केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के केंद्रीय बजट 1 फरवरी, 2023 में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के कल्याण के लिए एक मिशन की घोषणा की। इस मिशन के तहत इन समूहों के सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए अगले तीन वर्षों के लिए 15,000 करोड़ रुपये का कोष आवंटित किया गया है।
प्रधानमंत्री पीवीटीजी मिशन को 'रीचिंग द लास्ट माइल' के हिस्से के रूप में लॉन्च किया जाएगा, जो इस साल के बजट में सूचीबद्ध सात सप्तऋषि प्राथमिकताओं में से एक है। भारत में 75 पीवीटीजी समूह हैं जो इस योजना से लाभान्वित होंगे।
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा: पीवीटीजी विकास मिशन विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों को सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल, शिक्षा, पोषण, सड़क और दूरसंचार कनेक्शन और आजीविका से परिपूर्ण करेगा। अगले तीन वर्षों में इस मिशन के लिए 15,000 करोड़ रुपये का बजट दिया जाएगा।
जनजातीय मामलों के मंत्रालय के लिए कुल 12,461.88 करोड़ रुपये अलग रखे गए हैं, जो पिछले साल की तुलना में 5,160.88 करोड़ रुपये अधिक है। पिछले साल पीवीटीजी के विकास के लिए 252 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि ग्रामीण और आदिवासी जिलों में आदिवासी छात्रों के लिए 749 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में 38,800 शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी। इन स्कूलों में 350,000 से अधिक छात्र पढ़ रहे हैं।
अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए बहु समावेशी कार्यक्रम के तहत बजट पिछले वर्ष के 3,183 करोड़ से बढ़ाकर 4,295 करोड़ कर दिया गया है।
एक आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता और ओडिशा स्थित गैर-लाभकारी वसुंधरा के मुख्य कार्यकारी वाई गिरि राव ने कहा कि किसी योजना के लिए बजट आवंटन पर्याप्त नहीं है। इन समुदायों के लिए विकास के क्या मायने हैं, इसे परिभाषित करने और धन का उपयोग कैसे किया जाएगा, इसे परिभाषित करने के लिए एक राष्ट्रीय जनजातीय नीति की आवश्यकता है।
राव ने कहा, “हालांकि यह 2021-22 में पीवीटीजी के कल्याण के लिए आवंटित 250 करोड़ रुपये के पहले के बजट के मुकाबले बहुत अधिक है, बावजूद इसके हमें इस समूह के लिए एक विशेष नीति की आवश्यकता है, न कि केवल योजनाओं की। देश में 75 पीवीटीजी हैं, लेकिन हम उनकी व्यक्तिगत और सामूहिक आबादी को नहीं जानते हैं।"
उन्होंने बताया कि कुछ पीवीटीजी खानाबदोश हैं और एक राज्य से दूसरे राज्य में घूमते रहते हैं।
हमें यह देखने की आवश्यकता है कि इन खानाबदोश समूहों को इस योजना से कैसे लाभ होता है। कोंडुरु समुदाय जैसे कुछ समूहों को आंध्र प्रदेश में पीवीटीजी का दर्जा प्राप्त है, लेकिन उन्हें ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध भी नहीं किया गया है; हमें इस तरह के मुद्दों पर भी गौर करने की जरूरत है।'
राव कहते हैं कि पीवीटीजी के कल्याण के लिए 1970 के दशक में कार्यक्रम शुरू हुआ था और हम अभी भी उन्हें बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के बारे में बात कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि एक उचित नीति का अभाव है जो उनकी संस्कृति, प्रथाओं, आजीविका और उनके जीवन के अन्य पहलुओं को समझे और उनके कल्याण के लिए काम करें।