20 अप्रैल से महात्मा गांधी राष्ट्रीय राेजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में काम शुरू हो चुके हैं। मनरेगा मजदूरों को 202 रुपए की दिहाड़ी दी जाएगी। इस समय उत्तराखंड में मनरेगा के तहत 6,890 कार्य शुरू किये गए हैं, जिसमें अभी 79,986 श्रमिक काम कर रहे हैं। इस वित्त वर्ष के लिए राज्य को दो करोड़ कार्य दिवस दिए गए हैं।
उत्तराखंड की 70 फीसदी आबादी गांवों में बसती है। यहां 5 हजार रुपये से कम अधिकतम आय वाले सदस्यों की संख्या सबसे अधिक 63.41 प्रतिशत है। ये आमदनी राष्ट्रीय औसत से लगभग 11 प्रतिशत कम है। रोजगार के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन के पीछे ये भी एक अहम वजह है। खेती-पशुपालन के साथ ही मनरेगा गांव के लोगों की आजीविका का एक बड़ा साधन है। लॉकडाउन में हुआ रिवर्स माइग्रेशन भी राज्य सरकार के सामने चुनौती है। अब वापस लौटे लोगों के रोजगार का बंदोबस्त करना होगा। इसीलिए राज्य ने केंद्र से मनरेगा के कार्यदिवस 100 से बढ़ाकर 150-200 दिन तक करने की मांग की है। ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कोरोना के कहर से संभाला जा सके।
ग्रामीण विकास सचिव मनीषा पंवार बताती हैं कि पहले भी लोगों को काम की ज्यादा जरूरत पड़ने पर मनरेगा के कार्यदिवस 100 से बढ़ाकर 150 किए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में कमजोर तबके की आमदनी मनरेगा पर बहुत हद तक निर्भर करती है। मनरेगा में काम के दिन बढ़ेंगे तो इन्हें फायदा मिलेगा। रिवर्स माइग्रेशन करने वालों को भी इस समय रोजगार की जरूरत होगी।
पलायन आयोग अपनी रिपोर्ट में कह चुका है कि रिवर्स माइग्रेशन करके आए लोगों की आय या तो शून्य हो गई है या काफी कम हो गई है। इससे इनके परिवारों की आमदनी भी घट गई है। जिससे पर्वतीय जिलों की जीडीपी भी प्रभावित होने का अनुमान है।
पौड़ी के मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु खुराना बताते हैं कि मनरेगा में पूरे परिवार को सालाना सौ दिन का काम मिलता है। कई बार वित्त वर्ष खत्म होने से पहले ही परिवार के सौ दिन पूरे जो जाते हैं जबकि वे काम करना चाहते हैं। एक वित्त वर्ष में मनरेगा के तहत कार्य भी तय लक्ष्य से अधिक हो जाते हैं। यानी मनरेगा के तहत कराये जाने वाले काम भी बढ़ाए जा सकते हैं और मनरेगा में कार्य दिवस बढ़ने पर परिवार की आजीविका बेहतर होगी।
मनरेगा में काम का विस्तार भी किया गया है। हिमांशु बताते हैं कि इसमें जल संरक्षण से जुड़े कार्य कराए जा रहे हैं। राज्य की बंजर ज़मीन को खेती के लिए तैयार करने से जैसे काम शामिल किए गए हैं। हालांकि कृषि मंत्री सुबोध उनियाल खेती से जुड़े कार्यों को मनरेगा में शामिल करने का मुद्दा उठा चुके हैं।
मनरेगा की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में मनरेगा के 11.2 लाख जॉब कार्ड जारी किये जा चुके हैं। 18.37 लाख कामगार हैं। राज्य में इस समय 7.07 लाख जॉब कार्ड एक्टिव हैं। जबकि 9.92 लाख कामगार एक्टिव हैं। इनमें 17.17 लाख अनुसूचित जाति और 3.96 लाख अनुसूचित जनजाति के कामगार हैं।
मनरेगा में महिला कामगार बड़ी संख्या में हैं। पिछले वित्त वर्ष महिला कामगार 56.54 प्रतिशत रहीं। वर्ष 2019-20 में मनरेगा में 5.04 लाख परिवारों के 6.61 लाख लोगों ने काम किया। मात्र 21,910 परिवार को 100 दिन काम मिला। हर परिवार को औसतन 40.9 दिन काम मिला। वर्ष 2019-20 में राज्य की 234 ग्राम पंचायतें ऐसी थीं जिन्हें मनरेगा में कोई काम नहीं मिला। वर्ष 2018-19 में 201 ग्राम पंचायतों को कोई कार्य नहीं मिला।
ये आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा समय में मनरेगा में सभी परिवारों को सौ दिन का काम भी पूरा नहीं मिलता है। इसका मेहनताना बढ़ाने के बावजूद बाज़ार दर से बेहद कम है। उत्तराखंड में इस वित्त वर्ष में ये 182 रुपये से बढ़कर 202 रुपये हुआ है। गांवों से शहरों की ओर पलायन के लिए रोजगार एक बड़ी वजह है। इस वित्त वर्ष में केंद्र सरकार ने मनरेगा के बजट में पिछले वर्ष की तुलना में 9,500 करोड़ रुपये की कटौती करते हुए 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। जबकि ग्रामीण भारत को अभी मनरेगी जैसी योजना की जरूरत है।