भारतीय शहरों में एक बड़ी आबादी झुग्गी बस्तियों में अमानवीय परिस्थितियों में रहती है। भारत के 2,613 नगरों में झुग्गी बस्तियां हैं। इनमें से 57 प्रतिशत बस्तियां तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में हैं। केंद्र सरकार ने साल 2015-16 में स्मार्ट सिटी योजना शुरू की थी लेकिन योजना के चार साल बाद भी आवंटित फंड का केवल 21 प्रतिशत ही खर्च किया गया है। अनुमान के मुताबिक, साल 2050 तक शहरी आबादी में 41.6 करोड़ लोग बढ़ जाएंगे।
अभी शहरी क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 62 से 63 प्रतिशत योगदान देते हैं। 2030 तक इसके 75 प्रतिशत होने की संभावना है। इस स्थिति में शहरों के सामने प्रदूषण, मूलभूत संसाधनों तक पहुंच की समस्या पैदा होगी और शहरों में रहना बेहद मुश्किल हो जाएगा। गांव से शहरों में आने वालों का बोझ मुख्य रूप से झुग्गी बस्तियों पर ही पड़ता है। अभी हर छह में एक भारतीय शहरों में स्थित झुग्गी बस्ती में रहता है। ये झुग्गी बस्तियां इतनी सामान्य हो चुकी हैं कि 65 प्रतिशत भारतीय नगरों में इनकी मौजूदगी है।
10 में से छह झुग्गीवासी नालों के पास रहते हैं और 10 में से चार को उपचारित जल नहीं मिलता। शहरों की 17.4 प्रतिशत आबादी इन बस्तियों में रहती है। इन बस्तियों में रहने वाले 63 प्रतिशत परिवारों के पास या तो खुली नालियां होती हैं या नालियां ही नहीं होतीं। आंध्र प्रदेश में 56.78, छत्तीसगढ़ में 89.8, मध्य प्रदेश में 79.2, महाराष्ट्र में 42.6, ओडिशा में 90.6, पश्चिम बंगाल में 75, सिक्किम में 64.7, जम्मू एवं कश्मीर में 73.6 और हरियाणा में 61.6 प्रतिशत झुग्गी बस्तियों में गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं है।
इससे जहां गंदगी का आलम रहता है, वहीं बीमारियों का खतरा भी बना रहता है। छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्य प्रदेश में 50 प्रतिशत से अधिक परिवारों को उपचारित जल नसीब नहीं होता। आबादी की इतनी बड़ी रिहायश की तरफ नीति निर्माताओं का ध्यान नहीं है।