विकास

भारत में हर साल तूफान से 414 जिंदगियों को बची रही हैं उष्णकटिबंधीय आद्रभूमि

वहीं वैश्विक स्तर पर यह उष्णकटिबंधीय आर्द्रभूमि हर साल तूफान से तकरीबन 4,620 जिंदगियों को बचा रही हैं

Lalit Maurya

भारत में ट्रॉपिकल वेटलैंडस (उष्णकटिबंधीय आद्रभूमि) हर साल तूफान से 414 जिंदगियों और 65,339.4 करोड़ रुपए की रक्षा कर रहे हैं। वहीं वैश्विक स्तर पर देखें तो यह उष्णकटिबंधीय आर्द्रभूमियां हर साल तूफान से औसतन 4,620 जिंदगियों को बचा रही हैं। यही नहीं यह तूफान से होने वाले करीब 33.6 लाख करोड़ रुपए के नुकसान को भी रोक रही हैं। यह जानकारी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की जेम्स कुक यूनिवर्सिटी द्वारा किए शोध में सामने आई है, जोकि जर्नल ग्लोबल एनवायरनमेंटल चेंज में प्रकाशित हुआ है।

शोध के मुताबिक चीन में यह उष्णकटिबंधीय आर्द्रभूमियां हर साल आने वाले तूफानों से करीब 1309 लोगों की जान बचा रही हैं। वहीं फिलीपीन्स में 976, अमेरिका में 469, भारत में 414,  बांग्लादेश में 360, ताइवान में 330, जापान में 128 और वियतनाम में 112 से ज्यादा लोगों की जान यह आर्द्रभूमियां आने वाले तूफानों से बचाती हैं।

यही नहीं यह वेटलैंडस हर साल इन तूफान में होने वाले नुकसान को भी सीमित कर देते हैं, जिससे अमेरिका को 15 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का लाभ होता है। वहीं चीन को 11.8 लाख करोड़, फिलीपीन्स को 3.5 लाख करोड़, जापान को 1.76 लाख करोड़, मेक्सिको को 1.1 लाख करोड़ और भारत को 65,339.4 करोड़ रुपए का लाभ हर साल हो रहा है। 

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने 1902 से आए 1,000 से अधिक उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के मार्ग की जांच की है, जिन्होंने 71 देशों में जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है। इस बारे में इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता डाएन जार्विस ने बताया कि तटीय आर्द्रभूमि, जिसमें मुहाना, मैंग्रोव वन, तटीय झीलें, दलदल और मडफ्लैट शामिल हैं, वो तटीय समुदायों पर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के हानिकारक प्रभावों को सीमित कर देते हैं। यह तटीय आर्द्रभूमियां तूफान दौरान चलने वाली तेज हवाओं की रफ्तार को कम कर देती हैं, साथ ही बाढ़ के खतरे को भी कम कर सकती हैं।

1900 के बाद से खत्म हो चुके हैं आधे से ज्यादा वेटलैंडस

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि तूफान की सम्भावना वाले करीब 4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में तटीय आर्द्रभूमियां हैं, जो हर वर्ष औसतन प्रति हेक्टेयर 8.26 लाख रुपए की सुरक्षा प्रदान करती हैं। जार्विस के अनुसार यह आर्द्रभूमियां इसलिए भी काफी मायने रखती हैं क्योंकि वर्तमान में करीब 70 करोड़ लोग समुद्र तल के 10 मीटर से भी कम ऊंचाई पर रहते हैं जहां इन चक्रवातों का खतरा बना रहता है।    

समय के साथ जलवायु परिवर्तन का खतरा भी बढ़ता जा रहा है अनुमान है कि बदलती जलवायु के साथ भविष्य में इन उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी। ऊपर से जिस तरह से तटीय इलाकों में निर्मित बुनियादी ढांचे की उम्र बढ़ रही है, उसके साथ खतरा भी बढ़ता जा रहा है। हाल ही किए एक शोध से पता चला है कि यदि विश्व के औसत तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो इन तूफानों का सामना करने वाले लोगों की संख्या पहले की तुलना में करीब 26 फीसदी बढ़ जाएगी।

यह तटीय आद्रभूमियां हमारे लिए बहुत मायने रखती हैं। यह तूफान से सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही हर साल पारिस्थितिकीय प्रणाली सम्बन्धी सेवाओं में लगभग प्रति हेक्टेयर 1.01 करोड़ रुपए का योगदान दे रही हैं। हालांकि जार्विस के अनुसार 1900 के बाद से करीब आधी से ज्यादा आद्रभूमियां नष्ट हो चुकी हैं। 

उनके अनुसार जैसे-जैसे हम पारिस्थितिक तंत्र के कामकाज और मानव कल्याण से उनके संबंध को बेहतर ढंग से समझते जा रहे हैं, हमें उनके महत्व का भी पता चलता जा रहा है। यह तटीय आर्द्रभूमियां हमारे लिए कई तरह से फायदेमंद हैं ऐसे में यदि इनकी सुरक्षा और बहाली पर ठीक तरह से ध्यान दिया जाए तो यह निश्चित तौर पर आगे चलकर हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और फायदेमंद होंगी।