वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब 1 फरवरी 2020 को बजट 2020-21 पेश करेंगी तो बहुत संभावना है कि वह जलवायु परिवर्तन का लक्ष्य हासिल करने के लिए स्थानीय निकायों के स्तर पर योजनाएं बनाने की घोषणा करें।
दरअसल, जलवायु परिवर्तन की वजह से किसानों को बड़ा समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें बेमौसमी और अत्याधिक बारिश, बाढ़, सूखा, ओले, आंधी-तूफान, जमीन का गीलापन, शीत लहर, चक्रवातों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए इस पर विचार किया गया है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर भी योजनाएं बनें। इसके लिए बजट में केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय और राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान और पंचायती राज, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), केंद्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान (सीआरआइडीए) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद जैसे संस्थानों के लिए धन के आवंटन में वृद्धि हो सकती है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने 13 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में बताया था कि 2017 में भारत में भारी वर्षा और बाढ़ से 60 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन चपेट में आईथी, इसमें से 49 लाख हेक्टेयर में बोई गई फसल को नुकसान हुआ था।
संभावना जताई जा रही है कि बजट में आकस्मिक योजनाओं को ब्लॉक स्तर पर सटीक मौसम पूर्वानुमान प्रदान करने पर काम कर रहे आईएमडी और आईसीएआर के साथ ब्लॉक स्तर की योजनाओं के लिए धन आवंटन किया जा सकता है।
आईएमडी 2020 तक देश के 660 जिलों में सभी 6,500 ब्लॉकों के लिए मौसम पूर्वानुमान और एग्रोमेट सलाहकार सेवाएं प्रदान करेगा, पिछले साल अप्रैल में इसकी घोषणा की गई थी।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव, एम राजीवन के अनुसार, आईएमडी ने पहले ही लगभग 1,000 ब्लॉकों में स्थानीय पूर्वानुमानों के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की है, जिसमें 730 और जोड़े गए हैं। इसे आईएमडी द्वारा विकसित किए जा रहे प्रभाव-आधारित मौसम पूर्वानुमान के लिए एक नई तकनीक के साथ जोड़ा जाएगा।
यह परियोजना पूरी होने के बाद हर जिले में चरम मौसम की घटनाओं से संबंधित सटीक पूर्वानुमान जारी किया जाएगा। खासकर अत्याधिक बारिश और बाढ़ की वजह से बढ़ने वाले नदी के स्तर को लेकर पहले ही चेतावनी जारी कर दी जाएगी। ऐसा 2018 की केरल बाढ़ जैसी तबाही के प्रभाव को कम करने के लिए किया जा रहा है, जहां बांधों के अनुचित प्रबंधन के साथ असामान्य रूप से तीव्र वर्षा के कारण लगभग 500 लोगों की मौत हुई थी और 31,000 करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान हुआ था।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष की स्थापना 2015 में की गई थी। यह योजना 31 मार्च 2020 को समाप्त हो रही है। उम्मीद है कि बजट 2020-21 में इस योजना को चालू रखने की घोषणा हो सकती है।
अब तक, जल, कृषि और पशुपालन, वानिकी पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता जैसे कमजोर क्षेत्रों को कवर करते हुए लगभग 847 करोड़ की कुल लागत पर 30 अनुकूलन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। भारत सरकार ने कुल लागत में से 437 करोड़ की राशि जारी की है।