तारिक अजीज / सीएसई  
अर्थव्यवस्था

गरीबी घटाने के लक्ष्य को चुनौतीपूर्ण बना देगा जलवायु परिवर्तन

विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुुताबिक, अगर इसी गति से गरीबी कम होती रही तो 2030 की बजाय इस लक्ष्य को पाने में दशकों लग जाएंगे

Richard Mahapatra

जलवायु परिवर्तन, सदी के अस्तित्व को चुनौती के रूप में हमारे सामने बड़ी समस्या है। धरती के गरम होते जाने का नतीजा ऐसा वातावरण है, जो अस्थिर और विनाशकारी है, खासकर दुनिया के उन सबसे गरीब लोगों के लिए, जिनका ग्रीन हाउस गैसोें के उत्सर्जन में योगदान कम है।

ये लोग जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष शिकार हैं। इसके जोखिम और गरीबों के हाशिये पर जाने का अगला पड़ाव यह है कि वे अपनी गरीबी से बाहर निकलने की क्षमता खो रहे हैं। दूसरी ओर, आर्थिक विकास एक वास्तविकता है, जो गरीबी घटाने का सबसे महत्वपूर्ण औजार होने के साथ ही तेजी से ग्रीनहाउस गैसोें का उत्सर्जन बढ़ाने वाली गतिविधि भी है।

उत्सर्जन के अधिकार को लेकर गरीब-अमीर की सामान्य बहस में यह सबसे विवादास्पद पहलू के तौर पर उभरकर सामने आता है - विकासशील और गरीब देशों को तरक्की करनी है और इसलिए उन्हें ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने का हक है।

नतीजे के तौर पर इस बहस को गरीब-अमीर की आबादी की धुरी पर भी केंद्रित किया जा सकता है। इस तरह से गरीबी हटाने का क्या मतलब होगा, जब वैसा कोई भी प्रयास आगे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को आगे ही बढ़ाएगा।

क्या गरीबों को हमेशा की तरह उनकी किस्मत पर छोड़ दिया जाएगा क्योंकि हमेें ग्रीनहाउस गैस-उत्सर्जन कम करना है। या फिर, ज्यादा महत्वपूर्ण यह सवाल कि क्या गरीबी उन्मूलन अंततः उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी किये बिना किया नहीं जा सकता। विश्व बैंक की ‘ द पॉवर्टी, प्रास्पेरिटी और प्लेनेट रिपोर्ट 2024’ इस तर्क पर विचार करती है।

पहला, दुनिया में गरीबों की स्थिति पर रिपोर्ट यह कहती है - ‘ वैश्विक रूप से गरीबी घटाने की दर धीमी होकर स्थिर होने के करीब है, जिससे 2020- 30 का दशक, अवसर गंवा देने वाला पीरियड होने के करीब है।’ फिलहाल दुनिया की साढ़े आठ फीसदी आबादी ‘अत्यधिक गरीबी’ यानी 2.15 डॅालर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की हालत में रह रही है।‘

इस लिहाज से दुनिया इस आबादी को 2030 तक तीन फीसदी तक लाने के लक्ष्य तक पहुंचती नजर नहीं आ रही है। इसके बजाय, अगर इसी गति से गरीबी कम होती रही तो इस लक्ष्य को पाने में दशकों लग जाएंगे। 2030 तक के लक्ष्य को देखें तो तब तक कुल वैश्विक आबादी की करीब 7 ़3 फीसदी आबादी ‘अत्यधिक गरीब’ की श्रेणी में होगी।

2021 में वैश्विक स्तर पर दुनिया की लगभग साठ फीसदी आबादी ने बाढ़, सूखे, चक्रवातों और लू जैसी चरम मौसमी घटनाओं को देखा। इस संदर्भ में देखें तो जलवायु परिवर्तन, गरीबी घटाने के लक्ष्य को चुनौतीपूर्ण बना देगा। इसके अंदर वह ताकत है जो लोगों को गरीबी के स्थायी जाल में फंसाकर रख सकती है।

दुनिया के ज्यादातर गरीब जैव-ईंधन आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं, दुनिया के अत्यधिक गरीबों की करीब 66 फीसदी आबादी खेती करती है। इससे वे जलवायु के झटकों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं।

विश्व बैंक के अनुसार, ‘चरम मौसमी घटनाओं की वजह से पांच में से करीब एक व्यक्ति को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ खोने का जोखिम उठाना पड़ेगा, जिसे वापस पाने के लिए उसे संघर्ष करना पड़ेगा।’ इसका मतलब है कि उन्हें पूरे जीवन में जलवायु के गंभीर झटकों का सामना करना होगा और जिससे उबरने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ेगा।’

इस तरह, गरीबी उन्मूलन ने नई तात्कालिकता हासिल कर ली है और उससे निपटने के लिए बेहतर प्रयासों की जरूरत है। यह सवाल उठाता है कि क्या गरीबी उन्मूलन के प्रयास और आर्थिक विकास, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ाएंगे।

विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में कुछ शोधों का हवाला देते हुए तर्क किया कि इसका ज्यादा असर नहीं होगा। उदाहरण के लिए रिपोर्ट, एक शोध का उद्धरण देती है- ‘गैर-आश्चर्यजनक रूप से शोध यह सुझाव देता है कि लोगों को अत्यधिक गरीबी से निकालने के लिए जिम्मेदार प्रयास, जलवायु लक्ष्यों का प्रतिकार नहीं करते हैं क्योंकि कम आय वाले गृहस्वामियों का गैस उत्सर्जन वैसे भी कम है।’

विश्व बैंक की एक अन्य रिपोर्ट में किया गया है -‘अत्यधिक गरीबी उन्मूलन से 2019 की तुलना में 4.7 फीसदी ज्यादा उत्सर्जन होगा।’

यह दुविधा अलग-अलग देशों में उनकी गरीबी के स्तर, उनके आर्थिक विकास के स्रोतों और उत्सर्जन के स्तर के हिसाब से अलग- अलग है। रिपोर्ट कहती है - ‘ फिर भी यह स्पष्ट है कि अत्यधिक गरीबी उन्मूलन से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में पहले से निर्धारित कमी न्यूनतम है।’