हिमालयी राज्य उत्तराखंड का गठन पर्वतीय अंचल में रह रहे लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने के मकसद से हुआ था। राज्य गठन के 18 वर्ष के सफर में उत्तराखंड अपने युवावस्था में प्रवेश कर चुका है। क्या इन अठारह वर्षों में राज्य सही दिशा में आगे बढ़ा है? इसका जवाब बहुत हद तक राज्य की पहली मानव विकास रिपोर्ट से पता चल जाता है।
इस वर्ष 21 जनवरी को राज्य के वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने राज्य की पहली मानव विकास रिपोर्ट पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। यह समझने के लिए कि सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किस दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।
क्या कहती है राज्य की पहली मानव विकास रिपोर्ट
ये रिपोर्ट राज्य के तेरह जिलों के शहरी और ग्रामीण जिलों में सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई है। रिपोर्ट के प्रारम्भिक आंकलन के अनुसार मानव विकास सूचकांक इस तरह हैं-
जिले |
संपूर्ण |
श्रेणी |
देहरादून |
0.765 |
1. |
हरिद्वार |
0.733 |
2. |
उधमसिंहनगर |
0.717 |
3. |
चमोली |
0.691 |
4. |
पौड़ी गढ़वाल |
0.678 |
5. |
पिथौरागढ़ |
0.675 |
6. |
नैनीताल |
0.674 |
7. |
बागेश्वर |
0.662 |
8. |
अल्मोड़ा |
0.655 |
9. |
उत्तरकाशी |
0.630 |
10. |
रुद्रप्रयाग |
0.626 |
11. |
चंपावत |
0.620 |
12. |
टिहरी गढ़वाल |
0.611 |
13. |
उत्तराखंड |
0.718 |
|
ये रिपोर्ट मानव विकास के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर से जुड़े सूचकांकों के आधार पर तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, मानव विकास में देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। जबकि रूद्रप्रयाग, चम्पावत और टिहरी गढवाल क्रमश: 11वें, 12वें और 13वें स्थान पर रहे। देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर की अच्छी रैंकिंग की मुख्य वजह यहां की उच्च प्रति व्यक्ति आय रही है।
लैंगिक विकास सूचकांक यानी जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स में उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग और बागेश्वर क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। जबकि ऊधमसिंहनगर, देहरादून और हरिद्वार क्रमश: 11वें, 12वें और 13वें स्थान पर रहे। यानी अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले और राज्य के सबसे विकसित जिले लैंगिक भेदभाव के मामले में सबसे पीछे हैं। जबकि पर्वतीय जिलों की स्थिति यहां बेहतर है।
बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) शिक्षा, स्वास्थ्य तथा जीवन के स्तर के लिहाज से एमपीआई तैयार किया गया है। इसके आकलन के लिए जीवन स्तर,सम्पत्ति, आवास, घरेलू ईधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, संस्थागत प्रसव, शिक्षा, विद्यालयी उपस्थिति और विद्यालयी उपलब्धता जैसे मानक तय किए गए। एमपीआई में चमोली, चम्पावत और पिथौरागढ़ पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। जबकि हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और देहरादून 11वें, 12वें और 13वें स्थान पर आंके गए। राज्य के सीमांत पर्वतीय जिले चमोली, चंपावत और पिथौरागढ़ तक वह विकास नहीं पहुंच सका, जिस अकांक्षा से राज्य का गठन हुआ था।
रिपोर्ट से मिलेगी नई नीतियों की रोशनी?
