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नाजुक चमोली सिर्फ ऊंचे पहाड़ों से नहीं बड़ी-बड़ी परियोजनाओं से भी घिरा है

जल विद्युत परियोजनाओं से ऊर्जा को डबल करने के लिए अगले कुछ दशकों में हिमालय पर सरकार करीब 229 डैम बनाना चाहती है। यदि ऐसा हुआ तो हर 32 किलोमीटर पर एक डैम होगा।

Vivek Mishra

मुझे खबर मिली तो मैंने तत्काल जोशीमठ की एसडीएम को संपर्क किया, वह दौरे पर निकल गईं। मैंने हैलीपेड की व्यवस्था की और सुबह 10 बजे के बाद से ही हमने वायरलेस के जरिए आपदा नियंत्रण कक्ष से अधिकारियों से बातचीत और आदेशों की घोषणाएं शुरु कर दीं। 7 फरवरी, 2021 की सुबह हरिद्वार के आगे जोशीमठ तक आवाजाही बंद कर दी गई। आस-पास के जिलों में अधिकारियों से संपर्क बना रहा। शाम होने तक जब पानी का चढ़ना कम हुआ तब जोशीमठ तक आवाजाही के लिए अनुमति दी गई। 

चमोली की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने डाउन टू अर्थ से यह बातें साझा की। उन्होंने बताया कि रेस्क्यू ऑपरेशन कब तक चलेगा यह नहीं कह सकते हैं। अब तक 72 मृत्यु की पुष्टि हो चकी है और 132 लोग लापता हैं।  लेकिन यह आपदा क्यों घटित हुई यह जवाब उनके पास नहीं है। इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों की रायों को जानना होगा। 

चमोली की इस त्रासदी में सरकार और वैज्ञानिकों को पहले इस आपदा के घटित होने का सिरा नहीं मिल रहा था। स्थानीय ग्रामीण और जनसंगठन जल विद्युत परियोजनाएं और निर्माण गतिविधियों को इसकी वजह बता रहे हैं। हालांकि, कोई स्पष्ट और समग्र रिपोर्ट अब तक इस मामले पर नहीं मिल सकी है कि आखिर ग्लेशियर का यह टुकड़ा चट्टान के साथ टूटा कैसे और इतनी बड़ी मात्रा में पानी नीचे की तरफ कहां से आया। यह सवाल अब भी अनुत्तरित हैं।

वाडिया इंसटीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) ने एरियल सर्वे और कुछ हिस्सों की ग्राउंड रिपोर्ट के प्राथमिक निष्कर्षों में इसे रॉक एवालांच कहा। रॉक एवलांच यानी जिसमें ग्लेशियर और चट्टान दोनों हिस्से शामिल थे। वाडिया इंस्टीट्यूट के मुताबिक इस ग्लेशियर युक्त विशाल मलबे का अनुमानित आकार 2.2 करोड़ घन मीटर था। वहीं, मलबे के कारण रौंथी नाले और ऋषिगंगा नदी के मिलन स्थल पर एक प्राकृतिक डैम बना, जिसने पानी जमा किया और बाद में वह टूट गया, जिससे निचले क्षेत्रों में जानमाल की बड़ी तबाही हुई। 

इससे पहले कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगेरी में एनवॉयरमेंट साइंस प्रोग्राम के निदेशक व जियोलॉजिस्ट डैनियल शुगर पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने सेटेलाइट इमेजरी के अध्ययन के आधार पर ग्लेशियर युक्त चट्टानी भूस्खलन के घटित होने और कृत्रिम डैम बनने का अंदेशा जताया था। उन्होंने डाउन टू अर्थ से कहा सेटेलाइट इमेज में दिखाई देने वाला धूल-गुबार एक ठोस तरीके से यकीन पैदा करने वाला तर्क (मेरे दिमाग में) पैदा करता है कि एक बड़ा भूस्खलन हुआ है। उन्होंने अपने शुरुआती कयास में कहा था कि यह संभव है कि ऋषिगंगा या धौलीगंगा के पास लैंडस्लाइड अस्थायी तौर पर ब्लॉक हो गया होएक झील बन गई हो और बाद में फट गई हो।

