अर्थव्यवस्था

कोविड-19 के कारण लौटे 45 फीसदी प्रवासी उत्तराखंड में रुक सकते हैं: रावत

कोविड-19 और लॉकडाउन की वजह से उत्तराखंड लौटे प्रवासियों को राज्य में कैसे रोकेगी सरकार, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया-

Raju Sajwan

उत्तराखंड में अब तक की सभी राज्य सरकारें पलायन रोकने की बातें करती रही हैं, लेकिन यह पहला मौका है, जब कोरोनावायरस संक्रमण के चलते राज्य में 3.30 लाख से अधिक प्रवासी लौटे हैं। बस राज्य सरकार को इन्हें रोकने का काम करना है। राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस पर अपनी प्रतिबद्धता भी जताई है और राज्य में कुछ ठोस प्रयास किए भी जा रहे हैं, लेकिन अभी भी कई खामियां हैं। इन सब मुद्दों पर डाउन टू अर्थ संवाददाता राजू सजवान ने मुख्यमंत्री से बातचीत की। प्रस्तुत है, बातचीत के प्रमुख अंश:

पलायन उत्तराखंड की एक बड़ी समस्या है। कोविड-19 और लॉकडाउन के बाद अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी प्रवासी लौटे हैं। आपने उनसे राज्य में ही रुकने का आह्वान किया है, लेकिन उनके लिए कौन-कौन सी योजनाएं शुरू की गई हैं?

जब हमारी सरकार बनी थी, तो हमने पलायन को बड़ी चुनौती मानते हुए पहले विधानसभा सत्र में ही यह घोषणा की थी कि राज्य में ग्रामीण विकास और पलायन आयोग का गठन किया जाएगा, जो राज्य में पलायन के कारणों को लेकर अध्ययन करेगा और पलायन को कैसे रोका जाएगा, रोजगार के साधन कैसे बढ़ाए जाएंगे, इस विषय पर अपनी सिफारिशें सरकार को देगा। इस आयोग के अध्यक्ष मुख्यमंत्री रहेंगे और भारत सरकार में महानिदेशक (वन) रह चुके शरद सिंह नेगी को उपाध्यक्ष बनाया गया। आयोग व्यापक स्तर पर अध्ययन कर रहा है। अब तक पांच जिले ऐसे हैं, जहां एक-एक गांव का भी अध्ययन हो चुका है।

उत्तराखंड के लिए पलायन एक बड़ी चिंता केवल इसलिए नहीं है, क्योंकि यहां से गांव खाली हो रहे हैं, बल्कि यह चिंता इसलिए भी बड़ी है कि उत्तराखंड में देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं हैं और सामारिक दृष्टि से सीमाओं पर लोगों का रहना बहुत जरूरी है। नहीं तो, कारगिल जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। यही वजह है कि हमने पलायन आयोग को विस्तृत अध्ययन करने को कहा। आयोग न केवल गांवों से हुए पलायन के कारणों का अध्ययन कर रहा है, बल्कि यह भी जानकारी जुटा रहा है कि गांवों में अब तक क्या-क्या सुविधाएं दी जा चुकी हैं और लोग और किस तरह की सुविधाएं चाहते हैं। इसके अलावा सरकार ने मुख्यमंत्री सीमांत क्षेत्र विकास निधि बनाई है, जिसकी घोषणा इसी बजट में की गई है, ताकि जो लोग सीमांत क्षेत्र के गांवों में हैं, वे गांव में ही रोजगार खड़ा कर सकें।

इस तरह हम लगातार पलायन की चुनौती से निपटने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन अब कोविड-19 के प्रकोप के चलते राज्य में 3.30 लाख लोग उत्तराखंड अपने गांवों में लौटे हैं। इनमें बच्चे भी हैं, बड़े भी हैं और युवा भी हैं। इसे देखते हुए हमने तुरंत मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना तैयार कर लागू की। इसमें न केवल व्यापार, विनिर्माण के कार्य शामिल किए गए, बल्कि कृषि, बागवानी, पशुपालन जैसे रोजगार संबंधी कामों को शामिल किया गया है। इसके अलग बजट का प्रावधान किया गया। बल्कि यह भी प्रावधान किया गया कि जिला योजनाओं में 40 प्रतिशत बजट स्वरोजगार योजनाओं-परियोजनाओं पर खर्च किया जाएगा। इससे युवा आकर्षित हुए हैं और अपना काम करने के लिए आगे आ रहे हैं।

