नए साल की शुरुआती सप्ताह में नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत अभी गरीबी को दूर करने का लक्ष्य हासिल करने में काफी दूर है। भारत आखिर गरीब क्यों है, डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, गरीबी दूर करने के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं 22 राज्य । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, नई पीढ़ी को धर्म-जाति के साथ उत्तराधिकार में मिल रही है गरीबी । पढ़ें, तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बीच रहने वाले ही गरीब । चौथी कड़ी में आपने पढ़ा घोर गरीबी से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं लोग । पांचवी कड़ी में पढ़ें वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक बैठक शुरू होने से पहले ऑक्सफैम द्वारा भारत के संदर्भ में जारी रिपोर्ट में भारत की गरीबी पर क्या कहा गया है? पढ़ें, छठी कड़ी में आपने पढ़ा, राष्ट्रीय औसत आमदनी तक पहुंचने में गरीबों की 7 पुश्तें खप जाएंगी । इन रिपोर्ट्स के बाद कुछ गरीब जिलों की जमीनी पड़ताल-
66 साल के किसान हाकीम अली गंभीर अर्थराइटिस की बीमारी की वजह से सीधे खड़े नहीं हो पाते है। गाल ब्लैडर और किडनी की भी समस्या है। शरीर में इतना दर्द रहता है कि मरने की दुआ करते है, क्योंकि आमदनी इतनी नहीं है कि इलाज करा सकें। पिछले साल सितंबर में बीमारी से जूझते हुए उनकी पत्नी का देहांत हो चुका है। अब एक बहू बीते छह महीने से बीमार है, लेकिन पैसे नहीं होने के कारण इलाज नहीं हो पा रहा है। सरकारी अस्पताल में दिखाकर सेहतमंद होने की दुआ करते है। 37 सदस्यों वाले हाकीम अली के परिवार में कमाने वाले छह बेटे और दो पोते हैं, सभी को मिलाकर भी महीने की कुल आमदनी 52 हजार रुपए से अधिक नहीं होती है। इस हिसाब से प्रति व्यक्ति आय करीब 46 रुपए है। यह हकीकत है, नीति आयोग द्वारा पिछड़े जिले की सूची में शामिल नूंह (मेवात) के तावड़ू खंड के गांव सबरस के रहने वाले किसान की। जिन्होंने खेती छोड़कर बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए मजदूरी शुरू की थी, लेकिन अब उन्हीं बच्चों को विरासत में गरीबी मिली है। जिससे निकलने की जद्दोजहद अब भी जारी है।
मेवात क्षेत्र के इस गांव में करीब 400 परिवार है। खेती से फायदा न होने के कारण 85 फीसदी किसान खेती छोड़कर कोई ड्राइवर का काम कर रहा है तो कोई उस खेत की जमीन पर बने वेयर हाउस में ही चौकीदारी करने को मजबूर है। लगभग ऐसे ही हालात पूरे मेवात क्षेत्र का है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस गांव में 66 लोग खेती करते हैं, लेकिन ये किसान भी खेती से मुनाफे की आस छोड़ चुके हैं।
चार भाइयों में सबसे छोटे हाकीम अली बताते हैं कि 2006 तक उनके पास दो एकड़ खेती की जमीन थी। साल भर में बाजरा, गेंहू और दाल की खेती कर बमुश्किल 50 से 55 हजार रुपए की आमदनी होती थी, जबकि इसमें लागत ही 13-15 हजार रुपए थी। ऐसे में घर चलाना मुश्किल होता था। खेती से मुनाफा नहीं होने के कारण दिसंबर 2006 में जमीन बेचकर मजदूरी शुरू की, जिससे परिवार का पोषण हो सके।
बकौल हाकीम, उस समय बाजरे को बोने में करीब 2500 रुपए प्रति एकड़ का खर्च होता था, जबकि पैदावार 6-7 कुंतल प्रति एकड़ होता था। 900 रुपए प्रति कुंतल बिकता था, जबकि गेहूं बोने में प्रति एकड़ चार हजार रुपए खर्च होता था। जी तोड़ मेहनत के बाद भी प्रति एकड़ 10 से 12 कुंतल प्रति एकड़ पैदावार हो पाती थी। उस समय प्रति कुंतल 1000 से 1200 रुपए मिलते थे। लगातार पानी की दिक्कत की वजह से फसलों का उत्पादन सही नहीं हो पाता था, जिसकी वजह से एक दिन खेती छोड़ने का निर्णय लिया और फिर दिल्ली में पहले दिहाड़ी मजदूरी शुरू की, फिर गली-गली फेरी किया। खेती से इतनी आमदनी नहीं हुई कि बेटों को सही से पढ़ा सके।
वेयरहाउस में हेल्पेर का काम करने वाले हाकिम के छोटे बेटे वसीम बताते हैं कि पढ़ाई लिखाई नहीं होने के कारण हेल्पर का काम भी बहुत मुश्किल से मिला है। हेल्पर से पहले दिहाड़ी मजदूरी करते थे, लेकिन नोटबंदी के बाद जब ठेकेदार ने काम नहीं दिया तो हेल्पर का काम शुरू किया। 12 घंटे की ड्यूटी के एवज में 7600 रुपए मिलता है। वैसे में चार बच्चों को पालना मुश्किल होता है, बेहतर तालीम की बात तो सोचना भी बेमानी है। अच्छी तालीम नहीं होने की वजह से उनके बच्चों को भी गरीबी का सामना करना पड़ेगा।
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वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा देश के पिछड़े जिलों की सूची में मेवात अव्वल था। देश की राजधानी से करीब 70 किलोमीटर दूर मेवात की स्थिति ग्राउंड लेवल पर अब भी बहुत खराब है। हरियाणा के मेवात क्षेत्र का विकास हो, इसके लिए यहां के लोगों ने लंबे समय तक आंदोलन किया था। अप्रैल 2005 में गुड़गांव (अब गुरुग्राम) से अलग होकर नया जिला मेवात बना। लोगों को उम्मीद थी कि नया जिला बनने के लिए विकास की गंगोत्री बहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 13 वर्ष बाद जब नीति आयोग ने पिछड़े जिलों की सूची बनाई तो 443 गांवों और 5 छोटे शहरों वाले मेवात पिछड़ेपन में अव्वल रहा। 2011 जनगणना के मुताबिक 79 फीसदी मुस्लिम है। 88.59 फीसदी आबादी गांवों में बसती है। शेष 11.59 फीसदी शहरों में रहती है। प्रदेश का सबसे कम साक्षरता दर (56.10 फीसदी) भी इसी जिले में है।
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