कुलदीप माली 19 वर्षीय के हैं और 12वीं में पढ़ रहे हैं, लेकिन इन दिनों उनके हाथ में एक रजिस्टर और पेन है। वह मनरेगा साइट पर काम कर रही महिलाओं के कामकाज का हिसाब-किताब करते हैं।
वह कहते हैं कि यह मेरे लिए पार्टटाइम जॉब है और ऊपर से गांव से बाहर भी नहीं जाना पड़ता। हर सुबह छह बजे से दोपहर एक बजे तक गांव की ही महिलाओं के साथ काम में जुटा रहता हूं और उनके सुखदुख को भी सुनता रहता हूं। हमारी कोशिश होती है कि हर मजदूर का लक्ष्य पूरा हो जाए, ताकि उसे राज्य सरकार की निर्धारित 220 रुपए की मजदूरी मिले। इस देखरेख के बदले माली को दिन के 260 रुपए मिलते हैं।
अकेले कुलदीप माली ही नहीं, मनरेगा योजना के तहत राजस्थान में बड़ी संख्या में युवा इस प्रकार के काम कर रहे हैं। इस संबंध में जब मनरेगा आयुक्त पीसी किशन से पूछा तो उन्होंने कहा, हमारी कोशिश होती है कि मनरेगा साइटों पर ऐसे युवा मजदूरों के बीच हों जो कि काफी सजग और ठीकठाक से लोगों के साथ संबंध रख सकें।
वह बताते हैं कि पढ़े लिखे लोग योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण प्राप्त कर मैट (मनरेगा साइट पर हिसाब-किताब रखने वाला) का कार्य कर रहे हैं। हालांकि वह इस बात से इंकार करते हैं कि लॉकडाउन के कारण युवा कहीं और काम नहीं मिलने के कारण मजबूर होकर यहां काम कर रहे हैं। यह परंपरा पिछले कई सालों से यहां चली आ रही है।
माली ने बताया कि मैं अकेला ही ऐसा युवा नहीं हूं कि यह काम कर रहा हूं। वह बताते हैं कि मेरी जानकारी में मेरे जिले में हम जैसे लगभग 20 से 25 प्रतिशत हैं। यह सही है कि लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। ऐसे में कई उच्च शिक्षा प्राप्त युवा भी कुछ भी काम करने को तैयार हैं। लेकिन मैं यह कहना चाहूंगा कि मनरेगा में काम करके हम कोई अपने को छोटा नहीं समझते। आखिर काम काम है, उसमें छोटा या बड़ा कुछ नहीं होता है।
अजमेर जिले के मनरेगा के प्रमुख अधिकारी गजेंद्र सिंह राठौर यह मानते हैं कि मनरेगा साइट पर एक युवा के होने से काम अधिक सुव्यवस्थित व ठीक से होता है। साथ ही उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि मनरेगा का काम युवाओं के बीच एक अवसर बन रहा है, भले ही धीरे-धीरे सही लेकिन निश्चित रूप से इससे अधिक से अधिक युवा जुड़ रहे हैं।
जिले के एक अन्य गांव धौली में एक युवा रामशरण मैट का काम पिछले तीन माह से कर रहे हैं। वह बताते हैं कि वह अभी बीए कर रहे हैं और जरूरी नहीं कि मेरी पढ़ाई पूरी होते ही काम मिल जाए। ऐसे में गांव में ही पढ़ने के दौरान ही यदि मनरेगा हम जैसे युवाओं को काम दे रहा है तो हम इसे पूरी शिद्दत से करने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि यहां काम करने का अपना रोमांच है। किस प्रकार का रोमांच पूछने पर वह बताते हैं, यहां काम कर रहे अधिकांश महिलाओं या पुरुषों को वे व्यक्तिगततौर पर जानते हैं और गांव में जो रिश्ता होता है उसी नाम से ही हम उन्हें यहां पुकारते हैं। ऐसे में हमें तो इस बात का अहसास ही नहीं होता कि हम कोई काम कर रहे हैं। बस लगता है कि हम तो घर में ही इधर-उधर टहल-कदमी कर रहे हैं।