अर्थव्यवस्था

क्या रात्रि में किए प्रकाश की मदद से आय में व्याप्त असमानता का लगाया जा सकता है पता

Lalit Maurya

क्या रात को घरों और रास्तों को रोशन करने के लिए किए गए प्रकाश की मदद से आय में जो असमानता व्याप्त है उसका पता लगाया जा सकता है| बात सुनने में अजीब जरूर है पर सच है| हाल ही में वैगनिंगन, उट्रेच और नानजिंग विश्वविद्यालय ने एक नया तरीका खोजा है जिसमें रात्रि के समय किए गए प्रकाश की मदद से आय में व्याप्त असमानता का पता लगाया जा सकता है। अभी तक विश्वसनीय तरीके से इसका अनुमान केवल कुछ सीमित देशों में ही स्थानीय स्तर पर लगाया जा रहा था, लेकिन इस नए तरीके की मदद से पहली बार वैश्विक स्तर पर इसका मानचित्रण संभव हो पाया है। इससे जुड़ा शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।

यदि अंतरिक्ष से देखें तो रात के समय जिन स्थानों पर प्रकाश दिखता है वो इस बात का सबूत है कि उन स्थानों पर इंसान रहते हैं, लेकिन इस प्रकाश की मदद से और भी बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है| हाल ही में किए शोध से पता चला है कि जो स्थान आर्थिक रूप से अधिक समृद्ध होते हैं, उन स्थानों पर पिछड़े इलाकों की तुलना में प्रति व्यक्ति अधिक मात्रा में प्रकाश उत्सर्जित होता है| ऐसा बड़े-बड़े घरों, बेहतर स्ट्रीट लाइटिंग आदि के कारण होता है|

ऐसे में उपग्रह से प्राप्त छवियों और जनसंख्या घनत्व सम्बन्धी मानचित्रों की मदद से अमीर और गरीब इलाकों को एक दूसरे से अलग किया जा सकता है| यह नया शोध इसे एक कदम और आगे ले जाने में सफल हुआ है| इसके अनुसार अंतरिक्ष से आय की असमानता का अनुमान लगाना भी संभव है। वैज्ञानिकों ने इस तरीके की मदद से एक वैश्विक मानचित्र बनाया है, जो दुनिया में उन हॉटस्पॉट को दिखाता है जहां आय में समानता और असमानता व्याप्त है|

कैसे काम करता है यह तरीका

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता उस्मान मिर्जा ने बताया कि बेशक हम अंतरिक्ष से हर किसी की आय का पता नहीं लगा सकते, लेकिन अंतरिक्ष से ली गई तस्वीरों में एक विशेष पैटर्न सामने आता है जो इस बारे में बहुत कुछ बता सकता है| एक अन्य शोधकर्ता मार्टन शेफर के अनुसार हमारा जो विचार है, वो बहुत सीधा सा है| वैश्विक स्तर पर एक सार्वभौमिक प्रवृत्ति है, जो अमीर और गरीब पड़ोस को अलग करती है| ऐसे में इस असमानता को देखने के लिए किसी एक घर को अलग से व्यक्तिगत स्तर पर देखने की जरुरत नहीं है|

अपने परिणामों की जांच के लिए वैज्ञानिकों ने अपने निष्कर्ष की तुलना, पारंपरिक तरीके से मापी गई आय में व्याप्त असमानता से की है| असमानता को मापने का यह पारम्परिक तरीका लोगों द्वारा स्वयं बताई गई आय और टैक्स के रिकॉर्ड पर आधारित है| मगर विकासशील देशों में आय और टैक्स दोनों के बारे में ही स्पष्ट तौर पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध होती है| मिर्जा के अनुसार ऐसे में हमें उन देशों में वास्तविकता में यह पता नहीं चलता कि आय में व्याप्त असमानता क्या और कितनी है|

जबकि हैरानी की बात थी कि प्रकाश के आधार पर लगाए गए अनुमान, मौजूदा अनुमानों से काफी मिलते जुलते थे| इस शोध से जुड़े शोधकर्ता बास वैन बेवल का मानना है कि इसकी मदद से हम उन क्षेत्रों में भी आय में फैली असमानता का पता लगा सकते हैं, जहां आंकड़ों की कमी है| इसके निष्कर्ष विकासशील देशों के लिए मददगार हो सकते हैं|