विकास

स्कूलों में स्मार्टफोन केवल तभी, जब वो सीखने में हो मददगार: संयुक्त राष्ट्र

फायदों के बावजूद स्मार्टफोन जैसी डिजिटल तकनीकों का बढ़ता दुरूपयोग बच्चों को शिक्षा से दूर ले जा रहा है। किसी नशे की तरह बच्चे इसकी लत का शिकार बनते जा रहे हैं

Lalit Maurya

डिजिटल तकनीकें किसी दोधारी तलवारों से कम नहीं, जिनका यदि सही उपयोग न किया जाए तो वो उपयोग करने वालों को ही नुकसान पहुंचा सकती हैं। ऐसा ही कुछ शिक्षा के क्षेत्र में स्मार्ट फोन जैसी डिजिटल तकनीकों की वजह से हो रहा है।

एक तरफ जहां कोरोना महामारी के दौर में इन तकनीकों ने बच्चों को पढ़ने और सीखने में मदद की थी, वहीं दूसरी तरफ इनका बढ़ता दुरूपयोग बच्चों को शिक्षा से दूर ले जा रहा है। किसी नशे की तरह बच्चे इसकी लत का शिकार बनते जा रहे हैं।

ऐसे में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नई रिपोर्ट में स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताते हुए कहा है कि शिक्षा क्षेत्र में स्मार्ट फोन जैसी डिजिटल तकनीकों का उपयोग समझदारी से किए जाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने भी 2023 ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट में स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग को सीमति करने की वकालत करते हुए कहा कि स्कूलों में स्मार्टफोन केवल तभी उपयोग किए जाएं, जब जब वो सीखने में मददगार हों।

देखा जाए तो आज बच्चे मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि के इतने आदी हो गए हैं कि उनके लिए इसके बिना रहना नामुमकिन सा हो गया है जो न केवल उनकी शिक्षा बल्कि साथ ही उनके स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है।

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्रे अजोले का इस बारे में कहना है कि, "डिजिटल क्रांति में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन समाज में इसे कैसे नियमित किया जाए, इसको लेकर जो चेतावनी दी गई है, उसी तरह शिक्षा में भी इसके उपयोग के तरीके पर ध्यान दिया जाना चाहिए।"

उनके अनुसार इसका उपयोग बेहतर सीखने के साथ छात्रों और शिक्षकों की भलाई के लिए होना चाहिए, न कि उनके नुकसान के लिए। पहला सवाल कक्षा में प्रौद्योगिकी के सही उपयोग पर केंद्रित है। विकलांग बच्चे जो पारंपरिक, व्यक्तिगत क्षेत्र में संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें तकनीकी सहायता की मदद से फायदा हो सकता है।

रिपोर्ट में "मानव-केंद्रित दृष्टिकोण" की आवश्यकता पर जोर दिया गया है जहां डिजिटल तकनीकों को प्राथमिकता देने की जगह उसे के उपकरण के रूप में उपयोग करने की बात कही गई है।

अपार संभावनाओं के साथ है दुरूपयोग का खतरा

रिपोर्ट से जुड़े मानोस एंटोनिनिस का कहना है कि, "शिक्षा में प्रौद्योगिकी का उपयोग करते समय हमें अपनी पिछली गलतियों से सीखने की जरूरत है ताकि उन्हें हम भविष्य में न दोहराएं।" 

उनका कहना है कि हमें बच्चों को तकनीकों के साथ और उसके बिना भी रहना सिखाना चाहिए। तकनीकों की मदद से जरूरी जानकारी हासिल करनी चाहिए लेकिन साथ ही जो जरूरी न हो उसे नजरअंदाज कर देना चाहिए।

इस रिपोर्ट में डिजिटल लर्निंग से पैदा हुई असमानताओं पर भी प्रकाश डाला गया है। कोविड-19 महामारी के दौरान, केवल-ऑनलाइन शिक्षा के रूप में हुए बदलाव की वजह से दुनिया भर में करीब 50 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित रह गए थे। इसका सबसे ज्यादा असर हाशिए पर रह रहे ग्रामीण समुदायों पर पड़ है। वहीं दूसरी तरफ इस दौरान यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अन्य देशों की तुलना में स्थिति कहीं ज्यादा बेहतर थी।

रिपोर्ट इस बात को उजागर करती है कि शिक्षा का अधिकार अब सार्थक कनेक्टिविटी से निकटता से जुड़ा है। इसके बावजूद हैरानी की बात है कि चार में से एक प्राथमिक विद्यालय में बिजली की कमी है। इससे निपटने के लिए रिपोर्ट में सभी देशों से 2030 तक स्कूलों को इंटरनेट से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित करने का आग्रह किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार यह सही है कि तकनीकें कुछ मामलों में सीखने में मदद कर सकती हैं, लेकिन तब नहीं जब इनका जरूरत से ज्यादा या अनुचित उपयोग किया जाए। यूनेस्को का कहना है कि विशेष रूप से स्मार्टफोन का उपयोग शिक्षा में बाधा उत्पन्न कर सकता है।

