विकास

भारत क्यों है गरीब-2: नई पीढ़ी को धर्म-जाति के साथ उत्तराधिकार में मिल रही है गरीबी

Richard Mahapatra, Raju Sajwan

नए साल की शुरुआती सप्ताह में नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत अभी गरीबी को दूर करने का लक्ष्य हासिल करने में काफी दूर है। भारत आखिर गरीब क्यों है, डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, गरीबी दूर करने के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं 22 राज्य । पढ़ें, दूसरी कड़ी - 

यह सवाल परेशान करने वाला है कि आखिर भारत के कुछ विशेष इलाकों के लोग सालों साल से गरीब क्यों हैं। इनमें कई परिवार हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी का सामना कर रहे हैं। दो दशक के दौरान जब भी इन इलाकों का दौरा किया गया तो पाया गया कि ये परिवार गरीब से और गरीब हो रहे हैं। ये लोग भी इस बात से हैरान हैं कि आखिर वे गरीब क्यों हैं?

देश के सबसे ज्यादा गरीब 200 जिलों में एक बात समान रूप से देखने को मिली कि ये ऐसे जिले हैं जो 1951 में जब पहली पंचवर्षीय योजना अस्तित्व में आई तब से ही इन जिलों में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के तहत ज्यादातर पैसा खर्च किया गया।

तब से ही देश की सभी विकास योजनाओं का ध्यान इन जिलों पर केंद्रित रहा। हर जिले में औसतन 195 विकास कार्यक्रम चलाए गए। इन सभी कार्यक्रमों का मकसद गरीबी कम करना था।

ओडिशा के कालाहांडी और नुआपाड़ा, मध्य प्रदेश के झाबुआ और टीकमगढ़, झारखंड के गुमला और खुंटी, छत्तीसगढ़ के बस्तर और आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जैसे कुछ जिलों में जब अलग-अलग वजह से जाना हुआ तो बार-बार बेहद गरीबी में रह रहे परिवारों से मुलाकात की। इन परिवारों की दूसरी पीढ़ी भी बड़ी हो चुकी है तो यह जानने की उत्सकुता हुई कि उनकी अगली पीढ़ी की आर्थिक स्थिति कैसी है?

यह बेहद चिंताजनक बात है कि गरीब परिवार की अगली पीढ़ी भी गरीब ही हो रही है, बल्कि उनकी स्थिति और ज्यादा खराब है। इतना ही नहीं, इस नई पीढ़ी की पहुंच से संसाधन जैसे जल, जंगल, जमीन भी दूर हो रहे हैं। या तो ये संसाधन खत्म हो गए हैं या उनसे इन संसाधनों पर अधिकार छीन लिया गया है। जीव विज्ञानियों से क्षमा याचना सहित हम यह कह सकते हैं कि गरीबी अब आनुवांशिक हो गई है। नई पीढ़ी को अब जाति और धर्म के अलावा गरीबी भी जन्म के साथ ही उत्तराधिकार के रूप में मिल रही है।

अब हम 2020 में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया है कि अगले दो साल के भीतर गरीबी खत्म हो जाएगी। यह आठ साल पहले हो जाएगा, क्योंकि सतत विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल, एसडीजी) के तहत 2030 तक वैश्विक स्तर पर गरीबी को खत्म किया जाना है। 25 सितंबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी बैठक में यह वादा किया था। न्यू इंडिया मिशन के तहत केंद्र का भी यही वादा है, लेकिन दुर्भाग्यजनक स्थिति यह है कि उनकी सरकार यह ही नहीं जानती कि भारत कितना गरीब है?

आंकड़े इकट्ठा करने वाले संस्थानों के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनकी सरकार ने नवंबर 2019 के बाद से उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी करनी बंद कर दी है, जिससे पता चल पाता कि देश में गरीबों की वास्तविक संख्या कितनी है। राष्ट्रीय सांख्यिकीय विभाग (एनएसओ) द्वारा हर पांच साल में घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण जारी किया जाता है, जो पिछले दिनों मीडिया में लीक हो गया। अब आधिकारिक तौर पर 2023 में ही गरीबों की संख्या पता चल पाएगी।

लीक सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने ठीक वही बताया जो हम अनुभव कर रहे हैं। भारत की गरीबी में वृद्धि तो हो ही रही है, लेकिन ज्यादातर उन परंपरागत रूप से गरीब समुदायों में गरीबी बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, झाबुआ, खुंटी, नुआपाड़ा और बस्तर क्षेत्र आदि। एनएसओ की लीक हुई सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता व्यय में सालाना 10 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में सालाना 4 फीसदी की गिरावट आई है। उपभोक्ता व्यय का उपयोग भारत में आय के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में किया जाता है, जो बदले में गरीबी को मापने का आधार बनता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हिमांशु ने इस लीक सर्वे रिपोर्ट का विश्लेषण किया और पाया, “इसका तात्पर्य यह है कि 2011-12 से 2017-18 के बीच गरीबी के अनुपात में तेज वृद्धि हुई, जबकि 2004-05 से 2011-12 के बीच तेजी से  गिरावट हुई थी। ”

जनवरी 2020 में सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) की प्रगति रिपोर्ट जारी की। इसमें गरीबी के लक्ष्य को हासिल करने की रिपोर्ट निराशाजनक देखी गई। अगर राज्यों की प्रगति रिपोर्ट देखी जाए तो स्पष्ट दिखता है कि भारत 2030 तक गरीबी मुक्त होने का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगा। खासकर, 2018 के मुकाबले 2019 की बात की जाए तो गरीबी को दूर करने के भारत के प्रयास कम हुए हैं।

जारी...