अर्थव्यवस्था

आम बजट 2023-24: हरित विकास के लिए हाइड्रोजन मिशन हो पाएगा सफल?

बजट में आवंटित धनराशि में शोध के लिए बहुत कम धनराशि का प्रावधान किया गया है

Anil Ashwani Sharma

हरित विकास की अवधारणा को फलीभूत करने के लिए भारत को विकास के एक ऐसे मॉडल को अपनाना होगा, जिससे आर्थिक विकास के कारण प्राकृतिक संपदा को कम से कम नुकसान पहुंचे। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस बार के बजट में विशेषकर हाइड्रोजन अभियान को आगे बढ़ाने के लिए अपनी ओर से एक बड़ी “धनराशि” की घोषणा की।

देखा जाए तो इस अभियान की घोषणा सर्वप्रथम 2021 में ही प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिए गए अपने भाषण में “हाइड्रोजन मिशन” के रूप में कर दी थी। उसी मिशन को कार्यरूप देते हुए वित्ममंत्री ने 2022 के बजट में इससे संबधित नीतियों की घोषणा की थी और अब उन नीतियों के क्रियान्वयन के लिए 2023 के बजट में 19,700 करोड़ रुपये की धनराशि का आवंटन किया है। लेकिन यह मिशन इतना आसान नहीं है।

वर्तमान बजट में केंद्र सरकार ने कुल 19 हजार 744 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। यदि इस धनराशि को विभिन्न मदों पर किए जाने वाले खर्च का लेखा-जोखा देखें तो पता चलता है कि जो सबसे महत्वपूर्ण मद था, उसमें सबसे कम धनराशि आवंटित की गई है। बजट में इस प्रोजेक्ट को लागू करने पर 17,490 रुपये खर्च करने की बात कही गई है।

वहीं 1,466 करोड़ रुपये पायलट प्रोजेक्ट पर लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण कारक है वह है, इस प्रोजेक्ट के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट कार्यक्रम और इसके लिए घोषित धनराशि में से केवल 400 करोड़ की ही व्यवस्था की गई है। जबकि इस पर अधिक धनराशि के खर्च किए जाने की जरूरत है।

इसका कारण है कि वैश्विक स्तर पर हरित हाइड्रोजन का विकास अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है। यही कारण है कि वर्तमान में इसकी कीमत वैश्विक स्तर पर बहुत अधिक है। और इस कीमत को तभी कम किया जा सकता है जब इस पर अधिक से अधिक शोधकार्य हो। कहने के लिए बजट में की गई घोषणा को क्लीन एनर्जी की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम अवश्य कहा जा सकता है लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन की कीमतों को कम रखना इससे से भी बड़ी चुनौती है।

इस संबंध में द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है कि ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत 221 से 737 रुपये प्रति किलोग्राम तक है। 2030 तक ये 147 रुपये प्रति किलोग्राम होने का अनुमान है। ग्रीन हाइड्रोजन पर शिफ्ट होने से ट्रांसपोर्ट सेक्टर में परंपरागत ईंधन के इस्तेमाल में कमी आने की उम्मीद है।

2050 तक भारत में हाइड्रोजन की मांग और खपत पांच गुना तक बढ़ने की उम्मीद जताई गई है। वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय अक्षय उर्जा एजेंसी के अनुसार 2050 तक कुल उर्जा में हाइड्रोजन की 12 फीसदी हिस्सेदारी होगी। भारत के बड़े औद्योगिक समूह भी इस सेक्टर में अपने पैर पसार रहे हैं। इस समय ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश चीन है, जो सालाना 2.4 करोड़ टन से अधिक ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करता है।

भारत में वर्तमान में ब्लैक या ग्रे हाइड्रोजन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह कोयले से उत्पन्न होता है और देश को नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य का हासिल करने के लिए इन उद्योगों में ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करना जरूरी होगा। हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है लेकिन शुद्ध हाइड्रोजन की मात्रा अत्यंत ही कम है।

लेकिन जब विद्युत धारा जल से गुज़रती है, तो यह इलेक्ट्रोलिसिस (विद्युत अपघटन) के माध्यम से इसे मूल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में खंडित करती है। यदि इस प्रक्रिया के लिए उपयोग की जाने वाली विद्युत का स्रोत पवन या सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोत हैं तो इस प्रकार उत्पादित हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन कहा जाता है। ग्रीन हाइड्रोजन वर्तमान में वैश्विक हाइड्रोजन उत्पादन का 1 प्रतिशत से भी कम उत्पादन होने के कारण उपभोग के लिए अत्यधिक महंगा है।

एक किलोग्राम ब्लैक हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिये 0.9-1.5 अमेरिकी डॉलर खर्च होता है, जबकि ग्रे हाइड्रोजन की लागत 1.7-2.3 अमेरिकी डॉलर और ब्लू हाइड्रोजन की कीमत 1.3-3.6 अमेरिकी डालर तक हो सकती है। जबकि ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत 3.5-5.5 डॉलर प्रति किलोग्राम है। हाइड्रोजन उद्योग का अनुमान है कि भारत को घरेलू स्तर पर हाइड्रोजन आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने के लिए वर्ष 2030 तक करीब 25 अरब डॉलर निवेश की जरूरत होगी।