अर्थव्यवस्था

बिहार चुनाव: न मनरेगा, न गरीब कल्याण रोजगार योजना आई काम

बिहार के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है, जबकि पहले से लागू योजनाएं सिरे नहीं चढ़ पाई

Umesh Kumar Ray

31 साल के चंदन कुमार पटना शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर चौड़ा गांव में रहते हैं। वह रोज लोकल ट्रेन लेकर पटना शहर में आते थे। यहां उन्हें 400 रुपए दिहाड़ी पर काम मिल जाता था। कोविड-19 को लेकर मार्च के आखिर में लॉकडाउन लगा और ट्रेनें बंद हो गई, तब से वह घर पर बेरोजगार बैठे हुए हैं। 14 सदस्यों के परिवार में वह और उनके भाई कमाने वाले हैं, लेकिन दोनों को ही काम नहीं मिल रहा है।

पटना शहर के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी आधा दर्जन जगहें हैं, जहां रोजाना आसपास के इलाकों से चंदन जैसे लोग ट्रेनों से आते थे। इन जगहों को लेबर चौक कहा जाता है। ट्रेन बंद होने से इन लेबर चौकों में वीरानगी पसरी हुई है। 

जो अपने गृह राज्य में रह रहे थे, वो तो रोजगार नहीं मिलने से परेशान हैं ही, लेकिन लॉकडाउन के दौरान जो लोग अपने घरों को लौटे थे, उन्हें भी सरकार के तमाम आश्वासनों के बावजूद काम नहीं मिल पा रहा है।

20 साल के सूरज कुमार मई के मध्य में श्रमिक स्पेशल ट्रेन पकड़ कर गुजरात से छपरा में अपने गांव पहुंचे थे। गांव लौटे उन्हें करीब पांच महीने हो गये हैं, लेकिन कोई काम नहीं मिला है। क्वारंटीन सेंटर में रहने के दौरान कहा गया कि उन्हें काम दिया जाएगा। पूछा भी गया था कि गुजरात में क्या करते थे। लेकिन उसके बाद कोई पूछने नहीं आया। सूरज के पिता को भी काम नहीं मिल रहा है।

केंद्रीय श्रम रोजगार राज्यमंत्री संतोष कुमार गंगवार ने 14 सितंबर को लोकसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में बताया कि लॉकडाउन के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से कुल 15,00,612 मजदूर बिहार लौटे थे। हालांकि, अनधिकृत तौर पर बिहार लौटने वाले मजदूरों की संख्या एक करोड़ के आसपास बताई जा रही है।

जब मजदूर बिहार लौटे थे तो केंद्र और राज्य सरकार ने आश्वासन दिया था कि मजदूरों के लिए रोजगार की व्यवस्था की जायेगी। इसके लिए 20 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के तेलिहर गांव से गरीब कल्याण रोजगार अभियान (जीकेआरए) का भी आगाज किया था। इसमें बाहर से लौट मजदूरों को 125 दिनों का सुनिश्चित रोजगार देने की बात थी। बिहार के 32 जिलों को इस स्कीम में शामिल किया गया था। इसके तहत 25 प्रकार के कामों को शामिल किया गया था।

जीकेआरए के तहत बिहार को 17596.8 करोड़ रु.

इस अभियान के लिए केंद्र सरकार ने 50000 करोड़ रुपए आवंटित किये थे, जिनमें से 17596.8 करोड़ रुपए बिहार को मिले थे। ये अभियान 22 अक्टूबर को खत्म हो जाएगा, लेकिन 13 अक्टूबर तक राज्य सरकार 10006.1 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाई है। डाउन टू अर्थ  ने कई मजदूरों से बात की, लेकिन ज्यादातर लोगों का कहना था कि उन्हें इस अभियान की कोई जानकारी नहीं है।

जीकेआरए के अलावा सरकार ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) के तहत भी मजदूरों को काम देने का भरोसा दिलाया था। पीपल्स एक्शन फॉर एम्प्लायमेंट गारंटी नाम की संस्था ने बिहार में मनरेगा के प्रदर्शन पर एक अध्ययन किया। इसके मुताबिक, जून में 26.21 लाख घरों ने मनरेगा के तहत काम मांगा, लेकिन 21.49 लाख घरों को ही काम दिया गया। जुलाई में 13.40 लाख घरों ने काम की मांग की, लेकिन 10.44 लाख लोगों को ही काम मिल पाया। अगस्त महीने में सबसे ज्यादा 41.93 घरों ने काम मांगा, लेकिन 34.30 लाख घरों को ही काम मिल पाया। हर घर को 100 दिनों की जगह औसतन 31 दिन ही काम मिल पाया, जबकि प्रति व्यक्ति औसत 27 दिन ही रहा। महज 2136 घरों को ही 100 दिनों का काम मिल सका। 

कटिहार जिले के चितोरिया गांव निवासी अरुण यादव दिल्ली से मई में ही लौटे थे। उनकी क्वारंटीन अवधि खत्म हुई, तो मुखिया ने मनरेगा का काम दिलवाया। 30 दिन उन्होंने काम किया, तो बताया गया कि उन्हें 194 रुपए की जगह 50 रुपए प्रतिदिन मिलेंगे। वह कहते हैं, “मैंने मनरेगा के तहत किये एक महीने के काम की मजदूरी मांगी, लेकिन पैसा मुझे नहीं मिला। फिर मैंने गरीब कल्याण रोजगार अभियान के लिए आवेदन किया, लेकिन आवेदन के 50 दिन गुजर जाने के बाद भी कोई काम नहीं मिला है।

बेरोजगारी बना मुद्दा

सेंटर फॉर मानीटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में इस साल मई से अगस्त के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में 23.7% और शहरी क्षेत्रों में 23% बेरोजगारी रही। इनमें से सबसे अधिक (60.32%) 20 से 24 साल की उम्र के युवा हैं। 

पटना के अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं, “सरकार का डिलीवरी सिस्टम काफी कमजोर है, जिस कारण मनरेगा और पीएमजीकेआरए योजनाओं का मजदूरों को लाभ नहीं मिल पाया। मनरेगा में तो बिहार का प्रदर्शन पहले भी खराब रहा है और इस बार भी ऐसा ही हुआ।”

बाहर से लौटे इन मजदूरों को काम नहीं मिलने से उनमें राज्य सरकार के खिलाफ गुस्सा है। सूरज और चंदन ने कहा कि इस लॉकडाउन में उन्हें बहुत परेशानी हुई, लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। 

बेरोजगारी को देखते हुए ही राष्ट्रीय जनता दल ने सरकार बनने पर 10 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया, तो भाजपा ने भी अपने घोषणापत्र में 19 लाख लोगों को रोजगार देने की बात कही। दिवाकर का कहना है कि रोजगार इस चुनाव में बड़ा मुद्दा होने जा रहा है। उन्होंने कहा, “बाहर से जो लोग लौटे हैं, वे जागरूक मतदाता हैं। उन्हें रोजगार नहीं मिला है जिससे वे राज्य सरकार से नाराज हैं। इस नाराजगी का असर वोटिंग पर भी पड़ेगा।”