विकास

राजस्थान में लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में जल संपत्तियों का निर्माण अधिक

मनरेगा के तहत सबसे अधिक जल संपत्तियों का निर्माण हो रहा है, इसके दीर्घकालिक परिणाम देखने को मिलेंगे

Anil Ashwani Sharma

राजस्थान में लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के तहत किए गए कामों में जल संपत्तियों का निर्माण या रखरखाव अधिक संख्या में हुआ है। इस संबंध में आणद (गुजरात) स्थित इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (आईडब्ल्यूएमआई) के शोधकर्ता शिल्प वर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया, “यह सौ फीसदी सही है कि मनरेगा के तहत दो तिहाई जल संपत्तियों का निर्माण हुआ है। स्थानीय स्तर पर इससे जल सुरक्षा में सुधार करने और इन संपत्तियों के योगदान को झुठलाया नहीं जा सकता है।” 

अक्सर एक सवाल पूछा जाता है कि मनरेगा के तहत गांवों में लगाए गए पौधों या अन्य इस प्रकार की गतिविधियों से कितना ग्रामीणों को व गांव को लाभ पहुंचता होगा। इस संबंध में मनरेगा की पूर्व आयुक्त ए.करुणा कहती हैं कि ये पौधे या वृक्ष एक दिन में तैयार नहीं हो जाते हैं। इन्हें तैयार होने में वक्त लगता है। और जब तैयार हो जाते हैं तो तब इनकी कीमत का अंदाजा आप और हम नहीं लगा सकते हैं। कहने का आशय है कि वे बहुत महंगे वृक्ष बन चुके होते हैं। यही वह संपत्ति है जिसके बारे में अक्सर लोगों का कहना होता है कि पौधारोपड़ से कुछ नहीं होता, लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है।  

आज राजस्थान में मनरेगा कार्यक्रम में फिलहाल पैसा होने की वजह से सारे रोजगार सृजित करने के रिकॉर्ड तोड़े जा रहे हैं l पिछले सालों में राजस्थान में अधिकतम 32 लाख मजदूरों की संख्या रही हैl यह अब बढ़कर 52 लाख से अधिक पहुंच गई हैl उत्तर प्रदेश में भी 50 लाख से ज्यादा मजदूर  मनरेगा के तहत रोजगार मांग रहे हैंl

पूरे भारत में भी इसी प्रकार मजदूरों कि संख्या 3.19 करोड़ से संख्या बढ़कर 4.89 करोड़ पहुंच चुकी है। जिन ग्रामीणों ने सालों पहले रोजगार कि तलाश में गांव और घर छोड़ा था, उन्हें अब उसी गांव में बेरोजगारी के दौर में क्या रोजगार मिलने के बारे में वे सोच पाए थे। लेकिन हकीकत में आज ग्रामीण भारत में यह मनरेगा के तेहत ही संभव हो रहा है l 

यह अलग बात है कि इस कानूनी हक को वर्त्तमान प्रधान मंत्री सहित, कई बड़े अर्थ शास्त्रियों ने एक विफलता का प्रतीक करार दिया हो, लेकिन आज मनरेगा ग्रामीण भारत के लिए एक जीवन रेखा बन चुकी हैl 

इस संबंध में राजस्थान के मजदूर-किसान चेतना संगठन के संस्थापक सदस्य निखिल डे कहते हैं, आज सब मानते हैं कि, मनरेगा लोगों की जरुरत है l कोरोना महामारी ने मनरेगा की अहमियत को पुनः समझाया है l बड़ी संख्यां में लोग मनरेगा में जा रहे हैl  शहरों में मजदूरों को समझ में आ गया है कि रोज-रोज खाने के पैकेट का इंतजार करना और उसके भरोसे रहना ज्यादा लम्बा नहीं चल सकता l इसी के चलते, सारी तकलीफों को झेलते हुए, जिस मनरेगा को दूर से देखते थे, अब उस काम को करने के लिए वे खुद जाने लगे हैं। यह प्रवासी श्रमिकों की मानसिकता लॉकडाउन के बाद की है। शायद यही कारण है कि अब तक राज्य में आए दो लाख 33 प्रवासियों में से केवल अब तक दस प्रतिशत ही वापस गए हैं।