इसके अलावा पहाड़ में चीड़ बहुतायत मात्रा में है। एक अनुमान है कि उत्तराखंड के वनों में 26-27 फीसदी हिस्से में चीड़ है। इस चीड़ का इस्तेमाल करने के लिए हमने योजना बनाई है और उसकी पत्तियों से बिजली बनाने की योजना तैयार की गई है। चीड़ की पत्तियों से तारकोल, पैलेट्स बनाने की योजना है। ये पैलेट्स कोयले का विकल्प है। इसकी आग भी कोयले से अच्छी होती है और इसकी कीमत भी गैस के मुकाबले तीन गुणा कम है। इसका व्यावसायिक इस्तेमाल हो सकता है। यह धुआं रहित होता है। इसकी एक फैक्ट्री लगाई है। इसके अलावा चीड़ के रेगन पर आधारित एक फैक्ट्री लगाई गई है।

एक और योजना सौर स्वरोजगार योजना लॉन्च की गई है। इस योजना के तहत राज्य में 25-25 किलोवाट क्षमता वाले सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के लिए लोगों को आमंत्रित किया गया है। ये प्रोजेक्ट सब स्टेशनों के 100 मीटर के दायरे में लगाने की योजना है, ताकि सौर ऊर्जा प्लांट से आसानी से कम खर्च पर बिजली ग्रिड तक पहुंचाई जा सके। हमारा लक्ष्य है कि इस योजना से 10 हजार लोगों को रोजगार दिया जाए।

साथ ही, राज्य के पर्यटन स्थलों बाइक टैक्सी की बहुत संभावनाएं हैं। हमने 10 हजार लोगों को बाइक टैक्सी का लाइसेंस देने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए युवाओं को न केवल लोन दिलाया जाएगा, बल्कि लोन के ब्याज का भुगतान दो साल तक सरकार करेगी। युवाओं को होम स्टे योजना से जुड़ने का आह्वान किया गया है।

सरकार ने प्रवासियों को राज्य में ही रोकने के लिए तत्परता दिखाई। आपका क्या अनुमान है कि कितने प्रवासी रुकेंगे?

हमने एक सैंपल सर्वे कराया था, जिसमें सामने आया कि लगभग 45 प्रतिशत लोग वापस जाना चाहते हैं। उसके अलावा जो विद्यार्थी राज्य में आए हैं, वे भी वापस जाएंगे। लगभग 45 प्रतिशत लोग रुक सकते हैं।

डाउन टू अर्थ ने पौड़ी के कुछ गांवों का दौरा किया और देखने में आया कि आपकी रोजगार योजनाएं जमीन पर नहीं पहुंच पाई हैं। प्रवासी युवक स्थानीय कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं। कुछ शर्तें जैसे मार्जिन मनी, सरकारी गारंटर और जमीन के कागजात आदि के चलते अभी युवा समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए। क्या सरकार इस दिशा में काम कर रही है?

हमें भी इस तरह की सूचना मिली, इसलिए एक कमेटी बनाई गई, जो कोविड काल में बनी योजनाओं की न केवल समीक्षा करेगी, बल्कि निरीक्षण भी करेगी। इस कमेटी में पलायन आयोग के उपाध्यक्ष के अलावा हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के संरक्षक कुंवर और वरिष्ठ चार्टर्ड अकाउंटेंट आलोक भट्ट इसके सदस्य होंगे।

दरअसल अभी नई योजनाएं बनी हैं, युवकों को समझ में नहीं आ रही है। साथ ही, प्रवासियों का मन दोहरा है। वह तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें रुकना चाहिए या जाना चाहिए। लेकिन सरकार की कोशिश है कि उन्हें विश्वास दिलाया जाए और हम कामयाब होंगे। प्रवासी अपना मन स्थिर करेंगे और सरकार के साथ मिलकर राज्य में ही काम शुरू करेंगे।

डाउन टू अर्थ ने देखा कि कुछ युवक बेहद उत्साह से खेतीबाड़ी कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सरकार की ओर से सहयोग नहीं मिल रहा?

