केंद्रीय बजट 2020-21 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मील का पत्थर साबित होगा। यह सिर्फ इसलिए नहीं कि भारत आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, बल्कि इसलिए भी कि दरअसल यह प्रधानमंत्री के कई महत्वाकांक्षी वादों को समयसीमा से पूरा करने की तरफ इशारा करेगा।
आइए, इन वादों के बारे में बात करते हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री ने 2022 तक पूरा करने की बात कही है। वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया गया है। ऐसे में, यह बजट हमें बताएगा कि इस दिशा में कितना काम हो चुका है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार का आखिरी कदम क्या होगा? इसके अलावा प्रधानमंत्री ने 2022 तक न्यू इंडिया बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया था, हालांकि यह न्यू इंडिया कैसा होगा, इसे परिभाषित नहीं किया गया।
पिछले बजट भाषण से पहले ही प्रधानमंत्री ने वर्ष 2024 तक हर घर नल का जल और 2022 तक हर घर बिजली के वादा किया था। नल जल के वादे की पूर्ति के लिए इस बार के बजट में जरूरी सहायता जारी कर इस लक्ष्य को पाया जा सकता है।
ऐसे समय में भारत इस वर्ष पिछले 5 वर्ष की तुलना में सबसे कम रफ्तार से तरक्की कर रहा है, नया बजट मोदी के साहसिक रूप से अपने वादों को पूरा करने की छवि के लिए एक परीक्षा के रूप में सामने है।
इन वादों की पूर्ति के लिए बजट में किस तरह की तैयारियां हो रही हैं? मात्र एक सप्ताह के भीतर बजट को अंतिम रूप देकर कड़ी सुरक्षा के बीच छपने के लिए तैयार करना है। बजट पर काम करने वाले अधिकारी बिना नाम जाहिर किए सामान्य रूप से एक बात कहते हैं, "सुर्खियों पर राज करने वाले बजट का इंतजार कीजिए।"
इसका मतलब ये हुआ कि इस बजट में कई घोषणाएं होनी हैं, कई प्रावधान सामने आएंगे, लेकिन इन कामों के लिए वित्तीय कोष यानी पैसा जारी करने के मामले में यह बजट कमतर हो सकता है।
बजट में कोष के बंटवारे का निर्धारण करने में शामिल नीति आयोग के एक वरिष्ठ सदस्य के मुताबिक यह बजट पिछले वर्ष को तुलना में 10 से 15 फीसदी अधिक पैसा खर्च करने वाला हो सकता है।
आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए बजट ग्रामीण विकास की नीतियों को युक्तियुक्त बनाने वाला होगा। सूत्रों के मुताबिक इस बजट में दो बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। केंद्रीय वित्त विभाग के एक अधिकारी कहते हैं, "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ही एकमात्र ऐसी योजना साबित हो रही है, जो ग्रामीण विकास के लिए प्रभावी और व्यवहारिक है।"
जब वित्त मंत्रालय सभी विभागों से कोष की जरूरत और प्रमुखता के अनुसार योजनाओं की जानकारी मंगा रहा था, तब एक सलाह भी मांगी जा रही थी कि मनरेगा के तहत और किस ग्रामीण योजनाओं को लेकर वित्त पोषित किया जा सकता है। कई नौकरशाह इस बात का यह भी मतलब निकाल रहे हैं कि मनरेगा का इस्तेमाल कई दूसरी ग्रामीण विकास योजनाओं को वित्त पोषित करने में किया जाएगा।
संसद में पारित एक अधिनियम द्वारा समर्थित एक मांग आधारित योजना होने के नाते, सरकार इसके साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकती है। लेकिन इसमें उच्च बजटीय आवंटन भी हैं।
एक अधिकारी कहते हैं कि कई छोटे और कम प्रभावी योजनाओं को हटाया जा सकता है। इससे ग्रामीण विकास के लिए यह योजना (मनरेगा) एकलौती प्रभावी योजना बन जाएगी। मनरेगा को 75,000 करोड़ रुपये का कोष मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
बजट की तैयारी से पहले से ही सरकार वर्ष 2024 तक हर घर तक नल जल पहुंचाने की योजना की रूपरेखा बनाने पर काम कर रही है। मनरेगा का इस्तेमाल कर इस योजना को बल देने की बात जल शक्ति मंत्रालय बार-बार करता रहा है।
यह योजना हर किसी को पानी की आपूर्ति, ग्राम स्तर पर पानी का संग्रहण और जल श्रोतों के संरक्षण को शामिल करती है। इस वक्त 70 प्रतिशत से अधिक मनरेगा के स्वीकृत काम पानी के संरक्षण से संबंधित हैं।
मनरेगा के कोष को बढ़ाकर और जल संरक्षण की तरफ अधिक ध्यान देकर नया नल जल परियोजना के लक्ष्य को बिना किसी अतिरिक्त पैसा खर्च किया पाया जा सकेगा। इस बजट से जिस 'सुर्खी' की उम्मीद की जा रही है वह किसान और गरीब परिवार को सीधा आर्थिक सहयोग देना हो सकता है।
पीएम किसान योजना के तहत सरकार ने छोटे किसानों को पहले ही 6000 रुपए सालाना का सहयोग देना शुरू किया है। इस वक्त सब्सिडी में भी कई योजना में सीधे लाभार्थी को पैसा सीधे बैंक खाते में देने जैसे प्रयोग किए जा रहे हैं।
कृषि विभाग के अधिकारियों की माने तो प्रधानमंत्री दफ्तर से हुई कई बैठकों के बाद सरकार से उम्मीद है कि वो सभी तरह को सब्सिडी को साथ मिलाकर सीधे चिन्हित लाभार्थी के खाते में पहुंचाने का काम कर सकते हैं। 'सार्वभौमिक आय योजना' की घोषित करते हुए यह ऐलान इसी बजट में किया जा सकता है।
नीति आयोग में आर्थिक विशेषज्ञ के तौर से जुड़े सदस्य बताते हैं कि एक वर्ष में किसानों के खाते में 15,000 रुपए तक देने को घोषणा निश्चित तौर पर सुर्खियां बटोरने वाली होंगी, तब भी जब ये 2021 तक पूरी न कि जा सके।
मोदी के काम करने की बानगी देखें तो पता चलता है कि बड़ी योजनाओं को उन्होंने हमेशा बजट की प्रक्रिया से बाहर रखते हुए ही ऐलान किया है। पूर्व में ऐसे निर्णय बड़े चुनाव के पहले योजनाबद्ध तरीके से लिए गए हैं।
सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी को आने वाले दो वर्षों में कई बड़े चुनावों का सामना करना है। प्रधानमंत्री मोदी के 2019 में दोबारा चुने जाने के पीछे एक बड़ी वजह ठोस लाभ सीधे 'सही' व्यक्ति तक पहचाना रहा है। जैसे कि पिछले आम चुनाव से पहले उन्होंने 20 करोड़ लोगों को लाभ देने हुए स्वच्छ भारत अभियान और उज्ज्वला योजना के जरिए गरीबों के विकास के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने को कोशिश की।
अगला बजट इस बात की पुनरावृत्ति हो सकती है जिसमें आगे भी प्रत्येक व्यक्ति तक निजी तौर पर फायदा पहुंचाते हुए सीधे खाते में पैसा पहुंचाने जैसी नीतियों पर काम हो सकता है।