की मदद करें।
गरीबों के लिए कैसे कहर बना वायरस
यह वायरस अमीर या गरीब में भेद नहीं करता, तो अब सवाल उठता है कि इसका प्रभाव गरीब लोगों पर कैसे सबसे अधिक पड़ता है। रिपोर्ट में सामने आया है कि कुछ लोग ही कानून के तहत काम करने का एक सुरक्षित माहौल पाते हैं, लेकिन अधिकतर मजदूरों के पास उनके अधिकार सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे लोगों को बंदी के बाद बिना किसी आमदनी के घर बैठना पड़ रहा है।
ऑक्सफैम की 9 अप्रैल को प्रकाशित रिपोर्ट में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के 53 प्रतिशत यानि कि 14 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में हैं और अब खाली बैठे हैं। महिलाएं अक्सर असंगठित क्षेत्र में ही काम करती हैं और उन्हें भी यही समस्या झेलनी पड़ रही है। अति गरीब देश की 92 फीसदी महिलाएं असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं। यहां तक कि अमीर देश में भी टैक्सी ड्राइवर, सफाईकर्मी, डिलिवरी करने वाले लोग, वेटर, दुकानों पर काम करने वाले लोग, सेक्यूरिटी गार्ड और सड़कों पर ठेला लगाने वाले लोग सहित कई ऐसे रोज कमाने खाने वाले लोगों पर अर्थव्यवस्था खराब होने का असर सबसे पहले हुआ है। उदाहरण के लिए फूल की मांग में कमी आने पर यूरोप में फूलों के व्यापार में लगे 30 हजार मजदूर एकाएक बेरोजगार हो गए। कंबोडिया और म्यांमार में कपड़ों के काम में लगे लोगों का रोजगार छिन गया। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक अफ्रिकी देशों में आधे लोगों का रोजगार छिन जाएगा।
गरीबों की मदद के लिए क्या हैं वो बड़े उपाय
रिपोर्ट सुझाती है कि कम से कम 2.5 ट्रिलियन डॉलर की मदद से इस वैश्विक संकट से लड़ा जा सकता है। इसमें गरीबों की सीधे मदद करना यानि गरीबों की पैसों से मदद सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए। गरीब देशों में क्षण माफी या उसकी वसूली में मोहलत देकर यह काम किया जा सकता है। डूबते व्यापारों को बचाने की कोशिश बेल आउट के जरिए हो सकती है, लेकिन इसमें भी छोटे व्यापार को प्रमुखता देनी होगी जिससे असंगठित क्षेत्र के लोग जुड़े हों। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सरकारों को टैक्स में कटौती कर या उसे चुकाने के लिए वक्त देकर भी लोगों की मदद करनी चाहिए।