सरकार कोई भी काम करेगी, उसके लिए पहले नीति बनाएगी । नीतियां बन चुकी है। कई जगह अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। कई जगह युवक समूह बना कर मछली के तालाब बना रहे हैं और मछली पालन के साथ-साथ बकरी पालन या मुर्गी पालन कर रहे हैं। सरकार पॉली हाउस के लिए तीन लाख तक का ब्याज मुक्त ऋण दे रही है। समूह में खेती करने पर पांच लाख रुपए का ब्याज मुक्त ऋण दिया जा रहा है। हमारी कोशिश है कि जो किसान या प्रवासी खेती करना चाहता है, उसे किसी तरह की आर्थिक तंगी का सामना न करना पड़े।

उत्तराखंड में सीढ़ीदार खेत छोटे-छोटे हैं और दूर-दूर हैं। सालों से मांग की जा रही है कि राज्य में चकबंदी कानून लागू किया जाए?

चकबंदी को लेकर सबसे अच्छा एक्ट उत्तर प्रदेश का माना जाता है। हमने इसका अध्ययन कराया है, लेकिन हमारी दिक्कत यह है कि पहाड़ी क्षेत्र में गोल खाते की जमीन होती है। जमीन के एक खाते में कई-कई मालिक है। भाइयों में आपस में एक राय नहीं है, इसलिए इस काम में दिक्कत आ रही है, लेकिन हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द चकबंदी के विषय पर एक नीति बनाई जाए।

किसानों की दूसरी बड़ी दिक्कत जंगली जानवर है। बंदर औ सूअर खेत बर्बाद कर देते हैं। राज्य में बाघों की संख्या भी बढ़ रही है?

हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। जल्द ही पूरे राज्य भर में 5 से 7 हजार ऐसे लोगों को भर्ती किया जाएगा। जो लोगों को जागरूक करेंगे कि जंगली जानवरों से कैसे बचा जाए या उनके बीच में कैसे रहा जाए। एक बड़ा कार्यक्रम होगा।

कोविड-19 की इस विपदा में मनरेगा ने लोगों को एक बड़ी राहत प्रदान की है। राज्य में खेती को मनरेगा से जोड़ने की मांग है। क्या मनरेगा के विस्तार की दृषिट से काम किया गया?

मनरेगा हमारे राज्य में काफी कारगर रही है। कोविड-19 लॉकडाउन के बाद हमने गांव लौटे प्रवासियों को बड़ी तादात में मनरेगा का काम  दिया। अभी इसमें कृषि से जुड़े कई काम शामिल हैं, लेकिन अल्प अवधि के काम शामिल नहीं है। हम केंद्र से बात कर रहे हैं कि कुछ ऐसे कार्यों को भी शामिल किया जाए, जो कम अवधि के हों। उम्मीद है केंद्र सरकार मान जाएगी।

प्रवासी युवाओं की एक चिंता यह है कि वे अगर पहाड़ में अपना काम शुरू कर भी देंगे, लेकिन लोगों की क्रय शक्ति इतनी नहीं है कि उन्हें नहीं लगता कि उनका काम चल पड़ेगा। स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में सरकार क्या कर रही है?

उत्तराखंड के उत्पादों की देश भर में डिमांड है, लेकिन इसके लिए जरूरी बल्क में उत्पादन किया जाए। दिक्कत यह है कि किसान संगठित नहीं है। एक दूसरे साथ मिलकर उत्पादन करने की भावना का आभाव है। इसलिए हम सहकारिता के माध्यम से इनको एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। सहकारी संगठनों को फंडिंग की जा रही है, ताकि छोटे-छोटे किसानों के उत्पाद भी बाजार में आ सकें। इससे हर परिवार की आमदनी बढ़ेगी और उनकी क्रय शक्ति में वृद्धि होगी।

राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए पर्यटन बेहद अहम है, जो रोजगार का भी बड़ा साधन है। इसे और बढ़ाने के लिए सरकार क्या कर रही है?

अभी राज्य में छह माह का पर्यटन होता है। ठंड बढ़ने पर पर्यटन कम हो जाता है। हम चाहते हैं कि विदेशों की तर्ज पर विंटर टूरिज्म के साथ-साथ साहसिक पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जाए और पूरे 12 महीने उत्तराखंड में पर्यटन के लिए लोग आएं। इस दिशा में तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं। आने वाले कुछ ही सालों में सरकार का यह लक्ष्य पूरा हो जाएगा।