‘देसां म्हं देस हरयाणा, जित दूध दही का खाना’ वाले प्रदेश में भैंसों की संख्या घट गई है। यह खुलासा 20वीं पशुगणना के अंतरिम आंकड़ें से हुआ है। भैंसों की संख्या में 28.22 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2012 में प्रदेश में 60,85,312 भैंसे थी, जो अब कम होकर 43,68,023 हो गई है। सीधे तौर पर 17,17,289 कम हो गई है। भैंसों की घटती संख्या से पशुपालन विभाग चिंतित है और प्रदेश में भैंसों की संख्या बढ़ाने के लिए नई योजना शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। नियमानुसार हर पांच साल में पशुगणना की जाती है। वर्ष 2012 के बाद 2017 में पशुगणना होना था, लेकिन पशुगणना के लिए डिजिटल तरीके अपनाने का निर्णय लिए जाने के कारण पशुगणना करीब दो वर्ष की देरी से हुआ।
हरियाणा में रोहतक, जींद, हिसार, भिवानी, सोनीपत और फतेहाबाद जिले में सबसे ज्यादा भैंस पालन किया जाता है। अब इन्हीं जिलों में भैंस की संख्या तेजी से कमी आई है। भैंसों की घटती संख्या पर पशु वैज्ञानिक ने चिंता जाहिर की है। हिसार स्थित लाल लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवासा) के प्रिंसिपल एक्सटेंशनल स्पेशलिस्ट (पशु विज्ञान) डॉ. राजिंद्र सिंह हरियाणा में भैंसों की संख्या कम होने के कई वजह मानते है। भैंसों की संख्या में कमी को लेकर इन्होंने एक स्टडी भी की थी। जिसमें कई तथ्य सामने आए थे। राजिंद्र सिंह बताते है, भैंसों को खाने में कैल्सियम, फॉस्फोरस, मैग्निशियम, कोबाल्ट और जिंक भी बहुत जरूरी होता है, लेकिन भैंसों को अब जो चारा दिया जा रहा है, उसमें पशुओं के लिए सबसे जरूरी जिंक जैसे मिनरल्स नहीं मिल रहे हैं। पशुओं को मिलने वाले हरा चारा में भी जरूरी मिनरल्स नहीं है। खेतों में फसलों पर दिए जाने वाले फर्टिलाइजर की वजह से हरे चारे में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है, जबकि उसमें जिंक और फॉस्फोरस की मात्रा 50 फीसदी से कम हो गई है। जिंक नहीं मिलने से भैंसों की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है। इसका सीधा असर भैंसों की संख्या पर अब दिखने लगी है।
इसके अलावा भैंसों की संख्या कम होने की वजह क्रॉस ब्रीडिंग मुहिम भी है। अधिक दूध उत्पादन के लिए सरकार और किसान दोनों क्रॉस ब्रीडिंग वाली भैंस पालने लगे हैं। जिससे भूरी भैंसे (प्राकृतिक तरीके से जन्मी) पालने में रूचि कम हो गई है। आमतौर पर क्रॉस ब्रीडिंग से जन्मी मुर्राह भैंस औसतन 20-30 लीटर दूध देती है। जबकि भूरी भैंसे 3 से 7 लीटर दूध देती है। जिसकी वजह से लोग भूरी भैंसे छोड़कर मुर्राह भैंस पालने लगे है। दूध उत्पादन के नजरिये से एक मुर्राह भैंस सात देसी भूरी भैंसों के बराबर है। एक भैंस को खिलाने पर सालाना 75 हजार रुपये खर्च होता है। इसकी वजह से भी लोग कम भैंसों को पाल कर अधिक दूध हासिल कर रहे हैं। 2012 तक 58 फीसदी घरों में भैंस पालन किया जाता था, लेकिन नए आंकड़ों के मुताबिक अब केवल 37 प्रतिशत घरों में भैँस पालन हो रहा है।
पशु वैज्ञानिक डॉ. राजिंद्र सिंह कहते है, दूध उत्पादन के मामले में हरियाणा की मुर्राह भैंस की नस्ल पूरे देश में अव्वल है। इसकी वजह से देश के दूसरे राज्यों में भैंसों का निर्यात हो रहा है। प्रजनन दर कम होने और निर्यात अधिक होना भी एक बड़ी वजह है। इसके अलावा दूध नहीं देने वाली भैंसों को कसाई खाने में काटा जा रहा है। भैंसों की संख्या कम होने की एक वजह पशु वैज्ञानिक शहरीकरण भी मानते है।
लुवासा के पूर्व पशु वैज्ञानिक डॉ. ओपी महला का कहना है कि शहरीकरण के कारण पशुओं को चारा खिलाना बहुत महंगा हो गया है। चारागाह अब खत्म हो गए है या बहुत कम हो गए है। अब, युवाओं का रूझान पशुपालन में नहीं होता है। इसकी वजह से घरों में पशु पालने की परंपरा कम हो गई है। जिसका असर पशुगणना में दिख रहा है।
दूध उत्पादन में हुआ है इजाफा
हरियाणा में दूध उत्पादन तेजी से बढ़ा है। 2017-18 में यह 97.84 लाख टन था। 2018-19 में यह बढ़कर 107 लाख टन हो गया था।9.16 लाख टन दूध बढ़ने से रोजाना प्रति व्यक्ति उपलब्धता औसतन 1 किलो 87 ग्राम हो गई है। प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता में पंजाब के बाद हरियाणा का देश में दूसरा स्थान है। जबकि देश में यह औसतन 375 ग्राम है।