अर्थव्यवस्था

पलायन रोकने का दावा फेल, फिर बिहार छोड़कर बाहर जा रहे मजदूर

कोसी, मिथिलांचल और चंपारण के इलाकों में रोज पंजाब और हरियाणा से बसें आ रही हैं, जो मजदूरों को अपने साथ धान रोपणी के लिए ले जा रहे हैं

Pushya Mitra
कोरोना और लॉकडाउन के बीच जब लाखों की संख्या में मजदूर बिहार के अपने गांवों की तरफ लौट रहे थे, तब राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि अब यहां लाचारी में किसी को जाने की जरूरत नहीं। उन्होंने मनरेगा के जरिये 24 करोड़ श्रमदिवस रोजगार का दावा किया था और क्वारंटीन सेंटरों में रह रहे मजदूरों की स्किल मैपिंग करवायी थी, ताकि जो मजदूर जिस रूप में दक्ष हो उसे उसी रूप में बिहार में ही रोजगार उपलब्ध कराया जाये। क्वारंटीन सेंटरों में मजदूरों से वीडियो कांफ्रेंसिंग में बात करते हुए उन्होंने इस बात पर सहमति जताई थी कि नून (नमक) रोटी खायेंगे, बिहार छोड़ कर नहीं जायेंगे। मगर अनलॉक-1 के दौरान पलायन को रोकने का उनका दावा फेल होता जा रहा है। इस दौरान बिहार के तकरीबन हर जिले से बड़ी संख्या में मजदूर वापस अपने काम के इलाके में लौट रहे हैं।

कोसी, मिथिलांचल और चंपारण के इलाकों में रोज पंजाब और हरियाणा से बसें आ रही हैं, जो मजदूरों को अपने साथ धान रोपणी के लिए ले जा रहे हैं। वहीं सहरसा और कटिहार से चलने वाली ट्रेनों में भी इन दिनों मजदूरों की अच्छी खासी भीड़ देखी जा रही है। पिछले दस-बारह दिनों में अकेले पंजाब के मालवा अंचल में 300 रिजर्व बसों से मजदूरों के पहुंचने की खबरें हैं। ये मजदूर यहां धान की रोपणी के लिए लाये गये हैं। उसी तरह यूपी, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना आदि राज्यों की छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों में काम करने के लिए भी बड़ी संख्या में मजदूर बिहार से जा रहे हैं।

क्या है वजह

बिहार में मनरेगा के मसले पर काम करने वाले जन जागरण शक्ति संगठन के आशीष रंजन कहते हैं कि यहां मनरेगा की अभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है कि इसके भरोसे मजदूरों को रोका जा सके। पहली दिक्कत तो यह है कि मजदूरों को नियमित काम नहीं मिलता है। छह-सात रोज काम मिलता है और फिर काम बंद हो जाता है। इसके अलावा राज्य में 1.8 करोड़ जॉबकार्ड होल्डर पहले से हैं, बाहर से आये मजदूरों को भी जॉब कार्ड दिया जा रहा है। लॉकडाउन की अवधि में क्या बाहर से आए मजदूरों को ही काम मिला, यह मैं नहीं कह सकता। अभी भी टारगेटेड रूप से प्रवासी मजदूरों को काम उपलब्ध कराया जा रहा है, कहना मुश्किल है। इसके अलावा अभी वे लोग सिस्टम में नये हैं। यहां एक तो पैसा देर से मिलता है, दूसरा उनका अकाउंट अभी एमआइएस सिस्टम से लिंक होगा फिर पेमेंट मिलेगा। कुल मिलाकर कई ऐसे पेंच हैं, जिससे मजदूरों का मनरेगा पर भरोसा नहीं बन पा रहा है।

बाहर के नियोक्ता दे रहे हैं ऑफर

चाहे पंजाब के किसान हो या विकसित राज्यों के कंपनी मालिक, सभी इन दिनों मजदूरों को अच्छी मजदूरी व अन्य सुविधाओं का प्रलोभन देकर ले जा रहे हैं। पंजाब में रोपणी के लिए इस बार 4600 रुपये एकड़ का रेट तय हुआ है। इसके अलावा वे मजदूरों को रहने-खाने की सुविधा भी दे रहे हैं। किसान खुद रिजर्व बस से मजदूरों को बुलवा रहे हैं। वहीं बंगलुरु, हैदराबाद और पुणे के कुछ कंपनी मालिकों ने अपने सेमी स्किल्ड मजदूरों को बिहार से वापस बुलाने के लिए एयर टिकट भी भेजा है और लॉक डाउन की अवधि का मेहनताना देने का भी वादा किया है। इसी हफ्ते सोमवार और मंगलवार को ऐसे 75 मजदूरों ने पटना हवाई अड्डे से फ्लाइट पकड़ी।

मजदूरों का स्वागत हो रहा है

बिहार से दूसरे काम पर पहुंचने वाले मजदूरों के रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर फूल मालाओं से स्वागत होने की भी खबरें हैं। दरअसल लॉक डाउन की अवधि में दूसरे राज्यों में रहकर मजदूरी करने वाले 60 से 80 फीसदी मजदूर वापस बिहार लौट आये थे। राज्य में पिछले एक सवा महीने में 20 लाख से अधिक मजदूर लौटे हैं। इनमें से 15 लाख से अधिक क्वारंटीन की अवधि को पूरा कर चुके हैं। ऐसे में स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं मिलने और दूसरे राज्यों से बेहतर ऑफर पाने की वजह से वे फिर से पलायन करने लगे हैं।

राज्य सरकार को नहीं है खबर

राज्य के तकरीबन हर जिले से पिछले दस दिनों से मजदूरों का पलायन हो रहा है। मगर राज्य का श्रम संसाधन विभाग इस मामले को लेकर सक्रिय हो या पलायन कर रहे मजदूरों का निबंधन कर रहा हो, ऐसी जानकारी नहीं मिलती। पिछले दिनों पूर्णिया से मजदूरों के पलायन की खबर आई तो वहां के श्रम आयुक्त ने इस जानकारी से ही इनकार कर दिया। इस खबर के सिलसिले में राज्य के श्रम संसाधन विभाग के सचिव से जब बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने सवाल सुनकर फोन कट कर दिया। फिर कई बार रिंग होने पर भी फोन नहीं उठाया। उसी तरह राज्य श्रम आयुक्त ने भी फोन पिक नहीं किया। मैसेज भेजने पर भी जवाब नहीं दिया। अगर उनका जवाब आता है तो खबर को अपडेट किया जाएगा।