सिक्किम में अक्टूबर 2023 में आई बाढ़ क्षेत्र में अनियोजित विकास के कारण गंभीर हो गई थी। फोटो: iStock 
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सिक्किम बाढ़ के लिए तीस्ता जलविद्युत परियोजनाएं जिम्मेदार: कांग्रेस सांसद जयराम रमेश

Preetha Banerjee

देश की प्रमुख नदियों पर बन रही जलविद्युत परियोजनाओं और हाल ही में आई बाढ़ के बीच एक मजबूत संबंध है। यही वजह है कि सिक्किम में एक साल से भी कम समय में दूसरी बार विनाशकारी बाढ़ आई है। 

राज्यसभा सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस महासचिव (कम्युनिकेशन) जयराम रमेश ने एक बयान में इस पर चिंता जताई है। 

उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2023 में, उत्तरी सिक्किम में एक ग्लेशियल झील के फटने के कारण हुए एक बड़े भूस्खलन ने कई घरों और महत्वपूर्ण सड़कों को भारी नुकसान पहुंचा था।  

यहां ग्लेशियल झील के फटने से आई बाढ़ (जीएलओएफ) के कारण चुंगथांग हाइड्रो-डैम टूट गया, जिससे 5.08 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी भयंकर गति  के साथ नीचे की ओर बह गया, जिससे उसके रास्ते में आने वाली हर चीज बह गई। 

अब 20 अगस्त 2024 को पूर्वी सिक्किम में राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (एनएचपीसी) द्वारा संचालित तीस्ता-V की जलविद्युत परियोजना को ध्वस्त कर दिया। कुछ घर भी क्षतिग्रस्त हो गए और सिंगतम-डिकचू सड़क पर दरारें पड़ गईं। प्रभावित क्षेत्र के निवासियों को निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।

इस आपदा के बाद रमेश ने एक आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें पहाड़ाें बढ़ रही आपदाओं के लिए खराब परियोजनाओं को दोषी ठहराया गया है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग 10 व्यावसायिक आवाजाही के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रमुख सड़क के कुछ हिस्से भूस्खलन से बह गए हैं और यह एक महीने से अधिक समय से बंद है, जिससे व्यापार, पर्यटन, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति और सीमा सुरक्षा बाधित हुई है।

रमेश ने कहा कि तीस्ता पर कई जलविद्युत बांधों के अनियोजित निर्माण ने नदी को और अधिक बाढ़-ग्रस्त बना दिया है। और फिर भी और अधिक बांध बनाने की योजनाएं जोरों पर हैं। 

राष्ट्रीय जलविद्युत विकास निगम (एनएचडीसी) के अनुसार, सिक्किम और पश्चिम बंगाल में तीस्ता नदी पर 47 जलविद्युत परियोजनाएं विकास के विभिन्न चरणों में हैं।

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अक्टूबर 2023 की घातक बाढ़ भी इस अनियोजित विकास के कारण ही भयंकर हुई। अक्टूबर 2023 की बाढ़ जीएलओएफ के कारण आई थी, लेकिन यह केवल तीस्ता-III बांध की विफलता के कारण भयावह पैमाने पर पहुंची।

जलविद्युत परियोजनाओं के अलावा उचित गाद प्रबंधन के बिना सुरंगों के निर्माण से नदियों के तल में कंक्रीट का मलबा जमा हो गया है, जिससे तीस्ता का जल स्तर बढ़ गया है।

रमेश के मुताबिक इन परियोजनाओं की योजना स्थानीय समुदायों के लिए बिना किसी परवाह के बनाई गई है। पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में रेलवे ट्रैक बिछाने से पहले आयोजित परामर्श सत्रों में उनकी अनुपस्थिति से इसका सबूत मिलता है।

वास्तव में, तीस्ता V परियोजना के खिलाफ विरोध करने के लिए स्थानीय लेप्चा समुदायों को बहिष्कृत कर दिया गया था। बांध के निर्माण को हतोत्साहित करने के लिए लेप्चा लोगों द्वारा उठाई गई चिंताओं में जीएलओएफ के प्रभाव को बढ़ाना भी शामिल था।

रमेश ने कहा है कि इसके अलावा, जो परियोजनाएं उनकी जमीन और संसाधनों को नुकसान पहुंचाती हैं और ऐसे मानवीय संकटों को जन्म देती हैं, उनसे उन्हें कोई लाभ नहीं होता। 

उन्होंने कहा कि न तो कलिम्पोंग और सिक्किम के लोगों को इन स्थलों पर रोजगार मिला है, न ही उन्हें ऊर्जा या राजस्व के मामले में कोई लाभ हुआ है। शोधकर्ताओं ने उचित मूल्यांकन के बिना पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण के खिलाफ चेतावनी दी है। 

सेव द हिल्स ब्लॉग में, गैर-लाभकारी संगठन के लेखकों ने एनएच-10 की अनिश्चित स्थितियों को नदी परियोजनाओं से भी जोड़ा है। 

ब्लॉग में कहा गया है कि जीएलओएफ के कारण नदी में बहुत ज्यादा पानी आने से राजमार्ग के कुछ हिस्से बह जा रहे हैं। यह घटना जीएलओएफ से पहले भी देखी गई थी और मुख्य रूप से बांध गतिविधि के कारण थी, लेकिन अब ग्लेशियल झील के फटने के कारण ज्यादा बार हो रही हैं।