वहीं, 09 फरवरी, 2021 को वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के निदेशक कलाचंद सेन ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि उनके पांच वैज्ञानिकों के दल ने अपनी प्राथमिक रिपोर्ट तैयार की है। इसके मुताबिक उत्तराखंड में फरवरी, 2021 को चमोली में हुई जानलेवा आपदा ग्लेशियर के साथ चट्टानी टुकड़े के भूस्खलन (रॉक-आइस एवलांच) और एक कृत्रिम अस्थायी डैम बनने के कारण हुई।

सेन ने कहा बेहद बड़े आकार वाले रौंथी ग्लेशियर के ठीक बगल एक हैंगिग ग्लेशियर था। वहीं, लटकते हुए इसी हिमनद के नीचे एक बड़ा चट्टानी टुकड़ा (रॉक मास) भी थाजो कुछ समय में कमजोर हो गया। यानी धीरे-धीरे वीक प्लेन बना और ग्रैविटी के कारण यह ग्लेशियर और रॉक मास कमजोर होकर नीचे गिरा। जब यह रॉक एवलांच हुआ तो मलबे को रौंथी नाले तक पहुंचने के लिए 40 डिग्री स्लोप मिला जिसने करीब 1.8 किलोमीटर ढाल वाले रास्ते इसे और गति दी। बाद में इस रॉक मास और ग्लेशियर टुकड़े के साथ आए मलबे के कारण नीचे रौंथी नाला जहां ऋषिगंगा से मिलता हैं वहां एक अस्थायी कृत्रिम डैम भी बन गया।  मिट्टीबर्फग्लेशियर का टुकड़ारॉक मास ने मिलकर नाले के मुंह को बंद किया। इस कारण धीरे-धीरे वहां बड़ी मात्रा में पानी भी जमा हो गया और अचानक यह कृत्रिम मलबे का डैम टूट गया, जिससे ऋषिगंगा और धौलींगंगा में काफी तबाही हुई।” 

वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि निर्माण गतिविधियों का असर इस आपदा का कारण न बना हो यह पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है। परियोजनाओं का हस्तक्षेप और लगातार होने वाले विरोध ने इस पहलू को ज्वलंत बना दिया है। रैणी गांव और प्रवासी मजदूरों ने यह स्पष्ट किया कि परियोजनाओं के चलते विभीषिका बढी। ऐसे में परियोजनाओं की जांच-परख को लेकर अब फिर से सवाल उठ रहे हैं। 

परियोजनाओं से होने वाले नुकसान के चलते भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी। वहीं, 2019 में सरकार ने भी कहा कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर कोई नई जल विद्युत परियोजना नहीं बनाई जाएगी। 

हालांकि फिर सरकार ने कहा कि 13 परियोजनाओं की पहचान की गई है जिनमें 7 परियोजनाओं का काम 50 फीसदी से ज्यादा पूरा हो चुका था। वित्तीय नफा-नुकसान पर बिठाए जाने वाली परियोजनाओं पर त्रासदी की चेतावनी साफ-साफ लिखी है लेकिन सरकारें शायद इसे पढ़ना नहीं चाहतीं।

यही वहज है कि सरकार ने हिमायल में अगले कुछ दशकों में जल विद्युत परियोजनाओं की क्षमता को दोगुना करने के लिए 292 डैम बनाने की लक्ष्य रखा है। यदि सरकार 28 या 32 नदी घाटियों में अपनी रपिरयोजनाओं को मूर्त रूप देती है तो दुनिया में सबसे ज्यादा डैम घनत्व यहीं होगा, हर 32 किलोमीटर पर एक डैम स्थापित होगा। इनमें से कुछ की ऊंचाई और चौड़ाई दुनिया में सर्वाधिक होगी।  

काउंसिल ऑन एनर्जी एनवॉयरमेंट एंड वाटर ने अपने हालिया अध्ययन में बताया है कि 1970 से लेकर अब तक उत्तराखंड में 4 गुना ज्यादा त्रासदी बढ़ी है।

शायद इसके पीछे कहीं-न-कहीं अस्थिर हिमालय को और ज्यादा अस्थिर करने वाली परियोजनाएं ही हैं। 

अगली किस्त में पढ़िए क्यों उत्तराखंड को विद्युत प्रदेश बनाने का ख्याल आया