विकास

क्यों खोखले साबित हो रहे हैं प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के कॉर्पोरेट दिग्गजों के वादे

Lalit Maurya

वैश्विक स्तर पर बढ़ता प्लास्टिक अब एक बड़ी समस्या बन चुका है। ऐसे में दुनिया की जानी मानी कंपनियों और उद्योग जगत पर भी इसके उपयोग को कम करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। देखा जाए तो जनता की बढ़ती उम्मीदों और कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व के चलते इन कंपनियों ने भी प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के वादे किए हैं, लेकिन इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या कम होने की जगह बढ़ती जा रही है।

इस बारे में जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित एक नई रिसर्च से पता चला है कि प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए बड़ी कंपनियों ने जो वादे कि हैं वो काम नहीं कर रहे हैं। देखा जाए तो यह कंपनियां अपने वादों को पूरा करने के लिए नए प्लास्टिक उत्पादन में कमी के बजाय ज्यादातर प्लास्टिक रीसाइक्लिंग पर ध्यान दे रही हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या प्लास्टिक का बढ़ता उत्पादन है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया की 973 कंपनियों की रिपोर्ट और उनके बारे में मौजूद वैज्ञानिक जानकारियों का विश्लेषण किया है। इन कंपनियों में  'फॉर्च्यून 500' कंपनियों की लिस्ट में शामिल शीर्ष 300 कंपनियां जैसे वालमार्ट, एप्पल, यूनिलीवर, डैल, फोर्ड मोटर्स, एक्सन मोबिल आदि भी शामिल हैं।

पता चला है कि इनमें से करीब 72 फीसदी कंपनियों ने किसी न किस रूप में प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने पर अपनी प्रतिबद्धता जताई थी। लेकिन इसके बावजूद ऐसा क्यों है कि प्लास्टिक प्रदूषण घटने की जगह दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

इस बारे में ड्यूक यूनिवर्सिटी के मरीन लेबोरेटरी और इस रिसर्च से जुड़ी शोधकर्ता जोई टेलर डायना और उनके सहयोगियों का कहना है कि, अधिकांश प्रतिबद्धताएं प्लास्टिक रीसाइक्लिंग पर जोर देती हैं और आमतौर पर सामान्य प्लास्टिक को लक्षित करती हैं।" उनका कहना है कि यदि हम प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को जड़ से खत्म करना चाहते हैं तो यह उसका महत्वपूर्ण, लेकिन केवल आंशिक समाधान है।

रिसर्च से पता चला है कि कंपनियां अपने उपभोग और उत्पादन पैटर्न में बदलाव लाने पर बहुत ज्यादा ध्यान दे रही हैं। इसके लिए अक्सर वे अपने उत्पादों में रीसायकल सामग्री के उपयोग को बढ़ा रही हैं। साथ ही उसकी पैकेजिंग के लिए उपयोग होने वाली प्लास्टिक के वजन को मामूली रूप से कम करने जैसे उपायों को अपना रही हैं।

इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि कोका-कोला और वॉलमार्ट जैसी कई कंपनियां पैकेजिंग के लिए हल्के और छोटे प्लास्टिक उत्पादों (जैसे, बोतलें और बैग) का उत्पादन कर रही हैं।

लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि 'लाइटवेटिंग' इस समस्या का हल नहीं है क्योंकि कंपनियां इस बचत को दोबारा उन बाजार में दोबारा निवेश कर सकती हैं, जिनमें नए प्लास्टिक उत्पाद शामिल हैं। साथ ही जो कुल उत्पादित प्लास्टिक के वजन को बढ़ाते हैं। चूंकि प्लास्टिक उत्पादों की संख्या हर साल बढ़ रही है। ऐसे में इस प्रैक्टिस से प्लास्टिक उत्पादन में शुद्ध कमी नहीं हो रही है।

दुनिया भर के लिए सिरदर्द बन चुका है बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण

इसमें कोई शक नहीं की प्लास्टिक ने हमारी कई तरीकों से मदद की है। एक बार प्रयोग होने वाला प्लास्टिक एक सस्ता विकल्प है यही वजह है कि इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। दुनिया भर में चाहे प्लास्टिक बैग या बोतल की बात हो या चेहरे पर लगाने वाले फेस मास्क की उन सभी में सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है।

यही वजह है कि आज धरती के हर कोने में जहां देखिए वहां प्लास्टिक की मौजूदगी के निशान मिल ही जाएंगें। एक तरफ जहां हमारे लैंडफिल इस कचरे से भरते जा रहे हैं वहीं समुद्रों और उसके तटों पर जमा होता प्लास्टिक अपने आप में एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। जो अन्य जीवों के साथ-साथ इंसानों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बनता जा रहा है। इतना ही नहीं यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ जलवायु में आते बदलावों के लिए भी जिम्मेवार है।

पर इस प्लास्टिक के साथ समस्याएं भी कम नहीं हैं, एक बार उपयोग होने के बाद इसे फेंक दिया जाता है। आज जिस तेजी से इस प्लास्टिक के कारण उत्पन्न हुआ कचरा बढ़ता जा रहा है, वो अपने आप में एक बड़ी समस्या है। जिसने न केवल धरती बल्कि समुद्रों को भी अपने आगोश में ले लिया है। जिसके कारण जैवविविधता और पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है।

यदि वैश्विक आंकड़ों पर गौर करें तो 1950 से 2017 के बीच प्लास्टिक उत्पादन 174 गुना बढ़ गया है। वहीं इसके 2040 तक फिर से दोगुना हो जाने की आशंका है। अनुमान है कि 2015 तक पैदा हुआ करीब 79 फीसदी प्लास्टिक कचरे को ऐसे ही लैंडफिल या प्राकृतिक वातावरण में फेंक दिया गया था। वहीं 12 फीसदी की जला दिया गया जबकि केवल 9 फीसदी को ही रीसायकल किया गया था।

वहीं आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट “ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक: पालिसी सिनेरियोज टू 2060” के हवाले से पता चला है कि 2060 तक हर साल पैदा होने वाला प्लास्टिक कचरा करीब तीन गुना बढ़ जाएगा।

अनुमान है कि 2019 में जहां वैश्विक स्तर पर करीब 35.3 करोड़ टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा हुआ था वो अगले 38 वर्षों में बढ़कर 101.4 करोड़ टन से ज्यादा हो जाएगा। ऐसे में यह समस्या किस कदर बढ़ जाएगी इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2019 में जितनी प्लास्टिक का उत्पादन किया था, यदि उसकी समाज और पर्यावरण पर पड़ने वाली लागत को देखें तो वो करीब 271 लाख करोड़ रुपए (3.7 लाख करोड़ डॉलर) से ज्यादा आंकी गई है, जोकि भारत के जीडीपी से भी ज्यादा है। ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए प्लास्टिक कचरे के उचित प्रबंधन के साथ-साथ, इसके बढ़ते  उत्पादन पर भी लगाम लगाना जरूरी है।