अर्थव्यवस्था

भारत में औसत मजदूर की साल भर की कमाई से ज्यादा चार घंटे में कमा लेता है एक सीईओ: ऑक्सफैम

Lalit Maurya

वैश्विक स्तर पर 2022 में जहां एक तरफ कर्मचारियों की तनख्वाह में 3.19 फीसदी की कटौती की गई वहीं दूसरी तरफ टॉप सीईओ के वेतन में नौ फीसदी की वृद्धि हुई है। जो कहीं न कहीं कॉरपोरेट जगत में मौजूद दोहरे मानदंडों को दर्शाता है।

भारत में भी स्थिति इससे अलग नहीं है ऑक्सफेम द्वारा जारी नई रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में एक औसत मजदूर साल भर में जितना कमाई करता है उससे ज्यादा तो किसी कंपनी का सीईओ 4 घंटे में कमा लेता है। यह जानकारी ऑक्सफेम द्वारा अंतराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।

ऑक्सफैम ने कॉरपोरेट जगत में टॉप पेड सीईओ और उनकी कर्मचारियों के सैलरी में हुई बढ़ोतरी को लेकर जो खुलासे किए हैं उनके मुताबिक 2022 में 50 देशों के करीब 100 करोड़ मजदूरों की आय में औसतन 56 हजार रुपए (685 डॉलर) की कटौती की गई। देखा जाए तो इससे उनकी वास्तविक मजदूरी में 61 लाख करोड़ रुपए (74,600 करोड़ डॉलर) का कुल नुकसान हुआ।

रिपोर्ट के मुताबिक यदि भारत में टॉप 150 सीईओ की बात करें तो उनको एक साल में औसतन 8.18 करोड़ रूपए सैलरी के रूप में दिए गए जोकि 2021 की तुलना में करीब दो फीसदी ज्यादा है। ऑक्सफेम के मुताबिक जहां एक तरफ मोटी कमाई करने वाले कॉरपोरेट मालिक लोगों को बता रहे हैं कि हमें वेतन कम करने की जरूरत है वहीं दूसरी तरफ वो अपने सीईओ शेयरधारकों को अच्छा-खासा भुगतान कर रहे हैं।

रिपोर्ट से पता चला है कि 2022 में शेयरधारकों को 127.54 लाख करोड़ रुपए (1.56 लाख करोड़ डॉलर) का रिकॉर्ड भुगतान किया गया, जो 2021 की तुलना में 10 फीसदी से ज्यादा है।

इस बारे में ऑक्सफैम इंटरनेशनल के अंतरिम कार्यकारी निदेशक अमिताभ बेहर का कहना है कि, "एक तरफ कॉर्पोरेट बॉस हमें वेतन कम करने की सलाह दे रहे हैं वहीं वो खुद अपने शेयरधारकों को बड़े पैमाने पर भुगतान कर रहे हैं।" उनके मुताबिक आज बहुत से लोग थोड़ी आय के लिए ज्यादा समय तक काम करने को मजबूर हैं। इसके बावजूद वो अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। देखा जाए तो इसने अमीर और गरीब के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है।

हर साल 4.6 लाख करोड़ घंटे बिना सैलरी के काम कर रही हैं महिलाएं

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं वो हैरान कर देने वाले हैं। पता चला है कि महिलाएं और बच्चियां हर साल 4.6 लाख करोड़ घंटे बिना सैलरी के काम कर रही हैं। वहीं यदि जिन्हें वेतन मिल भी रहा है, तो उन्हें काम के बदले कम वेतन दिया जाता है। ऐसे में कम तनख्वाह और घर का काम उन्हें नौकरी को छोड़ देने के लिए विवश कर देता है। इतना ही नहीं उन्हें भेदभाव, उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है।

पता चला है कि पिछले वर्ष ब्राजील में श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी में 6.9 फीसदी की कमी आई, जो इतनी है मानों किसी मजदूर को 15 दिन बिना मजदूरी के काम करना पड़े। इसी तरह अमेरिका में भी औसत श्रमिक की आय में 3.2 फीसदी की कमी आई जो करीब 6.7 दिन बिना मजदूरी के काम करने जितना है। देखा जाए तो कमजोर होते श्रमिक संगठनों ने अमीर और बाकी लोगों के बीच की खाई को और गहरा दिया है।

एक तरफ जहां मोटी कमाई करने वाले आला अधिकारियों की आय बढ़ रही थी वहीं विश्लेषण से पता चला है कि पूंजीगत लाभ पर जो कर हैं वो इस दौरान 18 फीसदी तक गिर गए थे। देखा जाए तो यह कर स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं को फण्ड करने में मदद  करते हैं। यहां तक की पांच में से एक देश में तो इस तरह के कर भी नहीं हैं।

यदि संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट “2022 फाइनेंसिंग फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट रिपोर्ट: ब्रिजिंग द फाइनेंस डिवाइड” को देखें तो दुनिया की 52 फीसदी आय पर आबादी का 10 फीसदी हिस्सा जो सबसे अमीर वर्ग है वो काबिज है।

वहीं 50 फीसदी सबसे कमजोर तबके की आबादी के पास वैश्विक आय का केवल 8 फीसदी हिस्सा है। रिपोर्ट के मुताबिक कई विकासशील देशों के लिए कर्ज के बढ़ते बोझ और उसके ब्याज ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। ऐसे में उन्हें न केवल इस महामारी से उबरने बल्कि साथ ही अपने विकास खर्च में भी जबरन कटौती करने के लिए मजबूर किया है।

वहीं प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि जहां मिडिल क्लास लोगों की संख्या में नौ करोड़ की कमी आई है वहीं गरीबी की रेखा से नीचे गुजर करने वालों की संख्या में 13.1 करोड़ का इजाफा हुआ है। जो दर्शाता है कि अमीर-गरीब के बीच की खाई भरने की जगह समय के साथ और गहराती जा रही है। वहीं महामारी के बाद स्थिति और खराब हुई है। 

एक डॉलर = 81.76 भारतीय रुपए