14 देशों में प्री-प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक में किए अध्ययन से पता चला है कि इसकी वजह से बच्चों में सीखने से ध्यान भटक जाता है। यहां तक की एक मोबाइल फोन और उसमें सन्देश का आना भी छात्रों को पढ़ने से ध्यान भटकाने के लिए काफी है। एक अध्ययन से पता चला है कि एक बार ध्यान भटकने के बाद छात्रों को दोबारा सीखे जा रहे पाठ पर ध्यान केंद्रित करने में करीब 20 मिनट तक का समय लग सकता है।  

रिपोर्ट में अध्ययन का जिक्र करते हुए बताया है कि बेल्जियम, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम के स्कूलों में स्मार्टफोन का उपयोग बंद करने से सीखने के परिणामों में सुधार देखा गया है। यह बदलाव खासकर उन छात्रों में कहीं ज्यादा स्पष्ट था जो अपने साथियों के बराबर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे थे।

निजी जानकारी की गोपनीयता, सुरक्षा और कल्याण जैसे मुद्दे भी स्कूलों में डिजिटल तकनीकों के उपयोग पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। खासकर छोटी उम्र के बच्चों द्वारा इनका उपयोग इस तरह की चिंताओं को और बढ़ा रहा है।

16 फीसदी देशों में ही है पर्याप्त कानून

बहुत सी एप्लिकेशन ऐसी होती हैं जो उपयोग करने वाले के बारे में बहुत सी अनावश्यक जानकारियां और आंकड़ों को एकत्र करती हैं। यह एप्लिकेशन प्राइवेसी को लेकर चिंता पैदा कर देती हैं। हालांकि इसके बावजूद मौजूदा समय में केवल 16 फीसदी देश ही कानूनी तौर पर शिक्षा के क्षेत्र में आंकड़ों की गोपनीयता की स्पष्ट गारंटी देते हैं।

एक अध्ययन के मुताबिक महामारी के दौरान 163 शैक्षिक प्रौद्योगिकी उत्पादों में से 89 फीसदी ने बच्चों से जुड़े आंकड़ों को एकत्र किया था। इसके अतिरिक्त उस दौरान ऑनलाइन शिक्षा की पेशकश करने वाली 42 में से 39 सरकारों ने उन उपयोगो को बढ़ावा दिया था, जो बच्चों के अधिकारों को खतरे में डालते थे या उनका उल्लंघन करते थे।

यही वजह है की कोलंबिया से आइवरी कोस्ट और इटली से नीदरलैंड तक दुनिया के हर चौथे देश ने अपने कानूनों या नीतियों की मदद से स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबन्ध एशिया में कहीं ज्यादा सामान्य है।

हालांकि बांग्लादेश और सिंगापुर दोनों ही कक्षा में स्मार्टफोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं, लेकिन स्कूल में नहीं। वहीं फ्रांस स्मार्टफोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है जब तक कि उसका उपयोग के केवल शिक्षा या विकलांग बच्चों की मदद के लिए न किया जाए।

वहीं कुछ देशों ने गोपनीयता से जुड़ी चिंताओं के मद्देनजर कुछ खास एप्लिकेशन्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसी तरह डेनमार्क और फ्रांस दोनों ने ही गूगल वर्कस्पेस को बैन कर दिया है। वहीं जर्मनी ने कुछ राज्यों में माइक्रोसॉफ्ट के उत्पादों को प्रतिबंधित कर दिया है। इसी तरह अमेरिका में, कुछ स्कूलों और विश्वविद्यालयों ने टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है।

ऐसे में इस नई रिपोर्ट में शिक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के बारे में निर्णय लेते समय छात्रों की जरूरतों को ऊपर रखने के महत्व पर जोर दिया है। यह प्रौद्योगिकी के उपयोग को उचित, निष्पक्ष, स्केलेबल और सतत बनाने की वकालत करती है। रिपोर्ट का कहना है कि छात्रों को प्रौद्योगिकी से पूरी तरह दूर करने के बजाय उन्हें इसके फायदे और जोखिम दोनों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।

हालांकि साथ ही देशों को इस बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश तय करने की आवश्यकता है कि स्कूलों में किस तरह की तकनीक की अनुमति है और उसका जिम्मेदारी से कैसे उपयोग किया जाना चाहिए। यूनेस्को ने स्पष्ट किया है कि शिक्षा क्षेत्र में केवल उन्हीं तकनीकों को ही अनुमति दी जानी चाहिए जो स्पष्ट तौर पर सीखने में मदद करती हो।

रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षकों को भी प्रौद्योगिकी के उचित उपयोग के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है। इसके बावजूद मौजूदा समय में केवल आधे देशों ने ही शिक्षकों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी कौशल विकसित करने के लिए मानक स्थापित किए हैं। साइबर सुरक्षा को कवर करने वाले शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम तो और भी कम हैं।

यूनेस्को ने शिक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के डिजाइन और उपयोग के लिए देशों से अपने स्वयं के मानक स्थापित करने का आग्रह किया है, जिसमें यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है कि प्रौद्योगिकी कभी भी शिक्षकों का स्थान न ले, बल्कि प्रौद्योगिकी को एक सहायक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए, जो सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के साझा उद्देश्य को हासिल करने में मददगार हो।