इस रिपोर्ट पर वित्त मंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि इस रिपोर्ट से राज्य सरकार को नीति निर्माण में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट को एचडीआर विजन 2030 के साथ लिंक करते हुए अपेक्षित परिणाम लाने के लिए नीति बनानी आवश्यक है। इसके लिए सभी विभाग को उनके द्वारा मांगे जाने वाले बजट की तुलना में आउटकम बजट की समीक्षा की जाएगी। साथ ही इस पर नजर भी रखी जाएगी ताकि सभी विभागों को उपलब्ध कराए जा रहे बजट का प्रभावी इस्तेमाल हो सके। वित्त मंत्री ने कहा कि चिकित्सा, स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रमुख इंडीकेटर जैसे संस्थागत प्रसव, टीकाकरण, शिशु मृत्यु दर, माध्यमिक शिक्षा में नामंकन की स्थिति में सुधार लाने के लिए मिशन मोड में कार्य करने के निर्देश दिए गए हैं।
क्यों पिछड़ गए पर्वतीय जिले
देहरादून में पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के संस्थापक और निदेशक रवि चोपड़ा कहते हैं कि उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड पहाड़ी राज्य तो बना लेकिन विकास की जो नीतियां यहां अपनाई गईं, वो वही नीति है जो पूरे देश में चलती है। इसका कोई लिहाज नहीं किया गया कि ये पहाड़ी राज्य है और इसमें अलग तरह की विकास नीति होनी चाहिए। उनका कहना है कि मैदानी क्षेत्रों में बाकी देश के साथ सड़कें, रेल, हवाई यातायात का लिंक है लेकिन पहाड़ी जिलों से नहीं। इसके साथ ही राज्य में निजी या सरकारी जितना भी निवेश हुआ है वो मैदानी क्षेत्रों में ही हुआ है। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था अब भी कृषि और पशुपालन पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र में कोई बड़ा या उल्लेखनीय निवेश नहीं हुआ। चारधाम परियोजना के नाम पर सड़कें बन रही हैं वो सीमित क्षेत्र को ही फायदा पहुंचाएंगी। बाकी राज्य की स्थिति जस की तस है।
उत्तराखंड सरकार राज्य के विकास के लिए अब भी बंद पड़ी जल-विद्युत परियोजनाओं के ताले खोलने में लगी हुई है। रवि चोपड़ा कहते हैं कि टिहरी में देश का सबसे बड़ा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट है। इसके साथ ही हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए सबसे अधिक पानी के स्रोत उत्तरकाशी में हैं। लेकिन विकास के मानकों के लिहाज से ये दोनों जिले राज्य में निचले पायदान पर खड़े हैं। उनका सवाल है कि यदि जल विद्युत परियोजनाओं से विकास होता तो ये जिले पिछड़े क्यों हैं?
पर्वतीय जिलों में विकास की प्रबल संभावनाएं पर्यटन क्षेत्र से जुड़ी हैं। देश-दुनिया से लोग यहां के जंगल, किलकिलाती नदियां, जानवर, पंछी और प्राकृतिक सौंदर्य देखने आते हैं। रवि चोपड़ा कहते हैं कि हमने अपने जंगल और नदियों की देख-रेख नहीं की। सरकार का ध्यान सिर्फ चारधाम यात्रा पर है। जबकि जंगल और नदियों के ज़रिये पूरे राज्य में पर्यटन का फायदा पहुंचता।
उत्तराखंड पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के विकास मॉडल को अपनाकर भी नीतियां बना सकता है। पीएसआई के निदेशक कहते हैं कि अलग राज्य बनने के बाद से हिमाचल प्रदेश सरकार ने कोशिश की कि हर परिवार से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी मिले। इसके साथ ही सेब के उत्पादन और स्थानीय खेती को बढ़ावा दिया। ताकि लोग जहां बसे हैं, वहीं रहें। हिमाचल प्रदेश में आज भी सबसे कम शहरीकरण हुआ है। जबकि उत्तराखंड में हजारों हेक्टेयर खेत बंजर हो रहे हैं। लोग अपने घर-खेत छोड़ पलायन कर रहे हैं। रवि चोपड़ा कहते हैं कि पर्वतीय जिलों में बसे लोग पूरी तरह से दहशत में हैं। वे सोचते हैं कि यहां जीवन नहीं चल सकता। इसलिए वे पलायन के लिए मजबूर हैं। राज्य की नीतियां भी पलायन को बढ़ावा ही दे रही हैं।
उत्तराखंड की मानव विकास रिपोर्ट यही बताती है कि हिमालयी राज्य के लिए विकास का मॉडल वो नहीं हो सकता जो बाकी देश के लिए होता है। अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में जो भी विकास हुआ, निवेश हुआ, उद्योग धंधे आए वे सिर्फ मैदानी जिलों के हिस्से में आए। अब तक की सभी राज्य सरकारों ने उत्तराखंड के माउंटेन कैरेक्टर को नजरअंदाज किया और लोगों की मुश्किलें बढ़ाई हैं।