विशेषज्ञों की माने तो केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने वाली योजनाओं पर खर्च करने के अलावा सिंचाई व्यवस्था ठीक करने और महिला किसानों की बेहतरी के लिए वर्ष 2020-21 के बजट में घोषणा कर सकती है।
ऐसी एक योजना प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना हो सकती है जिसे तत्कालीन कार्यकारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने 2019-20 के बजट में घोषणा कर लागू किया था। 2019 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यह घोषणा भारतीय जनता पार्टी के लिए मास्टरस्ट्रोक की तरह थी। सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के मुताबिक किसानों की वास्तविक आय वर्ष 2011 से 2015 के बीच महज 0.44 प्रतिशत बढ़ पाई है। यह निम्नतम बढ़त दर 2017 और 2018 में शून्य तक पहुंच गई है।
सरकार ने इसके बाद आय में सीधा फायदा देने के लिए 75,000 करोड़ रुपए की राशि के साथ पीएम किसान योजना शुरू की। इसके तहत किसानों को 6000 रुपए प्रति वर्ष की राशि तीन किस्तों में मिलने लगी। व्यापारिक मामलों के विश्लेषक देविंदर शर्मा ने डाउन टू अर्थ को कहा कि भारतीय किसानों की आय वर्ष 2000 से स्थिर है।
वे कहते हैं, "जहां तक कि सरकार ने किसानों को सीधा आय में लाभ पहुंचाने की कोशिश की है, यह कोशिश जमीनी स्तर और बदलाव लाने के लिए नाकाफी लगती है। सरकार को प्रत्येक किसान को 18000 रुपए प्रतिमाह देने को योजना के बारे में सोचना चाहिए।"
शर्मा की उम्मीदें इस बात को लेकर हैं कि पिछले 20 वर्ष से किसानों को उपज को सब्सिडी के भीतर रखा गया है, जिसके फलस्वरूप उन्हें बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है।
आर्गेनाईजेशन फ़ॉर इकोनॉमिक कॉरपोरेशन एंड डेवलपमेंट और इंडियन कॉउन्सिल ऑफ रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स रिलेशन्स के साझा अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2000-01 के बीच भारतीय किसानों को 45 लाख करोड़ रुपए के बराबर नुकसान झेलना पड़ा है। इसकी एकमात्र वजह हैं उन्हें उनके उत्पादों के लिए उचित मूल्य से वंचित रखना है।
दूसरे शब्दों में कहें तो किसान हर साल 2.65 लाख करोड़ रुपये की हानि सहता है, वह भी अक्सर कम कीमत मिलने की वजह से या फिर व्यापार के लिए लगी बाधाओं और खरीददारी के वादे को पूरा करने में असफल सरकारी नीतियों की वजह से।
शर्मा कहते हैं कि किसानों की आमदनी को दरकिनार करने की वजह से उन्हें संस्थानों और महाजनों के कर्ज पर निर्भर रहना पड़ता है जिससे आत्महत्या जैसी भयावह स्थिति से उन्हें दोचार होना पड़ता है।
अधूरे मन से काम करने की वजह से सरकार जमीनी स्तर पर कोई बड़ा परिवर्तन नहीं ला पाई है। यहां तक कि पीएम किसान योजना के तहत भी 50 फीसदी से अधिक किसान पूरी क़िस्त नहीं पा सके हैं। यहां कोई आश्चर्य नहीं कि किसानों की आत्महत्या नहीं रुक रही है।
वर्ष 2018 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 103,349 किसानों ने इस तरह आत्महत्या की है।
किसानों के कार्यकर्ता रमनदीप सिंह मान ने प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल के वादे की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही थी। हालांकि, दलवई कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि इस वादे को पूरा करने के लिए किसानों की असल आय को 2015-16 के मुकाबले 10.4 प्रतिशत तक बढ़ाने की जरूरत है।
मान कहते हैं, "सरकार के लिए तत्कालीन परिस्थिति में आय दोगुनी करना नामुमकिम है बशर्ते कि वो कुछ अद्भुत फैसले न ले।"
यहां कई और उम्मीदें है। देश की विकास दर 5 प्रतिशत के साथ बढ़ने की वजह 2019-20 में कृषि विकास दर की तेजी है। इंडियन कॉउन्सिल ऑफ रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स रिलेशन्स के अतिथि फेलो सिराज हुसैन का कहना है कि पूर्वी इलाकों में किसानों के उत्पादों को बेचने वाली कंपनियों को बढ़ावा देने की जरूरत है। वे यह भी उम्मीद करते हैं कि सरकार सिंचाई योजनाओं के किये अधिक खर्च करेगी क्योंकि 52 प्रतिशत से अधिक इलाके अभी भी वर्षा जल से ही सिंचित होते हैं।
मकाम नाम की किसान संगठन से जुड़ी कविता कुरुगंती बताती हैं कि सरकार को महिला किसानों और किराये पर खेती कर रहे किसानों के लिए नीतियां बनानी चाहिए। हाल ही में मकाम ने दो दिनी कार्यक्रम में किराए की जमीन पर खेती करने वाले किसान और महिला किसानों की स्थिति ओर विस्तार से बातचीत की।
एनसीआरबी के मुताबिक 1995 से 2018 के बीच 353,802 किसानों ने आत्महत्या की है जिसमें सड़ 303,597 (86%) पुरुष और 50188 महिलाएं शामिल हैं। करूगंती सवाल उठाती है कि सरकार की नीतियों में इन दोनों तरह के किसानों को स्थान क्यों नहीं दिया जाता है।